बाजरे की फसल पर इस रोग का मंडराने लगा खतरा, बचाव के उपाय

पोस्ट -24 जुलाई 2023 शेयर पोस्ट

फड़का रोग से बाजरे की फसल को होता है काफी नुकसान, समय रहते रोकथाम जरूरी

इन दिनों बाजरे की फसल में फड़का रोग की समस्या तेजी से बढ़ रही है। फड़का रोग से बाजरे की फसल को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है। गौरतलब है कि राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में बाजरे की खेती प्रमुखता से की जाती है। इस साल फड़का रोग बाजरा किसानों के लिए बड़ी आफत बन गया है। काफी किसानों को इस कीट रोग की वजह से नुकसान झेलना पड़ा है। इस फड़का कीट की वजह से फसल चक्र बनाना और दाना प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। यह कीट धीरे धीरे फसल की पत्तियों को खाता है। इस तरह फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है। बाजरा, अनाज और पशुओं के चारे के लिए महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। बाजरे से सबसे ज्यादा फायदा पशुपालक किसानों को होता है। उन्हें पर्याप्त मात्रा में सूखा एवं हरा चारा मिल जाता है। साथ ही अनाज की भी अच्छी पैदावार हो जाती है। बाजरा किसानों के लिए आफत बनते जा रहे फड़का कीट की रोकथाम के लिए किसानों को उपाय करने चाहिए, ताकि फसल की अच्छी पैदावार ली जा सके।

ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट में हम बाजरे की फसलों में फड़का रोग या कीट से रोकथाम के उपाय, रोग से बचने के शुरुआती उपाय एवं इस फसल की खेती से संबंधित कुछ सामान्य और जरूरी जानकारी दे रहे हैं।

कितनी गंभीर है फड़का कीट की समस्या

इन दिनों बाजरे की खेती करने वाले किसानों के लिए फड़का रोग, किसी आफत से कम नहीं है। गौरतलब है कि किसान अपने खेतों में दिन रात इस उम्मीद से मेहनत करते हैं कि एक दिन उनके खेत में अच्छी पैदावार होगी। अच्छी पैदावार से वे अपनी जरूरतों की पूर्ति कर पाएंगे। लेकिन इस तरह की आपदा की वजह से किसानों को बेहद नुकसान झेलना पड़ता है। यह समस्या किसानों के लिए बेहद गंभीर है। बारिश के बाद यह कीट बड़ी संख्या में बढ़ते हैं और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन कुछ उपायों को करके इस पर रोक संभव है। राजस्थान में 1.39 लाख हेक्टेयर भूमि पर बाजरे की बुवाई हुई है। यही वजह है कि राजस्थान कृषि विभाग ने इस फसल की सुरक्षा के लिए निर्देश जारी किया है।

कैसे बचें फड़का रोग से 

राजस्थान कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक वीडी शर्मा ने बताया कि फड़का रोग का प्रकोप बारिश के 15 से 20 दिन बाद शुरू होता है। समय पर इस रोग की रोकथाम के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए जाने पर यह पूरी फसल को नष्ट कर सकता है। वर्तमान में बाजरे की शिशु अवस्था वाले पौधों को यह कीट नष्ट कर रहा है। खेत के किनारे लगे पौधों को यह कीट खा रहा है। राजस्थान में इस कीट का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। इसके लिए समय रहते किसानों को इसकी रोकथाम करनी चाहिए। वीडी शर्मा के मुताबिक इस रोग से बचने के लिए कुछ आसान उपाय हैं जिसे अपनाया जा सकता है। जैसे :

  • जिस फसल पर इस कीट का प्रकोप हो, वहां कुणालफॉस 1.5% पाउडर, 6 किलोग्राम प्रति बीघे की दर से छिड़कें। अगर आपके पास दवा का छिड़काव करने के लिए उपकरण या कोई अन्य सुविधा मौजूद है तो कुणालफॉस 25 EC 1 ML को एक लीटर पानी में मिक्स करके छिड़कें। 
  • इसके अलावा खेतों से इस कीट का नियंत्रण करने के लिए खेत के चारों ओर आग या पुराना टायर भी जला सकते हैं। 
  • वीडी शर्मा ने बताया कि जहां भी इस कीट का ज्यादा या थोड़ा भी प्रकोप देखने को मिले। किसानों को तुरंत और सक्षम उपाय अपनाना चाहिए। ताकि यह कीड़ा जीवित न बचे। गलती से भी यह कीट थोड़ा भी बचता है तो आगे बहुत नुकसान पहुंचा सकता है। 
  • इसके अलावा किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जिस जगह पर आपने दवा का छिड़काव किया है। वहां लगभग 8 दिनों तक कोई भी जानवर न चराएं। इन रसायनों की वजह से जानवरों को काफी नुकसान पहुंच सकता है।

बाजरे की खेती के बारे में सामान्य जानकारी

बाजरा एक खरीफ फसल है जो पशुपालक किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण फसल है। इससे अनाज और चारा दोनों की अच्छी पैदावार होती है। जुलाई के महीने में बरसात के बाद से ही बाजरे की बुआई शुरू हो जाती है। फसल पकने के साथ नवंबर या दिसंबर महीने से इसकी कटाई शुरू हो जाती है। सामान्यतः 120 से 125 दिनों में बाजरा कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। यह फसल कम वर्षा में या कम सिंचाई में अच्छी पैदावार देने के लिए जानी जाती है। यही वजह है कि कम पानी वाले इलाकों में किसान इसकी अच्छी पैदावार करते हैं। इस फसल की खेती में जलवायु की बात करें तो बुआई के समय तापमान 25 से 30 डिग्री पर्याप्त होता है। लेकिन जब बाजरा का पौधा पूर्ण विकसित हो जाता हैत ब यह 45 डिग्री तक का तापमान भी आसानी से सह लेता है और इस तापमान में भी विकास कर लेता है।

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