देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसून सक्रिय हो चुका है और किसान भाई खरीफ सीजन की फसलों की बुआई की तैयारियों में जुट गए हैं। कई जगह बाजरा, ज्वार, मक्का, तिल्ली आदि की फसलों की बुआई हो गई है। आजकल खेती करने में भी काफी पैसा चाहिए। जुताई-बुआई, निराई, गुड़ाई, सिंचाई और कटाई आदि में जो लागत आती है उसको देखते हुए यदि फसल की पैदावार सही नहीं हो पाती है तो किसानों को निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे में बेहतर यही है कि परंपरागत फसलों के बजाय नकदी फसलों का उत्पादन किया जाए। दलहन वाली फसलें अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा मुनाफा प्रदान कर सकती है क्योंकि बाजार में दालें काफी महंगी मिलती हैं। दलहन फसलों के तैयार होने में अधिक समय भी नहीं लगता। ये तीन से चार महीनों में परिपक्व हो जाती है। यदि आप किसान हैं और प्रगतिशील सोच रखते हैं तो इस बार जुलाई में कुछ दलहनी फसलें अवश्य करें। इन दाल वाली फसलों में मूंग, उड़द और अरहर मुख्य हैं। यदि उपलब्ध जमीन के अनुसार इनकी खेती की जाए तो आपको पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं होगी। ये फसलें आपको भरपूर मुनाफा प्रदान करने वाली हैं। इसके लिए किसान भाइयों को अच्छी किस्म के बीजों का चयन करना होगा। वहीं समय-समय पर फसलों को कीट, रोग आदि से बचाने के लिए उचित प्रबंधन करना जरूरी है। यहां ट्रैक्टर गुरू की वेबसाइट पर आपको दलहन फसलों के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है।
भारत में मूंग की दाल की सबसे अधिक डिमांड रहती है। इसकी खेती करना किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद रहता है। वैसे तो मूंग की बुआई मई में ही शुरू हो जाती है लेकिन असली सीजन जुलाई में आता है। इस समय बोई जाने वाली मूंग की प्रमुख किस्मों में टॉम्बे जवाहर मूंग-3, जवाहर मूंग 721, एच.यूएम, पूसा, पीडीएम 11 आदि हैं। यह बुआई हल या सीड ड्रिल से की जा सकती है। पौधे से पौधे की दूसरी 5-6 सेमी होनी चाहिए। इस सीजन में बोई गई मूंग की फसल में सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है। बारिश होती रहे तो एक भी सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होगी। सितंबर और अक्टूबर के मध्य इनकी फलियों की तुड़ाई का काम शुरू हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार 2 एकड़ में मूंग की फसल 10 क्विंटल तक हो जाती है।
दलहन फसलों में दूसरी मुनाफे वाली फसल है उड़द। इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए जल निकासी वाली भूमि का होना जरूरी है। उड़द की खेती करने से पहले खेत में गहरी जुताई करनी चाहिए। इसमें गोबर की खाद अच्छी मात्रा में मिलाएं। यदि रासायनिक खाद का प्रयोग करें तो 80 किलोग्राम प्रति हेक्टैयर के हिसाब से डीएपी का भी छिड़काव कर सकते हैं। इसके बाद पाटा लगा दें और मिट्टी भुरभुरी होने पर बुआई करें। इसके पौधे नमी चाहते हैं लेकिन जब फलियां आ जाती है तो इनके पकने के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इस फसल के तैयार होने में 70 -80 दिन का समय लगता है। प्रति हेक्टयर 10 से 12 क्विंटल फसल हो जाती है। इसकी मुख्य उन्नत किस्मों में टी-19, कृष्णा, पंत यू 19, जे वाई पी, आरबीयू 38 आदि हैं। बता दें कि उड़द की दाल का भाव करीब 7,000 रुपये प्रति क्विंटल है। ऐसे में यह फसल आपको अच्छी कमाई दे सकती है।
खरीफ सीजन में दलहन फसलों में अरहर की फसल भी जोरदार इनकम दे सकती है। अरहर की खेती के लिए सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है। यह ड्रेनेज कैपेसिटी की मिट्टी पर अच्छी होती है। एक एकड़ में 6-8 क्विंटल तक अरहर का उत्पादन हो सकता है। अरहर की एमएसपी 7000 रुपये प्रति क्विंटल है। अरहर की अधिक पैदावार के लिए बुआई करते समय 20 kg डीएपी, 10 kg म्यूरेट और पोटाश, 5 kg सल्फर का इस्तेमाल करना चाहिए। करीब तीन वर्ष में एक बार जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। अरहर की खेती राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार आदि राज्यों में अधिक होती है।
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