Goat Milk : दूध, मांस और गोट फार्मिंग व्यवसाय हेतु बकरियों की टॉप 3 नस्ल

पोस्ट -21 सितम्बर 2024 शेयर पोस्ट

Goat Milk : दूध और मांस, दूसरे उत्पाद उद्देश्य हेतु बकरियों की इन 3 विशेष नस्ल का करें पालन

Top 3 Goat Breeds : देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन-सीमांत किसानों, घुमन्तू/ खानाबदोश जातियों के लोग कृषि के साथ-साथ बकरियों का पालन करते हैं। बंजर, दुर्गम पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों में बकरियों का पालन करने का उद्देश्य इनसे दूध और मांस के साथ-साथ इनके विक्रय से आय प्राप्त करना होता है। वर्तमान समय में बकरियां देश में करोड़ों लोगों को जीविका/रोजगार उपलब्ध करा रही है। आज कई युवा और प्रगतिशील किसान विशेष नस्ल की बकरियों का उन्नत तकनीक से पालन कर इनसे लाभ कमा रहे हैं।  अगर आप भी ग्रामीण है और क्षेत्र में दूध और मांस, दूसरे उत्पाद उद्देश्य से बकरियों का पालन करना चाहते हैं, तो आप बीटल, सोनपरी और ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियों का चयन कर सकते हैं। बकरी फार्मिंग (Goat Farming) व्यवसाय के लिए ये तीन नस्ल काफी लोकप्रिय है तथा इनके मांस और दूध की डिमांड लोगों के बीच खूब है। आइए, बकरियों की इन टॉप 3 तीन नस्ल एवं इनकी खासियतों के बारे में जानते हैं।

बकरियों के पालन को सरकार भी दे रही है बढ़ावा (The government is also encouraging goat rearing)

इस समय देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में भेड़ और बकरी जैसे लघु आकार के पशु बहुत महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इन पशुओं के पालन से लोगों को रोजगार की उपलब्धता भी सुनिश्चित हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के सृजन के लिए लोगों को बकरी पालन से जोड़ा जा रहा है। इसके लिए सरकार कई सरकारी योजनाओं के तहत बकरी एवं भेड़ पालन को बढ़ावा दे रही है। भेड़ एवं बकरी पालन के प्रति लोगों का रुझान बढ़ाने के लिए सरकार हितग्राही को प्रोत्साहन देने के रूप में भारी सब्सिडी और बैंक ऋण के साथ बकरी पालन करने का प्रशिक्षण भी प्रदान कर रही है। कई राज्यों में भेड़ एवं बकरी पालन योजना के तहत उन्नत नस्ल के बकरी / बकरा फार्म की स्थापना के लिए लाभार्थी लोगों को सब्सिडी के साथ प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अधिक जानकारी के लिए आप अपने प्रखंड या जिले के पशुपालन पदाधिकारी से भी संपर्क कर सकते हैं।

बीटल नस्ल की बकरी पहचान एवं उसकी विशेषता (Identification and characteristics of Beetal breed of goat)

बकरियों के पालन में न किसी विशेष प्रकार के आहार आदि की आवश्यकता होती है न ही और किसी खास किस्म के बड़े आवास या विशेष जलवायु की जरूरत पड़ती है। किसी भी नस्ल की बकरियों से  बकरी पालन शुरू किया जा सकता है। हालांकि, अगर आप व्यापारिक स्तर बकरी पालन यूनिट स्थापित करना चाहते है, तो आप बकरी की बीटल नस्ल पाल सकते हैं। बीटल नस्ल की बकरी को वाणिज्यिक बकरी पालने के लिए बहुत ही लाभदायक नस्ल माना जाता है। इस नस्ल की बकरी का पालन महिलाओं और बच्चों की सहायता से बड़ी सुगमता से किया जा सकता है।

बीटल नस्ल की बकरी पहचान एवं उसकी विशेषता (Identification and characteristics of Beetal breed of goat)

बकरियों के पालन में न किसी विशेष प्रकार के आहार आदि की आवश्यकता होती है न ही और किसी खास किस्म के बड़े आवास या विशेष जलवायु की जरूरत पड़ती है। किसी भी नस्ल की बकरियों से बकरी पालन शुरू किया जा सकता है। हालांकि, अगर आप व्यापारिक स्तर बकरी पालन यूनिट स्थापित  करना चाहते हैं, तो आप बकरी की बीटल नस्ल पाल सकते हैं। बीटल नस्ल की बकरी को वाणिज्यिक बकरी पालने के लिए बहुत ही लाभदायक नस्ल माना जाता है। इस नस्ल की बकरी का पालन महिलाओं और बच्चों की मदद से बड़ी सुगमता से किया जा सकता है।

बकरी की बीटल नस्ल में जमुनापारी के बाद बहुत अच्छी दूध देने की क्षमता है। इसे डेयरी बकरी की नस्ल माना जाता है। चमड़े के उत्पाद बनाने के लिए इसकी त्वचा बहुत अच्छी गुणवत्ता की होती है जिसकी बाजार में मांग है। बीटल नस्ल की बकरी विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए अधिक अनुकूल है और यह स्टाल फीड सिस्टम के लिए भी उपयुक्त है। बीटल बकरी नस्ल भारत और पाकिस्तान के पंजाब और हरियाणा क्षेत्र की नस्ल है। इसे अमृतसरी बकरी भी कहा जाता है। हालांकि बीटल की असली नस्ल पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर और फिरोजपुर जिले में पाई जाती है।

बीटल बकरी को मांस और डेयरी दोनों उद्देश्यों के लिए पाला जाता है। बीटल की पहचान इसके लंबे पैर, लंबे और पेंडुलस कान, छोटी और पतली पूंछ है और पीछे की ओर घुमावदार सींग हैं। वयस्क नर बकरी का वजन 50 से 60 किलोग्राम होता है और वयस्क मादा का वजन 35 से 40 किलोग्राम होता है। नर बीटल की लंबाई लगभग 86 सेमी और मादा बीटल की लंबाई करीब 71 सेमी होती है। इस नस्ल की बकरी की प्रति दिन औसत दूध देने की क्षमता 2.0 से 2.25 किलोग्राम है।

बकरी की सोनपरी नस्ल की खासियत (Specialty of Sonpari breed of goat)

मांस उत्पादन के उद्देश्य से बकरियों का पालन करने वाले किसानों के लिए बकरी सोनपरी की नस्ल सबसे बेहतर है। सोनपरी बकरी सिर्फ नाम में ही सोना नहीं है बल्कि यह किसानों की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बनाने के लिए भी जानी जाती है। यह उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की एक खास नस्ल की बकरी है, जिसके कारण इसका नाम भी “सोनपरी” रखा गया है। बकरी कम समय में अच्छा मुनाफा देती है. इस बकरी का मांस काफी स्वादिष्ट होता है।  इसी कारण बाजारों में इसके मांस की डिमांड खूब रहती है। लोग इसे बड़े चाव से खाना पसंद करते हैं। इस बकरी का मांस दूसरी बकरियों के मुकाबले 200 रुपए अधिक महंगा मिलता है, जिस वजह से पशु पालकों को इसे पालने से अच्छा फायदा होता है। बकरी की खास नस्ल सोनपरी बकरी का पालन किसानों के लिए किसी बैंक एफडी से कम नहीं है। इसे पालना बहुत आसान है। आप इसे किसी भी परिस्थिति में आराम से पाल सकते है।

सोनपरी बकरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये एक बार चार बच्चे भी दे सकती है, जिससे आपको एक साथ चार बकरे या बकरी मिल जाएंगे। इसकी दूसरी खासियत ये है कि इससे अच्छा खासा बकरी के दूध उत्पादन भी मिलता है और यह बकरी जल्दी बीमार नहीं पड़ती। अन्य दूसरी नस्ल की बकरियों के मुकाबले इसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। सोनपरी नस्ल की बकरियों की पहचान यह है कि यह दिखने में सोने की तरह और बहुत खूबसूरत होती है। जिस कारण ग्राहक इसकी तरफ जल्दी आकर्षित होते हैं। यह मध्यम आकार की बकरी होती है और इसका रंग गहरा भूरा होता है। सोनपरी के सींग नुकीले और पीछे की तरफ मुड़े हुए होते हैं और इसकी पीठ पर काले बाल होते हैं। इस नस्ल की वयस्क बकरी का वजन 25 से 28 किलो के बीच होता है। सोनपरी बकरी रोजाना आधा से 1 लीटर तक दूध देती है। अन्य बकरियों की तुलना में सोनपरी बकरी का पालन किसानों के लिए फायदेमंद होता है।

ब्लैक बंगाल बकरी उत्पत्ति, इतिहास और विशेषताएं (Black Bengal Goat: Origin, History and Characteristics)

ब्लैक बंगाल बकरी एक बहुत ही आम और लोकप्रिय बकरी की नस्ल है। ब्लैक बंगाल बकरी की नस्ल दक्षिण एशिया के बंगाल क्षेत्र (भारत के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश) से उत्पन्न हुई है। ब्लैक बंगाल बकरी अपने मूल क्षेत्र में एक बहुत लोकप्रिय बकरी की नस्ल है और इसकी कीमत भी बहुत अधिक है। मौजूदा कीमत के बारे में जानने के लिए अपने स्थानीय पशुधन बाजार में संपर्क कर सकते हैं। यह नस्ल इस क्षेत्र की मूल जंगली बकरियों से उत्पन्न हुई है और इसकी वांछनीय विशेषताओं के लिए इसे बकरी पालन के लिए सदियों से चुनिंदा रूप से पाला जाता रहा है। इस बकरी की नस्ल को इसके बेहतरीन गुणवत्ता वाले मांस, दूध और त्वचा (प्राचीन काल से) के लिए बेशकीमती माना जाता था।

समय के साथ, अनुकूलनशीलता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और उच्च उत्पादकता के लिए इसकी प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में फैल गई। ब्लैक बंगाल बकरी की छाती चौड़ी होती है, कान ऊपर की ओर तथा सींग छोटे या मध्यम आकार के होते हैं। इनका शरीर कसा हुआ और अन्य नस्लों की बकरियों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटा होता है। त्वचा के बाल काले और चिकने होते हैं।

ब्लैक बंगाल बकरियां वास्तव में काले और सफेद निशानों, ग्रे, भूरे और यहां तक कि अल्पाइन और ओबरहास्ली बकरियों के समान निशानों सहित कई रंगों में पाई जाती है। ब्लैक बंगाल नस्ल के  वयस्क नर बकरियों का औसत वजन लगभग 25 से 30 किलोग्राम, और मादा बकरियों का औसत वजन लगभग 20 से 25 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की नर और मादा दोनों बकरियां  9 से 10 महीने की उम्र में परिपक्वता तक पहुंच जाती हैं। बकरी की यह नस्ल 12 से 15 महीने की उम्र में बच्चे पैदा करना शुरू कर देती है। यह हर बार 2 से अधिक बच्चे पैदा कर सकती है। इस नस्ल के बकरे से लगभग 11 किलो खाने योग्य मांस और उच्च गुणवत्ता वाली खाल प्राप्त की जा सकती। ब्लैक बंगाल की बकरियों का मांस उच्च गुणवत्ता का होता है और बाजार में इसकी बहुत मांग है। इस बकरी का दूध और मांस दोनों ही अन्य बकरियों की तुलना में बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं । हालांकि, इनका दूध उत्पादन अन्य कई बकरियों की नस्लों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।

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