Advance of Southwest Monsoon : भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने दक्षिण-पश्चिम मानसून प्रगति के लिए ताजा पूर्वानुमान जारी किया है। इसके अनुसार, अगले 2-3 दिनों में केरल में मानसून के आगमन के लिए परिस्थितियां अनुकूल होने की संभावना है। आईएमडी ने बताया कि दक्षिण अरब सागर के कुछ और हिस्सों, मालदीव और कोमोरिन क्षेत्र के शेष हिस्सों, पूरे लक्षद्वीप क्षेत्र और केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के कई हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगे बढ़ने के लिए भी परिस्थितियां अनुकूल होने की संभावना है। तटीय आंध्र प्रदेश और रायलसीमा के कुछ हिस्से; दक्षिण और मध्य बंगाल की खाड़ी, उत्तरी बंगाल की खाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में सप्ताह के शेष दिनों में बारिश की संभावना है। ऐसे में मानसून के आगमन से पहले का यह समय खेती के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, ग्रीष्मकाल वह समय होता है, जब खेतों की कृषि गतिविधियां भले ही थमी हुई प्रतीत होती है, लेकिन असल में यह भूमि के सुधार, शोधन और तैयारी का सबसे व्यस्त और रणनीतिक (अप्रैल से जून) का समय होता है। इस काल में कुछ महत्वपूर्ण ग्रीष्मकालीन कृषण क्रियाएं करके किसान भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार करते हुए, फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं। आइए, इन ग्रीष्मकाल अर्थात मानसून से पहले खेतों में की जाने वाली अत्यंत महत्वपूर्ण कृषण क्रियाओं के बारे में जानते हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कहा है कि दक्षिण कोंकण-गोवा के पास पूर्व-मध्य अरब सागर पर एक निम्न दबाव का क्षेत्र बना हुआ है। अगले 36 घंटों के दौरान इसके उत्तर की ओर बढ़ने और एक अवसाद में और तीव्र होने की संभावना है। इसके बाद इसके और तीव्र होने की भी संभावना है। एक ऊपरी हवा का चक्रवाती परिसंचरण पंजाब और दूसरा दक्षिण-पूर्व उत्तर प्रदेश से सटे उत्तर-पूर्व मध्य प्रदेश के निचले क्षोभमंडलीय स्तरों पर बना हुआ है। इसके चलते अगले 6 से 7 दिनों के दौरान केरल, कर्नाटक में भारी से बहुत भारी वर्षा के साथ-साथ गरज, बिजली और 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से तेज हवाएं चलने के साथ-साथ व्यापक रूप से हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है। इसके अलावा, गुजरात, कोंकण और गोवा, कर्नाटक और केरल में भारी से बहुत भारी वर्षा के साथ-साथ कुछ इलाकों में हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है।
आईएमडी के अनुसार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, विदर्भ, ओडिशा, गुजरात राज्य के अलग-अलग हिस्सों में; गंगा के पश्चिमी बंगाल, झारखंड के कुछ हिस्सों में 36 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच है। वहीं, बिहार, जम्मू संभाग, तटीय आंध्र प्रदेश और यनम, रायलसीमा, तेलंगाना के अलग-अलग हिस्सों और देश के शेष हिस्सों में यह 36 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ है। देश भर में सबसे अधिक अधिकतम तापमान 47.6 डिग्री सेल्सियस गंगानगर (पश्चिम राजस्थान) में दर्ज किया गया। मौसम की यह विशेष परिस्थितियां जहां तेज गर्मी की चुनौतियां पेश करती है, वहीं दूसरी ओर यह भूमि के दीर्घकालिक सुधार के लिए एक अनमोल अवसर भी प्रदान करती हैं। क्योंकि यह काल केवल फसल बोने का ही समय नहीं है, अपितु यह, वह समय है, जब किसान भविष्य की पैदावार के लिए भूमि को अच्छे से तैयार कर सकते हैं।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसान पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक कृषि यंत्रों और तकनीकों का भी सहारा ले रहे हैं जैसे ट्रैक्टर, सबसॉइलर, चिजल प्लाऊ, मल्चर, लेजर लैंड लेवलर और अब तो ड्रोन जैसी तकनीकों ने खेतों की तैयारी को पहले से कहीं अधिक सटीक और गुणवत्तापूर्ण बना दी है। इन आधुनिक कृषि यंत्रो की सहायता से ग्रीष्मकालीन कृषण क्रियाओं में भूमि की तैयारी प्रक्रिया को और भी अधिक सरल और प्रभावशाली बना दिया है। इसके अलावा, सरकार की विभिन्न अनुदान योजनाएं भी किसानों को इन संसाधनों तक पहुंचने में मददगार साबित हो रही है। अतः यह स्पष्ट है कि मानसून की बारिश शुरू होने से पहले का यह समय केवल “खाली समय” नहीं है, बल्कि यह आने वाले कृषि चक्र की सफलता की नींव है। अगर किसान भाई इस समय का रणनीतिक और वैज्ञानिक विधियों के उपयोग से भूमि सुधार करते है, तो उनकी फसल पैदावार, मुनाफा और मिट्टी की सेहत- तीनों में संतुलन और सुधार निश्चित है।
मौसम विभाग के अनुसार, अगले 24 घंटों के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत में अधिकतम तापमान में 2-4 डिग्री सेल्सियस की गिरावट, उसके बाद अगले 3 दिनों में 2-3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि और उसके बाद कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं। वहीं, अगले 4 दिनों के दौरान मध्य भारत में अधिकतम तापमान में 2-4 डिग्री सेल्सियस की गिरावट और उसके बाद के 3 दिनों में 2-3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है। इसके अलावा, देश के शेष हिस्सों में अधिकतम तापमान में कोई महत्वपूर्ण बदलाव होने की कोई संभावना नहीं है। इस दौरान, खेती में जाने वाली प्रमुख गतिविधियां जैसे- खेत की गहरी जुताई, मिट्टी सुधार, सौर कीट नियंत्रण, खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई प्रबंधन, ढेलों की तुड़ाई, जुताई, बखराई, खेत समतलीकरण के लिए पाटा चलाना आदि से किसान खेत को आगामी खरीफ फसलों के लिए तैयार कर सकते हैं।
इन क्रियाओं से भूमि में फफूंद, बैक्टीरिया और सूत्रकृमि (निमेटोड्स) नष्ट होते हैं, गहरी जुताई के द्वारा मृदा सौरीकरण एक प्राकृतिक और प्रभावी तरीका है। इससे फसलो में रोग कम आते हैं। इसके अलावा, खरपतवार के बीज और जड़ें उच्च तापमान से नष्ट हो जाती है। सथा ही फसलों के लिए लाभकारी जीव जैसे ट्राइकोडर्मा, एज़ोटोबैक्टर, फॉस्फो बैक्टीरिया आदि सुरक्षित रहते है। इन क्रियाओं का उद्देश्य खेत में मौजूद खरपतवारों, कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करना, मिट्टी के तापमान को संशोधित करना, मिट्टी की कठोर परतों को तोड़ना , जल निकासी की सुविधा में सुधार करना, कुशल जल प्रबंधन के लिए खेत को समतल करना है। इन कृषि क्रियाओं के माध्यम से भूमि को फसलों के लिए इस प्रकार तैयार किया सकता है कि बीज के अंकुरण और वृद्धि के लिए एक आदर्श वातावरण प्राप्त हो सके। गहराई से मिट्टी को पलटने और भुरभुरा करने से जड़ों का मिट्टी में बेहतर प्रवेश और प्रसार संभव होता है, जिससे पौधों को पोषक तत्व और नमी सहजता से उपलब्ध होती है और मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y