देश में गर्मी का दौर शुरू हो गया है। इस बार कैसी गर्मी पड़ेगी और मानसून का सीजन कैसा रहेगा? इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अप्रैल से जून 2025 के बीच भारत के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक तापमान दर्ज किया जाएगा। मानसून सीजन में सामान्य से अधिक बारिश होगी। जून से सितंबर 2025 के बीच भारत में दीर्घकालिक औसत (LPA) से 105% वर्षा होने की संभावना है, जो सामान्य से अधिक मानी जाती है। अगर मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही पाई गई तो यह लगातार 10वां साल होगा जब मानसून की बारिश सामान्य या उससे ऊपर ही रही है। आईएमडी के मानसून पूर्वानुमान 2025 की घोषणा से किसानों के बीच खुशी की लहर है। आइए, ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट से जानें कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) का मानसून पूर्वानुमान 2025 क्या कहता है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार इस बार मानसून सीजन में अल नीनो का नकारात्मक असर मानसून पर नहीं पड़ेगा, जो अच्छी बारिश के संकेत है। आईएमडी के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा ने जानकारी दी है कि इस वर्ष भारत में जून से सितंबर तक चलने वाले चार महीने के मानसून सीजन के दौरान सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि मानसून के दौरान देश में लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) की कम से कम 105 प्रतिशत बारिश होने का अनुमान है, जिसे 'सामान्य से अधिक' की श्रेणी में रखा जाता है। महापात्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि इस बार मानसून को कमजोर करने वाला वैश्विक जलवायु कारक अल नीनो विकसित होने की संभावना नहीं है।
आईएमडी ने यह भी स्पष्ट किया है कि पूरे देश में समान बारिश नहीं होगी। किसी राज्य में कम तो कहीं ज्यादा बारिश होगी। पूर्वोत्तर भारत, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, बिहार और लद्दाख जैसे राज्यों में सामान्य से कम बारिश की संभावना है। इसके विपरीत मराठवाड़ा, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सामान्य से अधिक वर्षा की उम्मीद है।
आईएमडी प्रमुख मृत्युंजय महापात्र के अनुसार, मानसून को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख वैश्विक कारकों में से दो – ENSO (एल नीनो/ला नीना) और Indian Ocean Dipole – इस साल सामान्य स्थिति में रहेंगे। तीसरा कारक, हिमालय और यूरेशिया में बर्फ की परत, इस बार अपेक्षाकृत कम है, जो मानसून के लिए अनुकूल संकेत माना जाता है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक एम. महापात्रा के अनुसार, उत्तरी गोलार्ध और यूरेशिया में जनवरी से मार्च के बीच बर्फबारी कम हुई है, और इसका मानसून से उल्टा संबंध होता है। यानी बर्फबारी कम होने से मानसून बेहतर होने की संभावना बढ़ जाती है, जो इस साल अच्छी बारिश के लिए अनुकूल संकेत है।
उन्होंने यह भी बताया कि एल नीनो और हिंद महासागर डायपोल (IOD) जैसी वैश्विक जलवायु स्थितियां, जो मानसून को प्रभावित करती हैं, इस समय न्यूट्रल यानी सामान्य स्थिति में हैं। उम्मीद है कि ये स्थितियां पूरे मानसून सीजन में ऐसी ही बनी रहेंगी, जिससे बारिश पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
मौसम विभाग ने यह भी चेतावनी दी है कि अप्रैल से जून के बीच देश के कई हिस्सों में अत्यधिक गर्मी और लू की स्थिति बन सकती है। इससे बिजली और पानी की मांग में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। गौरतलब है कि भारत की लगभग 42.3% आबादी खेती पर निर्भर है और कृषि देश की जीडीपी का लगभग 18.2% हिस्सा है। ऐसे में मानसून की अच्छी बारिश देश की आर्थिक स्थिति और खाद्य सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। मौसम विशेषज्ञों ने हालांकि यह भी कहा है कि जलवायु परिवर्तन के चलते अब कम समय में अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे बाढ़ और सूखे दोनों की आशंका बनी रहती है। ऐसे में मानसून के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
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