धूल और मिट्टी में कैसे करें अंतर, जानें 8 प्रकार की मिट्‌टी के बारे में पूरी जानकारी

पोस्ट -11 मई 2023 शेयर पोस्ट

मिट्टी और धूल में कैसे करें सही पहचान, फसल के लिए कौन है ज्यादा बेहतर

यदि आप बागवानी करने का शौक रखते हैं तो आपको जमीन का सही चयन करना चाहिए। बागवानी हो या फिर किसी भी प्रकार की खेती यदि जमीन की मिट्टी उपजाऊ किस्म की होगी तो वहां हर तरह के पौधों का विकास तेजी से होता है। फसल उत्पादन में भी मिट्‌टी (SOIL) का बहुत बड़ा योगदान है। कई बार ऐसे स्थान पर बागवानी या खेती की जाती है जहां मिट्टी में धूल (DUST) मिश्रित हो जाती है। धूल उपजाऊ मिट्टी की गुणवत्ता को भी कमजोर कर देती है। ऐसे में किसान भाइयों को मिट्टी की सही पहचान कर लेनी चाहिए। आजकल तो कृषि विभाग की प्रयोगशालाओं में  निशुल्क मिट्टी परीक्षण किया जाता है। बेहतर यह रहेगा कि आप अपने खेत की मिट्टी की जांच कराएं ताकि जमीन की सेहत का सही पता लग सके। पौधों के विकास के लिए मिट्टी में उर्वरता का गुण होना चाहिए।  मोटे तौर पर मिट्टी में कई पोषक तत्वों का समावेश होता है। इनमें खनिज, पानी, हवा, कार्बनिक पदार्थ, बैक्टीरिया, कवक आदि शामिल है। वहीं धूल पोषकता से रहित यानि बेकार होती है। यहां ट्रैक्टर गुरू की वेबसाइट पर इस पोस्ट में आपको धूल और मिट्टी की असली पहचान कराते हुए बागवानी के गुर सिखाए जा रहे हैं।  इसे अवश्य पढ़ें और शेयर करें।

मिट्टी में ही फलते-फूलते हैं पौधे

यह बात अक्सर सभी जानते हैं कि मिट्टी में ही पौधे विकसित हो सकते हैं लेकिन इस मिट़्टी में धूल के कणों की मात्रा ज्यादा होगी तो पौधों का विकास अवरुद्ध हो सकता है। इसलिए मिट्टी को धूल से ज्यादा तवज्जो दी जाती है। धूल से हर कोई बचना चाहते हैं। मिट्टी में कई प्रकार के कार्बनिक और अकार्बनिक तत्व होते हैं जो पौधों की बढ़त और इनके फलने फूलने में मददगार होते हैं। वहीं मिट्टी में ज्यादा दिनों तक नमी टिक सकती है जबकि धूल में पोषक पदार्थों की कमी के कारण लंबे टाइम तक नमी नहीं रह सकती। इसमें नमी धारण करने की कैपेसिटी नहीं होती। इस तरह से देखा जाए तो खास तौर पर बागवानी में मिट्टी में धूल को नहीं मिलने दें। जिस खेत में जितनी अधिक उपजाऊ मिट्टी होगी उसमें उत्पादन भी उतना ही अच्छा होता है।

जानें, उपजाऊ मिट्टी की क्वालिटी

किसान भाइयों को बता दें कि पौधों के विकास में किस प्रकार की मिट्टी ज्यादा सहायक होती है। अक्सर दोमट किस्म की मिट्टी में हर प्रकार के पौधों का विकास तेजी से होता है। यह काले रंग की होती है। इसमें 40 प्रतिशत सिल्ट, 20 प्रतिशत चिकनी मिट्टी और 40 प्रतिशत बालू होती है। इसके अलावा लाल, पीली, सफेद और भूरे रंग की मिट्टी में भी उपजाऊपन होता है। इस तरह की मिट्टी में गुणवत्ता विद्यमान रहती है।

बागवानी में धूल करती है नुकसान

बागवानी में धूल पौधों के लिए पूरी तरह से नुकसान पहुंचाएगी। इससे पौधों में बढ़त नहीं होगी। धूल की परत को हटा देना चाहिए। इसमें कई प्रकार के रसायन और हानिकारक कीटनाशक आदि की भी मात्रा मिल जाती है। ऐसे में धूल किसी तरह से लाभदायक नहीं है।

मृदा या मिट्टी के बिना खेती संभव नहीं

आप किसी प्रकार की फसल अपने खेत में पैदा करना चाहते हैं लेकिन उसमें यदि धूल या रेत की मात्रा अधिक है तो फसलों का उत्पादन तो दूर उसमें बीजों का सही तरीके से अंकुरण भी नहीं होगा। खेती और बागवानी में मिट्टी बहुत जरूरी तत्व है। इसके बिना खेती की कल्पना नहीं की जा सकती।

भारत में पाई जाती है 8 तरह की मिट्टी

भारत में खेती और बागवानी की दृष्टि से देखा जाए तो 8 प्रकार की मृदा पाई जाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार 8 प्रकार की यह मिट्टी इस प्रकार है-:

1. काली मिट्टी

भारत में काली मिट्‌टी  महाराष्ट्र, गुजरात क्षेत्रों में मिलती है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस की मात्रा नहीं पाई जाती। वहीं मैग्नीशियम, चूना, लोहा आदि तत्व होते हैं।

2. जलोढ़ मिट्टी

इसमें नाइट्रोजन या फास्फोरस की मात्रा कम होती है। यह नदियों के किनारे या आसपास के क्षेत्र में मिलती है। इस प्रकार की मिट्टी में धान, कपास, मसूर, चना आदि की फसल की पैदावार ज्यादा होती है।

3. लाल मिट्टी

यह मिट्‌टी तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक पाई जाती है। इसका लगभग  5.18 लाख वर्ग किलोमीटर एरिया है। इसमें आयरन ऑक्साइड की मात्रा ज्यादा होती है। इसी के कारण इसका रंग लाल होता है। इस मिट्टी में मूंगफली, अरहर, बाजरा, मक्का आदि की फसलें बोई जाती हैं।

4. लैटराइट मिट्टी

यह मिट्टी भारत के कर्नाटक और तमिलनाडु में मिलती है। इसमें लोह, ऑक्साइड, एल्यूमिनियम ऑक्साइड आदि तत्व पाए जाते हैं। इसमें कॉफी की फसल लगाई जाती है।

5. शुष्क मृदा

इस किस्म की मिट्‌टी में लवण एवं फास्फोरस की मात्रा ज्यादा होती है। यह तिलहन उत्पादन के लिए सही है। इसे मरूस्थलीय मिट्‌टी भी कहा जाता है।

6. वन मृदा

यह भारत के सघन जंगलों में मिलती है। इसमें पौधे तेजी से पनपते हैं। वहीं यह मजबूत किस्म की मिट्‌टी है। 

7. जैविक मृदा

यह मिट्‌टी दलदली कही जाती है। केरल, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में इसकी बहुतायत है। फसल उत्पादन अच्छा होता है क्योंकि जैविक तत्व  भरपूर मात्रा में होते हैं जो खाद का काम करते हैं। 

8.लवणीय या क्षारीय मिट्‌टी

यह मिट्टी समुद्र के तटीय मैदानों पर मिलती है। इसमें नाइट्रोजन कम होती है। यह जल एकत्र करने वाली होती है जल निकास इसमें संभव नहीं होता। 

निष्कर्ष: - मिट्टी और धूल की पहचान और बागवानी विकास के संदर्भ में कुल मिला कर यही कह सकते हैं कि सब कुछ मिट्टी पर ही निर्भर है। मिट्टी में ही फसलें लहलहाती हैं। धूल में तो बीज भी नहीं उगते।  

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