खेती में फसलों की बुवाई से लेकर उत्पादन तक फसलों में कीटों, रोग एवं आवारा-छुट्टा पशु और जंगली जानवरों से नुकसान का खतरा बना रहता है। समय रहते यदि इनपर ऐतिहात ना बरतें तो फसल पर भारी नुकसान हो सकता है। कई बार तो इन परेशानियों के कारण किसानों को फसल उत्पादन में काफी नुकसान का सामना भी करना पड़ता है। ऐसे में किसान इन सभी प्रकार की परेशानियों से निजात पाने के लिए कई प्रकार के केमिकल का छिड़काव करते है। बता दें कि इन केमिकल के छिड़काव से इन सभी प्रकार की परेशानियों से निजात तो मिल जाता है। लेकिन इनके कई दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते है। इन्हीं दुष्प्रभाव एवं स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने कुछ केमिकल पर प्रतिबंध लगाया है। जिनमें हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट भी शामिल है। दरअसल, हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट का सबसे अधिक उपयोग सोयाबीन, फील्ड कॉर्न, चारागाह और घास में किया जाता है। केंद्र सरकार द्वारा हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट के बिक्री और उपयोग पर बैन लगाने के बाद तमिलनाडु सरकार ने तमिलनाडु में भी हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट के बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। स्टालिन सरकार ने हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट के उपयोग से मनुष्य और जानवर के स्वास्थ्य संबंधी खतरों और जोखिमों को देखते हुए यह फैसला लिया है।
तमिलनाडु सरकार ने केंद्र के निर्णय पर अमल करते हुए हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट के बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया हैं। इससे पहले भारत में केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में इस पर पहले ही राज्य सरकारें प्रतिबंध लगा चुकी हैं। सरकार का बैन का फैसला जहां देश की नागरिकों की सेहत के लिहाज से एक अच्छी खबर है, वही किसानों पर इसका कुछ हद तक बुरा असर पड़ेगा। क्योंकि किसानों के बीच राउंडअप नाम से मशहूर हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट फसलों में खरपतवार को समाप्त करने के लिए काफी प्रभावी और बहुत सस्ता खरपतवारनाशक है। इसलिए भारत में इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है। इसी वजह से ग्लाइफोसेट की बहुत ज्यादा बिक्री होती है।
बता दें कि हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट को मोन्सेंटा कंपनी ने वर्ष 1974 में इसे बनाया था। यह एक प्रभावी और बहुत सस्ता खरपतवारनाशक है। इसलिए व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल होता है। जब मोन्सेंटा कंपनी 1974 में राउंडअप ब्रांड नाम के तहत हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट को बाजार में उतारा गया, तो इसे बहुत सुरक्षित माना गया था। किन्तु, पिछले कुछ वर्षों में यह विवादों में ही रहा है। साल 2018 में अमेरिका के एक माली को कैंसर होने पर ग्लाइफोसेटे बनाने वाली कंपनी मोन्सेंटो को 29 करोड़ डॉलर हर्जाना देना पड़ा था। हालांकि, कंपनी का कहना था कि ग्लाइफोसेट से कैंसर नहीं होता है। इन्हीं घटना को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने पूरे विश्व में विवाद का केंद्र बने खरपतवारनाशक हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है। किसानों के बीच राउंडअप नाम से मशहूर इस हर्बीसाइड से कैंसर होने का खतरा बताया जाता है।
हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट पर बैन के लिए सरकार ने नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। नए नियमों के तहत राउंडअप नाम से मशहूर ग्लाइफोसेट का उपयोग अब तमिलनाडु में प्रतिबंधित हो गया है। अब तमिलनाडु में भी हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट के बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगने के बाद यह के कृषि निदेशक राज्य के सभी जिलों के संयुक्त निदेशकों को ग्लाइफोसेट थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को इसकी बिक्री रोकने के आदेश जारी करने के निर्देश दिए हैं। वहीं, गोदाम और दुकान में स्टॉक किए गए ग्लाइफोसेट का सही आकलन करने का आदेश भी दिया है। उन्होंने कहा कि निर्देश में ये भी जानकारी दी जाएगी कि ग्लाइफोसेट और उसके डेरिवेटिव केवल कीट नियंत्रण ऑपरेटरों (पीसीओ) को ही बेचे जाने चाहिए। साथ ही विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को बिल और बिक्री रिपोर्ट संबंधित हर जानकारी सहायक निदेशक के सामने हर महीने पेश करनी होगी।
मोन्सेंटा कंपनी द्वारा बनाया गया हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट एक प्रभावी और बहुत सस्ता खरपतवारनाशक है। ग्लाइफोसेट और इसके फॉर्मूलेशन व्यापक रूप से पंजीकृत हैं। राउंडअप नाम से मशहूर ग्लाइफोसेट का उपयोग वर्तमान में यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 160 से अधिक देशों में किए जा रहा हैं। दुनिया भर के किसान इस खरपतवारनाशक का उपयोग करीब 40 वर्षों से अधिक समय से कर रहे है। पूरे विश्व में विवाद का केंद्र बने खरपतवारनाशक ग्लाइफोसेट पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रतिबंध अधिसूचना में कहा गया कि ग्लाइफोसेट का उपयोग प्रतिबंधित है और कोई भी व्यक्ति कीट नियंत्रण ऑपरेटरों (पीसीओ) को छोड़कर ग्लाइफोसेट का उपयोग नहीं करेगा। नए नियमों के तहत ग्लाइफोसेट का उपयोग अब भारत में प्रतिबंधित है।
राउंडअप नाम से मशहूर ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल चाय बागानों में भी लगभग चार दशकों से खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता रहा है। तमिलनाडु सरकार द्वारा हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट के बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा देने से अब चाय उत्पादकों की लागत बढ़ जाएगी। यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ साउथ इंडिया (यूपीएएसआई) ने हाल ही में कहा था कि यूपीएएसआई ने पहले कृषि मंत्रालय को सूचित किया था कि पीसीओ ज्यादातर शहरों में उपलब्ध भारत में लाइसेंस प्राप्त पीसीओ की वर्तमान कुल संख्या देश में 5.66 लाख हेक्टेयर में फैले चाय बागानों की सेवा के लिए वास्तविक आवश्यकता से बहुत कम है।
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