ग्रामीण आबादी पशुपालन के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर रही है। आज गांवों में लोगों के लिए पशुपालन एक अच्छी कमाई का जरिया बनता जा रहा है। गांव-गांव में लोग गाय-भैंस का पालन कर उनसे दूध उत्पादन एवं दूध से बने उत्पादों का बिजनेस शुरू कर अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं। दूध उत्पादन के उद्देश्य से पशुपालन में कुछ नस्ल की भैंसों का पालन पशुपालकों द्वारा मुख्य रूप से किया जाता है।
डेयरी बिजनेस : जानिए सालाना 5 हजार लीटर दूध देने वाली भैंस की टॉप 5 नस्लों के बारे में
Top 5 Breeds of Buffalo : देश में डेयरी फॉर्मिंग का बिजनेस तेजी से अपने पैर फैला रहा है। दूध और दूध से बने उत्पादों की बढ़ती मांग ने इस कारोबार को और अधिक मुनाफेदार बना दिया है। आज देश की एक बड़ी आबादी खेती के साथ-साथ गाय-भैंसों का पालन कर उनसे उत्पादित दूध और दूध से बनने वाले डेयरी प्रोडक्ट्स को बेचकर अच्छी आय ले रहे हैं। इसके अलावा पशुओं का मूत्र और गोबर भी उनकी आय बढ़ा रहा है। देश की ग्रामीण आबादी दूध उत्पादन के लिए गाय-भैंस का मुख्य रूप से पालन करते हैं। गांव-गांव में पशुपालक और किसान ज्यादा दूध उत्पादन के लिए आज कई देशी-विदेशी नस्लों की गाय-भैंसों का पालन कर उनसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन कर अपनी आय में वृद्धि करते दिख रहे हैं। इनमें केंद्र के साथ राज्य सरकारें भी विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत उनकी मदद कर रही है। जिसके चलते आज पशुपालन ग्रामीण इलाकों की ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण जरिया बना गया है।
ऐसे में हम आज पशुपालकों और किसान भाईयों के लिए भैंसों की टॉप 5 ऐसी नस्ल की जानकारी लेकर आए हैं, जो सालभर में 2,500 से 5,000 लीटर तक दूध दे सकती है। इन नस्ल की भैंस का देखरेख का लागत खर्च भी कम होता है और इनके दूध में वसा की मात्रा एवं अन्य पोषक तत्व भी अधिक पाए जाते हैं। इसके कारण इन नस्ल की भैंस की मांग डेयरी फॉर्मिंग में बड़े स्तर पर है। आप इन नस्ल की भैंस का पालन कर इनके दुग्ध उत्पादन से काफी मोटी कमाई डेयरी बिजनेस से कर सकते हैं।
मुर्रा भैंस : दुग्ध उत्पादन क्षमता 2400-3000 लीटर
गांव में किसान और पशुपालक दुग्ध उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा भैंस का पालन करते हैं। डेयरी फॉर्मिंग या पशुपालन में सबसे अधिक जिस नस्ल की भैंस का पालन किया जाता है वह मुर्रा भैंस है। इस नस्ल की भैंस की कीमत लाखों-करोंड़ाें रुपए में होती है। मुर्रा नस्ली भैंस वजनदार और दिखने में आकर्षक होती है। इस नस्ल की भैंस का वजन 800 से 1 हजार किलोग्राम के बीच होता है। सामान्य नस्ल की भैंस के मुकाबले मुर्रा नस्ली भैंस 2 से 3 गुना ज्यादा दूध दे सकती है। जहां सामान्य नस्ल की भैंस 6 से 8 लीटर दूध प्रतिदिन देती है। वहीं, मुर्रा नस्ल की भैंस 20-25 लीटर प्रतिदिन दूध दे सकती है। इस दूध की उत्पादन क्षमता को खानपान बेहतर कर बढ़ाया भी जा सकता है। मुर्रा नस्ल की भैंस मूल रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब के नाभा, पटियाला, दिल्ली और राजस्थान के कई जिलों में पाई जाती है।
नीली रावी नस्ली भैंस
नीली रावी नस्ली भैंस का मूल स्थान पंजाब की सतलज घाटी है। यह एक फेमस क्रॉस ब्रीडिंग वाली भैंस नस्ल है। इस नस्ल का पालन उत्तर प्रदेश के बरेली, मुरादाबाद, रामपुर जिलों में भी बहुत संख्या में किया जाता हैे। फिरोजपुर के ग्रामीण इलाकों में पाई जाने वाली इस नस्ल की भैंस सेहत की दृष्टि से काफी मजबूत होती है। भैंस के सिर का ऊपरी भाग उत्तल होता है, एक रेखा इसे दो भागों में बांटती है और इनका ललाट धंसा हुआ होता है और चेहरा सुंदर होता है। इस नस्ल के कुछ पशुओं में सफेद निशान पाए जाते हैं और कुछ में नहीं पाए जाते हैं। इस नस्ली भैंस के नथुने चौड़े-चौड़े होते हैं। नीली रावी भैंसें दुधारू होती है। एक ब्यांत में इनका औसत दुग्ध उत्पादन 2500 से 5000 किलोग्राम तक होता है। इसके दूध में वसा 10 प्रतिशत से अधिक मिलता है।
भदावरी भैंस
इस अनोखी नस्ल की भैंस का मूल स्थान भदावर क्षेत्र है, जो इटावा, आगरा, भिण्ड, मुरैना तथा ग्वालियर जनपद के कुछ हिस्सों को मिलाकर बना है। भैंस की यह नस्ल आगरा की बाह तहसील, भिंड तथा अटेर तहसील, इटावा (बढ़पुरा, चकरनगर), ओरैय्या तथा जालौन जिलों में यमुना तथा चंबल नदी के आस-पास के क्षेत्रों में पाई जाती है। भदावरी नस्ल की भैंस का शारीरिक आकार मध्यम, रंग ताबिया और शरीर पर बाल कम होते हैं। इस नस्ल की भैंस की टांगे छोटी तथा घुटने से नीचे का हिस्सा हल्के चीले सफेद रंग का होता है। सिर के अगले हिस्से पर आंखों के ऊपर वाला भाग सफेदी लिए हुए होता है। गर्दन के निचले भाग पर दो सफेद धारियां होती है। सींग तलवार के आकार का होता है। भदावरी भैसें एक ब्यांत (लगभग 300 दिन) में 1600 से 1800 किलोग्राम दूध उत्पादन देती है। इस प्रजाति की भैंस मुर्रा भैंसों के मुकाबले कम दूध देती है, लेकिन इनके दूध में वसा की मात्रा अधिक होती है, जिससे इसके दूध की सर्वाधिक मात्रा घी में परिवर्तित की जाती है।
गोदावरी भैंस
गोदावरी भैंस की प्राप्ति दक्षिण भारतीय राज्य आंध्रप्रदेश से होती है। प्रदेश के गोदावारी जिले से भैंस की ये प्रजाति बाकी राज्यों तक पहुंची है। भैंस की इस नस्ल की रोग प्रतिरोधक क्षमता गजब की है। इस नस्ल की भैंस के शरीर का रंग हल्का भूरा, काला तथा सिलेटी होता है। इन नस्ल की भैंस की देखरेख में ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता तथा इसके दूध की क्वालिटी भी बेहतर होती है। इस नस्ल के दूध में अच्छा खासा फैट पाया जाता है। गोदावरी नस्ल प्रति ब्यात 1500 से 2000 लीटर तक दूध देती है।
जाफराबादी भैंस
भैंस की यह नस्ल सबसे मजबूत कद-काठी वाली सबसे भारी नस्लों में से एक है। जाफराबादी भैंस मूल से रूप से गुजरात के गिर के जंगलों में पायी जाती है। परंतु इस नस्ल की भैंस का पालन कच्छ व जामनगर जिले में अधिक होता है। भैंस की इस प्रजाति का सिर तथा गर्दन का आकार भारी होता है। माथा काफी चौड़ा, सींग का आकार काफी बड़ा और पीछे की तरफ मुड़ा हुआ होता है। इस नस्ल की भैंस का रंग गहरा काला होता है। जाफराबादी नस्ल की भैंस का औसत दुग्ध उत्पादन प्रति ब्यात 1500 से 1800 लीटर होता है।
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