आज के समय में हर किसान चाहता है कि खेती से उसकी आय दोगुनी हो एवं उसकी उगाई हुई फसल अच्छे दाम पर बिक जाए। हांलिक देश के कई राज्यों के किसान पारंपरिक फसलों की खेती के साथ-साथ बागवानी फसलों की खेती एवं कमर्शियल फसलों की खेती से कम मेहनत और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा रहे है। आज के दौर में कमर्शियल फसलों में औषधीय फसल और मसालों की फसलों की खेती की और किसान विशेष ध्यान दे रहे है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारें भी उन्हें प्रेरित कर रही है। दरअसल भारत में सदियों से औषधीय मसालों की खेती होती आ रही है। देश के अधिकतर किसान औषधीय मसालों की खेती से भारी मुनाफा भी कमा रहे हैं। जिनमें से कलौंजी की खेती अब देश के कई हिस्सों में किसान करने लगे है। कम मेहतन और कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली कलौंजी की खेती की में अब किसान रूची दिखा रहे। कलौंजी की फसल अब किसानों की आय का मुख्य जरिया बनती जा रही हैं। यदि किसान भाई कम मेहतन और कम लागत में अधिक मुनाफा कमाना चाहते है, तो इसके लिए कलौंजी की खेती का विकल्प चुन सकते हैं। ट्रैक्टगुरू के इस लेख में हम आपकों कलौंजी की खेती से संबंधित पूरे तरीके की जानकारी देने जा रहे। इस जानकारी से आप बिना किसी परेशानी के कलौंजी की खेती कर लाखों की आय अर्जित कर सकते है।
कलौंजी को औषधीय फसल के रूप में उगाया जाता हैं। यह भारत सहित दक्षिण पश्चिमी एशियाई, भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों और उत्तरी अफ्रीकाई देशों में उगने वाला वार्षिक पौधा है। कलौंजी रनुनकुलेसी कुल का झाड़ीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम “निजेला सेटाइवा” है जो लैटिन शब्द नीजर (यानी काला) से बना है। इसका पौधा 20-30 सें. मी. लंबा होता है। इसके लंबी पतली-पतली विभाजित पत्तियां होती हैं और 5-10 कोमल सफेद या हल्की नीली पंखुडि़यों व लंबे डंठल वाला फूल होता है। कलौंजी का फल बड़ा व गेंद के आकार का होता है जिसमें काले रंग के, लगभग तिकोने आकार के, 3 मि.मी. तक लंबे, खुरदरी सतह वाले बीजों से भरे 3-7 प्रकोष्ठ होते हैं। कलौंजी को अंग्रेजी में फेनेल फ्लावर, नटमेग फ्लावर, लव-इन-मिस्ट, रोमन कारिएंडर, काला बीज, काला केरावे और काले प्याज का बीज भी कहते हैं। अधिकतर लोग इसे प्याज का बीज ही समझते हैं क्योंकि इसके बीज प्याज जैसे ही दिखते हैं। बता दें कि यह प्याज और कलौंजी बिल्कुल अलग पौधे हैं।
कलौंजी एक औषधीय फसल है। कलौंजी का इस्तेमाल बीजों के रूप में होता है। कालौंजी के छोटे-छोटे बीज होते हैं। इनके बीजों का रंग काला होता है। और यह स्वाद में हल्का तीखा होता हैं। इसका प्रयोग औषधि, सौन्दर्य प्रसाधन, मसाले तथा खुशबू के लिए पकवानों में किया जाता है। इसका प्रयोग विभिन्न व्यंजनों नान, ब्रेड, केक और आचारों में किया जाता है। चाहे बंगाली नान हो या पेशावरी खुब्जा (ब्रेड नान या कश्मीरी) पुलाव हो कलौंजी के बीजों से जरूर सजाये जाते हैं। इसके अलावा कलौंजी में पोषक तत्वों का अंबार पाया जाता है। इसमें 35 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 21 प्रतिशत प्रोटीन और 35-38 प्रतिशत वसा होते है। इसमें 100 से ज्यादा महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। इसमें 1.5 प्रतिशत उड़नशील तेल होते है, जिनमें मुख्य निजेलोन, थाइमोक्विनोन, साइमीन, कार्बोनी, लिमोनीन आदि हैं। निजेलोन में एन्टी-हिस्टेमीन गुण हैं, यह श्वास नली की मांस पेशियों को ढीला करती है, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करती है और खांसी, दमा, ब्रोंकाइटिस आदि को ठीक करती है। जिस वजह से बाजार में कलौंजी काफी महंगे दामों पर बिकती है।
औषधीय पौधा विशेषज्ञ बताते है कि अधिक मुनाफा देने वाली कलौंजी की खेती किसानों के लिए जबरदस्त आय का जरिया है। कलौंजी का इस्तेमाल मसाला और दवा बनाने में होता है। इसके पौधे पक कर पीले पड़ने लगते हैं तब कटाई की जाती है। इसके बीज को हाथों से या मशीन की मदद से निकाला जाता है। कलौंजी में काफी पोषक तत्व पाए जाते हैं। जिस वजह से आयुर्वेद के साथ अन्य मेडिकल साइंस के लिए कलौंजी एक अति आवश्यक औषधीय फसल है। ऐसे में किसान भाइयों को अपनी पैदावार बेचने में कोई दिक्कत नहीं आती। वे खुले बाजार, मंडी और स्थानीय स्तर पर भी बेच सकते हैं। किसानों से कॉन्ट्रैक्ट कर भी कंपनियां कलौंजी की खेती करा रही हैं। पौधा जब फसल देने के लिए तैयार हो जाता है, तो कलौंजी के एक हेक्टेयर के खेत से करीब 10 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त हो सकती है। कलौंजी का बाजारी भाव 500 से 600 रुपए प्रति किलों होता है। और यह मंडियों में 20 से 25 हजार प्रति क्विंटल के भाव तक बिकती है। इस हिसाब से किसान भाई इसकी खेती से लाखों की कमाई कर सकते है।
कलौंजी की बुवाई सितम्बर और अक्टूबर महीने में कि जाती है। कलौंजी के पौधे ठंडी- गर्म दोनों जलवायु में पनपते हैं। लेकिन कलौंजी को अंकुरण व बढ़ने के समय ठंडे तापमान और पकने के समय गर्म तापमान की जरुरत होती है। इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए बुलई, दोमट मिट्टी, काली व जलनिकासी वाली दोनों ही मिट्टी सबसे उपयुक्त हैं। इसके लिए मिट्टी की पी.एच. का मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। इसकी खेती 18 डिग्री तापमान पर सफलतापूर्वक की जा सकती है। तथा फसल के पकने के दौरान तापमान 30 डिग्री के आसपास अच्छा होता है।
भारत में कालैंजी की बेहतरीन किस्मों की बात करें, तो इसमें एनएस-44- कलौंजी की सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्म है। बाकी किस्मों के मुकाबले 20 दिन देरी से तैयार होती है। इसे पूरी तरह पकने में 150 से 160 दिन का समय लगाता है। और यह 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे सकती है। एन.आर.सी.एस.एस.ए.एन.1- यह 135 से 140 दिन में पकने वाली किस्म है। इसका पौधों दो फीट तक लंबा होता हैं। कलौंजी की यह किस्म 12-15 क्विंटल तक उत्पादन देती है। आजाद कलौंजी- कलौंजी की इस किस्म को उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा उगाया जाता है। यह करीबन 130 से 135 दिनों में तैयार होती है। इस किस्म में 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन होता है। एन.एस.32 - इसे तैयार होने में 140 में 150 दिन का समय लगता है। कलौंजी की इस किस्म की उत्पादन क्षमता 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इनके अलावा कलौंजी की कई अन्य उन्नत किस्में भी जिनमें अजमेर कलौंजी, कालाजीरा, राजेन्द्र श्याम एवं पंत कृष्णा कलौंजी की उन्नत किस्में हैं।
कालौंजी खेत की रोपाई बीजों द्वारा की जाती है। इसकी रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेकना चाहिए। इसके खेत को तैयार करने के लिए बुवाई से पहले 10-15 टन पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर रोटावेटर की सहायता से अच्छे से मिला देना चाहिए। इसके बाद कलौंजी के बीजो की बुवाई से पहले खेत में क्यारियों को तैयार कर लेना चाहिए। इन क्यारियों में बीजो की रोपाई कर देनी चाहिए। इसके बीजो की बुवाई को छिड़काव विधि द्वारा किया जाता है। बुवाई से पहले थिरम की उचित मात्रा का इस्तेमाल कर बीजों को उपचारित कर ले। कालौंजी के एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 7 किलो बीजो की आवश्यकता पड़ती है।
कलौंजी के पौधे की अच्छी वृद्धि एवं अच्छी पैदावार के लिए खाद और उर्वरक को पर्याप्त मात्रा डालना चाहिए। जिसके लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर खाद की मात्रा का उपयोग करें। कालौंजी की खेती सितंबर और अक्टूबर माह के बीच में की जाती है। इस समय खेत की नमी के हिसाब से इसकी सिंचाई करें। इसकी पहली सिंचाई बीजों के अंकुरण के समय करें। इसके बाद इसे आवश्यकता के हिसाब से लगातार पानी देते रहना चाहिए। कालौंजी के पौधे सौंफ की तरह होते है, इन्हें अधिक खरपतवार से बचाना होता है। इसके बीज की बुवाई के 25-30 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल दें। इसके बाद आवश्यकता के अनुसार हर 20-25 दिन में निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए।
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