कहते हैं जब मन में दृढ संकल्प हो और कुछ अलग करने की ठान ली जाए तो कोई भी साधारण दिखने वाला काम बड़े बिजनेस का रूप ले सकता है। फिर यह काम भले ही खेती-बाड़ी का ही क्यों ना हो। आज के युग में महिलाएं सभी क्षेत्रों में तरक्की कर रही हैं। अब वह समय नहीं रहा जब नारी घर की चारदीवारी तक ही सीमित होकर रह जाती थी। अनेक ग्रामीण महिलाएं कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ होते हुए भी मेहनत के दम पर लीक से हट कर ऐसे उदाहरण पेश कर रही है जो हजारों किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रौत है। बिहार प्रदेश की एक साधारण महिला 35 वर्षीया डैजी पिछले कई वर्षों से जैविक तकनीक से सब्जियों की खेती कर 4-5 लाख रुपये सालाना मुनाफा कमा रही है। खेती करने का उसका तरीका बिल्कुल अलग है जिससे उसे केंद्र और राज्य सरकार के कृषि विभाग की ओर से कई अवार्ड मिल चुके हैं। वहीं इस जागरूक महिला किसान ने स्वयं सहायता समूह बना कर अनेक गरीब महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना दिया है। बिहार के किसानों के लिए डैजी एक आईकन बन गई है। आइए, ट्रैक्टर गुरू पर जानते हैं इस महिला किसान की सफलता की पूरी कहानी। इसे अवश्य पढ़ें और शेयर करें।
बता दें कि डैजी नामक यह महिला बिहार के कटिहार जिले के बथनाहा गांव की रहने वाली है। वर्ष 2018 में उसने खेती-किसानी में कमाई के लिए जैविक खेती का प्रशिक्षण लेकर 10 कट्ठे जमीन पर गोभी, करेला, खीरा, आलू आदि कई सब्जियां करना शुरू किया। समय बीतता गया और साल-दर साल डैजी का जैविक खेती में अनुभव बढ़ता रहा। आज यह महिला 7 एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर रही है। इनमें पत्ता गोभी, फूल गोभी, खीरा, करेला आदि ऐसी सब्जियां उगाई जाती हैं जिनकी बाजार में बारह महीनों मांग रहती है। डैजी का कहना है कि वह करीब 5 साल से जैविक तरीके से खेती कर रही है। उसके द्वारा उगाई जाने वाली सब्जियों की फसलों से 4 से 5 लाख रुपये सालाना का शुद्ध मुनाफा हो जाता है। उसकी इस खेती को देखने कृषि विभाग के आत्मा प्रोजेक्ट के अधिकारी केंद्र सरकार की ओर से आ चुके हैं। ये भी काफी प्रभावित हुए। अब तक डैजी को बिहार राज्य सरकार और केंद्र सरकार के कृषि विभाग द्वारा कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। लोग दूर-दूर से इनकी फसल को देखने आ रहे हैं। अब डैजी पहचान की मोहताज नहीं रही। वह पूरी तरह से आत्मनिर्भर भी बन गई है। डैजी किसानों की आईकन है।
बिहार की जागरूक महिला किसान डैजी को मुनाफे से ज्यादा चिंता लोगों के स्वास्थ्य की रहती है। उसका कहना है कि वह चाहती तो खेती में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर ज्यादा मुनाफा कमा सकती थी लेकिन इससे अनेक बीमारियां फैलती हैं। इसलिए उसने जैविक खेती करना पसंद किया। इसमें प्राकृतिक और जैविक विधि से बनाए गए खादों का ही प्रयोग होता है। लोगों को ताजा और शुद्ध सब्जियां मिलनी चाहिए
बिहार की सफल महिला किसान डैजी ने जब जैविक खेती करना शुरू किया तो उसकी फसलों के उत्पादन से प्रभावित होकर सरकार के आत्मा प्रोजेक्ट के तहत उसे कृषि विभाग ने काफी सहयोग किया। डैजी ने अपने गांव की ही अनेक किसान परिवार की महिलाओं को भी महिला स्वयं सहायता समूह से जोड़ लिया है। ये सभी महिलाएं भी समूह के तहत लोन लेकर जैविक खेती कर रही हैं। डैजी और अन्य महिलाओं द्वारा की गई विभिन्न सब्जियों की फसलों की पैदावार तैयार होने के बाद उसे मंडी तक पहुंचाने की जरूरत नहीं पड़ती। सब्जी के व्यापारी खुद चल कर इनके खेतों पर पहुंचते हैं और फसल का नकद भुगतान कर गाडियों में भरकर फसल खरीद ले जाते हैं।
बिहार के कटिहार जिले में डैजी ने जैविक खेती की जो नजीर पेश की है उससे आसपास के सैकड़ों किसान भी प्रभावित होकर खेती का यह तरीका अपना रहे हैं। महिलाएं अपने मोबाइलों पर यूट्यूब में और कुछ नहीं देख रहीं, ये जैविक खेती के बारे में नई-नई जानकारियां हासिल कर रही हैं ताकि और बेहतर ढंग से खेती कर सकें। कब क्या फसल बोई जानी चाहिए, कैसे ज्यादा पैदावार ली जाए आदि बातों की चर्चा कटिहार के बथनाहा गांव में होती हैं।
बिहार के कटिहार जिले की चर्चित महिला किसान डैजी अपने खेतों में खुद कुदाल और खुरपी लेकर निकलती है और दिनभर खेतों की निराई-गुड़ाई आदि काम करके खूब मेहनत करती है। वह अपनी फसलों की देखभाल स्वयं करती है। जब ज्यादा काम होता है तो मजदूरों द्वारा करवाया जाता है लेकिन डैजी को यह अपने आप पर अधिक भरोसा रहता है।
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