तरबूज की खेती: गर्मीयों का मौसम शुरू होते ही बाजारों में तरबूज की मांग बढ़ जाती है। देखा जाए, तो तरबूज जायद सीजन की मुख्य फसल हैं, जिसकी खेती मैदानों क्षेत्रों से लेकर नदियों के पेटे में आसानी से लगाई जा सकती है। ये कम समय, कम खाद-पानी में उगाई जा सकने वाली फसल हैं। इसकी खेती सरल और बाजार में इसके अच्छे भाव मिलने के कारण किसानों के बीच इसकी खेती तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। तरबूज के कच्चे फलों का प्रयोग सब्जी के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा, इसके फलों को पकने के बाद जूस, शरबत तथा सीधे तौर पर खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके फल से कई प्रकार के फ्रूट डिश भी बनाई जाती है। देश के कई क्षेत्रों में किसान तरबूज की खेती करते है, लेंकिन इसकी खेती से सही लाभ नहीं कमा पाते हैं। इसका मुख्य कारण किसानों में तरबूत की खेती में आने वाली समस्याओं और उनके समाधान का सही ज्ञान का अभाव होना है। लेंकिन किसान भाईयों की घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। ट्रैक्टर गुरु के इस लेख में हम आज तरबूज की खेती का उन्नत तरीका और तरबूज की खेती में उत्पन्न होने वाली प्रमुख समस्याओं और उनके समाधान के उपाय के बारे में जानकारी देने जा रहे है। ऐसे में इस लेख में दी जा रही जानकारी से आप तरबूज की खेती से अच्छी तरह उत्पादन कर मोटा पैसा कमा सकते हैं।
तरबूज की खेती गर्मियों के मौसम में जायद सीजन फसलों में की जाती है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है वैसे-वैसे बाजारों में तरबूज की आवक बढ़ती चली जाती है। गर्मियों के मौसम में तरबूज के उत्पादन के लिए इसकी खेती की बुवाई जनवरी से फरवरी माह में की जाती हैं। इसकी खेती से उत्पादन प्राप्त होने में 5 से 6 महीने का समय लगता है। जनवरी-फरवरी के बिच लगाई गई तरबूज की फसल से मई महीने के शुरूआत में ही उत्पादन मिलना आरंभ हो जाता हैं। ऐसे में किसान भाई तरबूज की खेती अपने क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु और मौसम के आधार पर अच्छी किस्मों के बीजों की जानकारी और बुवाई का उचित समय ध्यान रखते हुए तरबूज की खेती से अधिक उत्पादन कर अच्छी कमाई कर सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिक के अनुसार, तरबूज की खेती से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसके बोने के समय और मौसम का विशेष ध्यान रखा होता है। जिन क्षेत्रों में सर्दी अधिकन नहीं पड़ती है उन क्षेत्रों में इसके बीजों को जनवरी में बोना चाहिए। इसके अलावा, जिन क्षेत्रों में सर्दी अधिक पड़ती हैं, वहां इसके बीजों को फरवरी महीने के अंत तक बो देना चाहिए। जिन क्षेत्रों की जलवायु गर्म और शुष्क है ऐसे क्षेत्र तरबूज की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। तरबूज के पौधों को सही से विकास करने के लिए 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। वहीं इसके बीजों को जमाव के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूर होती हैं।
सामान्य तौर पर तरबूज की खेती मैदानों से लेकर नदियों के किनारे पर की जाती है। इसके खेती के लिए अच्छी कार्बनिक युक्त बलुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती में भूमि का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अगर आप इस प्रकार की भूमि पर इसकी खेती करते है, तो आपको काफी बेहतर उत्पादन प्राप्त हो सकता है। इसके अलावा, आपके पास यदि तरबूज की खेती योग्य मिट्टी वाली भूमि नहीं है और आप किसी अन्य प्रकार की भूमि पर इसकी खेती लगाना चाहते है, तो पहले भूमि की मिट्टी का परीक्षण करवाकर मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्वों का मामूमात करें। इसके बाद जांच रिपोर्ट के अनुसार मिट्टी में कमी पोषक तत्वों को दूर करने के लिए खाद-उर्वरक एवं अन्य पोषक तत्वों का इस्तेमाल कर भूमि को खेती योग्य बनाएं।
तरबूज की खेती करने के लिए आसाही-पामाटो, शुगर बेबी और न्यू हेमपसाइन मिडगेट जैसी उन्नत किस्मों के ही बीजों को इस्तेमला करना चाहिए। इसके बीजों की बुवाई कतार से कतार दूरी 1.5 से 2.0 मीटर रखे तथा नालियां में 30 सेंटीमीटर दूरी रखते हैं। नाली के दोनों किनारों पर 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 बीजों की बुआई 4 से 5 सेमी. गहराई में करनी चाहिए। इसके बीजों को खेत में बोने से पहले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों को उपचारित करना चाहिए। तरबूज की खेत में लगभग 3 से 4 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टयर के लिए पर्याप्त है।
तरबूज जायद मौसम की फसल है। इसकी फसल को शुरूआत में खास सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, लेकिन जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है इसके पौधों को अन्य फसलों की तुलना थोडी अधिक सिंचाई करने की पड़ती हैं। इसकी खेती से अच्छे उत्पादन के लिए इसकी फसल की गर्मी के दिनों में 5 से 7 दिन के बाद करनी चाहिए। इसके अलावा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं है। ऐसे क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। अगर लगाते है, तो फसल को अच्छी सिंचाई देने के खेतों में ड्रिप और फव्वार सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए।
तरबूज की फसल किसानों द्वारा व्यवसायिक तौर पर लगाई जाती है। लेकिन कभी-कभी अधिक नमी और उचित तापमान के कारण इसकी फसल में कीटों और बीमारियों का प्रकोप काफी देखा जाता हैं। इससे फसल में काफी नुकसान होता है और पैदावार भी प्रभावित होती है। ऐसे में अगर किसान भाई फसल पर समय से ध्यान देकर कीटों और बीमारियों पर नियंत्रण कर लेते है, तो उनकी फसल कीटों और बीमारियों से होने वाले नुकसान से बच सकती हैं। तरबूज फसल में माहू, थ्रिप्स, हरा तेला मकड़ी जैसे रस चूसक कीटों का ज्यादा प्रकोप पाया जाता हैं। ये सभी रस चूसक कीट पौधें की पत्तियों का रस चूसते है, जिसके कारण पौधें की वृद्धि रूक जाती है। इस कीटों के रोकथाम के लिए नीम तेल 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, खेतों में पीआ और नीला चिपचिपा ट्रैप लगाना चाहिए। इससे किसान भाईयों को रस चूसक कीटों की तादत का पता चल जाता है। वहीं, अधिक प्रकोप दिखाई देने पर थायोमेथाक्जाम 25 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 1 ग्राम दवा प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा फिप्रोनिल 5 एस.सी. दवा 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें।
तरबूज की फसल को खरपतावार मुक्त रखना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इसकी फसल जमीन की सतह पर ही विकास करती है। यदि इसके खेतों में अधिक खरपतावार होती है, तो इसके फल खरपतावार में छिप जाते है जिसके कारण फल में कीट लगने का खतरा बना सकता है। ऐसे में इसके खेतों की समय-समय पर निराई-गिड़ाई करके खरपवार मुक्त रखना चाहिए। तरबूज की फसल में प्रथम निराइ-गुड़ाई का बीजों की बुवाई के 25 से 30 दिन पश्चात करनी चाहिए। इसकी फसल को 3 से 4 निराई-गुड़ाई की जरूरत पड़ती है।
तरबूज की फसल से लगभग 3 से 3.5 महीने के बाद पैदावार मिलना आरंभ हो जाता है। इसके फलों की तुड़ाई-कटाई इसके आकार और रंग के अनुसार की जाती है। अगर इसके फलों को बिक्री के लिए दूर भेजना है, तो इसके फलों को पहले ही तोड़ना चाहिए। इसके फल 5 से 10 किलो के वजन में होते है इसकी लिए इसके फालों की तुड़ाई के लिए तेज धारा दार चाकू या कटर का इस्तेमाल करना चाहिए। तरबूज की खेती से औसतन पैदावार 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है। लेकिन इसकी पैदावार के साथ सबसे बड़ी समस्या बाजार में बिक्री के लिए ट्रांसपोर्टेशन दौरान के दौरान आती है। सही समय पर उचित भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था न होने के कारण किसान भाईयों को बाजार व्यापारियों को उचित भाव में तरबूज उत्पादन उपलब्ध कराना एक बड़ी समस्या रहती है। लेकिन अब सरकार के द्वारा विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत कोल्ड स्टोरेज और रेफ्रिजरेटेड वाहन पर सब्सिडी देने से इस समस्या का समाधान किया जा चुका है।
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