देश में पिछले कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन को देखते हुए किसानों ने अपने फसल चक्र में परिवर्तन किया है। गेहूं, ज्वार, चना, धान और सरसों जैसी प्रमुख फसलों की खेती के स्थान पर किसान पिछले कुछ सालों से अन्य वैकल्पिक फसलों के साथ फूलों की खेती करना पसंद कर रहे हैं। इसके लिए सरकार भी किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रही है, जिसके चलते किसानों का रूझान तेजी से कमर्शियल फसलों पर हो रहा है। ऐसे में बदलती जलवायु तथा तिलहन फसलों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए किसानों के बीच सूरजमुखी फूलों की खेती का चलन बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि सूरजमुखी फूलों की खेती में लागत कम आती है, तो मुनाफा उससे कई गुना अधिक होता है। सूरजमुखी की खेती को मुनाफा देने वाली फसल माना जाता है। इस पर जलवायु परिवर्तन का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता है। इसकी खेती साल में तीन बार की जा सकती हैं। किसान इसकी खेती से खरीफ, रबी और जायद के मौसम में बंपर पैदावार ले सकते हैं। अगर आप सूरजमुखी की खेती करना चाहते हैं, तो अभी इसकी खेती शुरू कर सकते हैं। क्योंकि इसकी खेती के लिए फरवरी से लेकर मार्च का महीना उपयुक्त होता है। इसकी खेती से सालभर तक लगातार लाखों रुपए का मुनाफा हासिल किया जा सकता हैं। ऐसे में तिलहन फसलों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए सूरजमुखी की खेती करना एक अच्छा विचार साबित हो सकता है। इस पोस्ट में हम आपको सूरजमुखी की खेती करने का तरीक एवं इसके उन्नत किस्मों की जानकारी देंगे।
सूरजमुखी के तेल को स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी माना जाता हैं, क्योंकि इसके तेल में औषधीय गुणों की मात्रा अन्य तिलहनी फसलों की तुलना में अधिक होती है। इसके बीजों में कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन जैसे कई अन्य तत्वों की मात्रा भरपूर पाई जाती है। सूरजमुखी के तेल के उपयोग से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है, जिससे दिल स्वस्थ्य रहता है और हार्ट अटैक का खतरा भी कम होता है। यही वजह है कि बाजार में सूरजमुखी के तेल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। कृषि विशेषज्ञ के अनुसार, एक हेक्टेयर के क्षेत्र में सूरजमूखी की खेती करने में लगभग 25 से 30 हजार रुपये की लागत आती है। इस एक हेक्टेयर में इसकी खेती से करीब 20 से 25 क्विंटल तक फूलों की पैदावार प्राप्त हो जाती हैं। अगर आप बाजार में इन फूलों से प्राप्त बीजों को बेचते हैं, तो लगभग 4,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बिक जाते हैं। इस हिसाब से आप 25 से 30 हजार रुपये लगाकर सिर्फ एक हेक्टयेर के क्षेत्र में इसकी खेती से 1 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं। इस कमाई में लागत के 25 से 30 हजार रुपए निकाल कर आप इसकी फसल से 70 से 75 हजार रुपए का मुनाफा तीनों सीजन में आराम से कमा सकते हैं।
बता दें कि बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को रबी और खरीब सीजन की फसलों में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके कारण किसानों ने अपने फसल पैटर्न में बदलाव किया है। बदलती जलवायु के कारण खेती पहले से ज्यादा जोखिम भरी हो गई है, इसलिए किसानों ने सूरजमुखी की खेती की ओर रूख किया है। विलुप्त हो रही सूरजमुखी की फसल अब फिर से तेजी से किसानों के लिए महत्वपूर्ण हो गई है। सूरजमुखी एक तिलहन फसल है, जिसकी खेती कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार में बड़े पैमाने पर की जाती हैं। बता दें कि भारत में इसकी खेती पहली बार 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर जिले में की गई थी।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, सूरजमुखी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी और काली मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है। खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 8.0 के बीच होना चाहिए है। इसकी खेती तीनों सीजन में की जाती है। जायद सीजन में इसकी खेती करने के लिए फरवरी से मार्च का महीना सबसे उपयुक्त माना गया है। सूरजमुखी की खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है। इसकी बिजाई कतार से कतार की दूरी 4 से 5 सेटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 25 से 30 सेटीमीटर रखनी चाहिए। उचित दूरी के लिए बिजाई के 15 से 20 दिन बाद अतिरिक्त पौधों को हटा कर उचित दूरी पर लगाना चाहिए। सूरजमुखी की खेती के लिए शुष्क जलवायु को उपयुक्त माना गया है। इसकी बिजाई करने के लिए 15 डिग्री तक का तापमान सही हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सूरजमुखी की खेती में पहली निराई बिजाई के 15 से 20 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद जरूत के अनुसार समय समय पर एक से दो निराई करनी चाहिए। वैज्ञानिकों का कहना है कि संवेदनशील स्थिति में सूरजमुखी की फसल की सिंचाई करना बेहद जरूरी है, जिसमें पादप और पुष्पन अवस्था में सूरजमूखी की फसल की सिंचाई करनी अति आवश्यकक है। इन अवस्था में फसल को पानी की कमी नहीं होने चाहिए। सूरजमूखी की फसल में फूल आने की अवस्था से लेकर बीज बनने की अवस्था तक यदि पानी की कमी होती है, तो इसके फूल में भरने वाले बीज खोखले रहते हैं, जिससे पैदावार कम होती है।
सूरजमुखी की खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि इसकी फसल में रस सोखने वाले कीटों का अधिक प्रकोप होता है। रस सोखने वाली कीटों के प्रकोप से बचने के लिए इमिंडाक्लोप्रिड 125 ग्राम प्रति एकड़ एवं एसिटामिप्रिड 125 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करना चाहिए। एफिड्स और ब्लाइट के नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 लिक्विड 0.3 प्रतिशत का छिड़काव प्रति एकड़ की दर से करें। इसके अलावा, घुन के प्रकोप से बचाने इसकी फसल में क्विनॉलफॉस 25 प्रतिशत घोल को 1000 मिली 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ करना चाहिए।
कृषि वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार सुबह के समय जब सूरजमुखी का फूल खिलता है। इस दौरान कृत्रिम परागण के लिए आप अपने हाथों को एक पतले कपड़े में लपेटते कर अपना हाथ फूल की थाली पर फेरे, इससे कृत्रिम परागण बढ़ेगा। इससे अनाज भरने की दर और बीज का वजन बढ़ जाता है। सूरजमुखी के खेत में 5 मधुमक्खी के छत्ते प्रति हेक्टेयर जरूर रखें । इससे फूलों में परागण बढ़ेगा। सूरजमुखी की फसल में फूल के समय कीटनाशकों का छिड़काव नही करना चाहिए। बेहद जरूरी होने पर ही फसल में कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए।
कृषि वैज्ञानिको की सलाह के अनुसार, सूरजमुखी की खेती के लिए किसानों को खेत में सूरजमुखी की उन्नत किस्मों को ही लगाना चाहिए। किसान सूरजमुखी की खेती के लिए मार्डन, बी.एस.एच. - 1, एम.एस.एच. और सूर्या उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करें। यह सभी सूरजमुखी की उन्नत किस्में है, जिनकी उत्पादन क्षमता 15 से 20 क्विंटन प्रति एकड़ है। इन किस्में में 35 से 45 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती हैं। वहीं, ये किस्में 80 से 95 दिनों में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है।
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