भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की जलवायु में लगभग सभी प्रकार की खेती की जाती हैं। भारत में जलवायु के अनुसार इसके विभन्न हिस्सों में विभन्न दुर्लभ किस्मों की खेती की जाती है। जिनमें से केसर भी एक है। यह एक पहाड़ी क्षेत्र की सबसे महंगी कमर्शियल फसलों में से एक है। इसकी खेती भारत के पहाड़ी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की घाटी में ही होती है। और यह दुनिया की सबसे महंगी खेती मानी जाती है। केसर की खेती किसानों को बड़ा मुनाफा देती है। बाजारों में केसर की कीमत लाखों में होती है। इस वजह से केसर को लाल सोना भी कहा जाता है। भारत में केसर की कीमत करीब 2.50 से 3 लाख रुपए प्रति किलो तक है। इसके अलावा इसके लिए 10 वॉल्व बीज का इस्तेमाल किया जाता है, इसकी कीमत 550 रुपए के करीब है। भारत के अनेक शोध संस्थाओं ने इसकी उन्नत किस्में विकसित की है, जो देश के अन्य राज्यों में भी संभवत लगाई जा सकती है। पिछले कुछ सालों से देश का उद्यान विभाग मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और बिहार में जलवायु और मिट्टी के अनुरूप वाले क्षेत्रों में इसकी खेती का परीक्षण दे रहा हैं। उद्यान विभाग के इन प्रयासों से अब उत्तर प्रदेश के बुंदलेखंड में भी इसकी खेती होने लगी है। यहां किसान बंजर भूमि पर इसकी खेती करके दिखा रहे है। बुंदेलखंड के हमीरपुर के निवादा गांव के किसान बंजर भूमि पर केसर की खेती कर रहे हैं। यहां के किसानों का यह कहना था हमें उम्मीद नहीं थी कि ऐसी जमीन पर केसर उगा सकते हैं, लेकिन फिर भी हमने हार नहीं मानी और उसका नतीजा यह हुआ की यहां भी केसर लहलहाने लगी। ट्रैक्टरगुरु के इस लेख में हम आपको केसर की खेती के बारे में पूरी डिटेल में बताएंगे, जिसके जरिए आप भी केसर की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं।
केसर एक सुगंध देने वाला पौधा है। यह पूरी दुनिया का सबसे महंगी फसल वाला पौधा है। इसके पुष्प की वर्तिकाग्र को केसर, जाफरान, कुंकुम और सैफ्रन भी कहते है। केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस है। अंग्रेजी में इसे सैफरन नाम से जाना जाता है। यह इरिडेसी कुल का क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है। केसर का पौधा सुगंध देने वाला बहुवर्षीय होता है। इसके पौधें 15 से 25 सेमी (आधा गज) ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है।
इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है। भारत में यह केवल जम्मू (किस्तवार) तथा कश्मीर (पामपुर) के सीमित क्षेत्रों में पैदा होती हैं। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं - फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी, जापान, रूस, आस्ट्रिया, तुर्किस्तान, चीन, पाकिस्तान के क्वेटा एवं स्विटजरलैंड।
केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है। केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। केसर को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। लेकिन बुंदेलखंड की जलवायु जम्मू-कश्मीर के मुकाबले गर्म है। इस लिहाज से देखा जाए तो बुंदेलखंड में इसकी खेती को कर पाना अपने आप में चौंकाने वाली खबर है। पिछले कुछ सालों से देश का उद्यान विभाग मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और बिहार में जलवायु और मिट्टी के अनुरूप वाले क्षेत्रों में इसकी खेती का परीक्षण दे रहा हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के किसानों ने केसर उगाने के प्रयास में सफला हासिल कर दिखाई हैं। यहां किसानों ने इसे उगाकर यह साबित कर दिया है कि केसर सिर्फ पहाड़ी वादियों में ही नहीं उग सकता बल्कि इसे ठंडे थोडे गर्म क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। बस इसपर खास ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
बुंदेलखंड जिले में केसर की खेती कर रहे किसानों के लिए केसर की खेती आय का एक नया स्त्रोत होगी। केसर यहां के लोगों के लिए वरदान साबित होगा। क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाने वाला सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाजार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है। केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है। एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाजार में श्रेष्ठतम माना जाता था। ऐसे में अगर इसकी यहां की केसर गुणवत्ता में अच्छी हो, तो किसानों को बेहतर मुनाफा हो सकता है।
केसर की खेती समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु में होती है। इसकी खेती के लिए ठीकठाक धूप की भी जरूरत होती है। इसका पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। यानि कलियां निकलने के पश्चात इसे गर्म मौसम की आवश्यकता होती हैं। इस लिहाज से इसकी खेती गर्म मौसम वाली जगहों पर आसानी से की जा सकती है। इसके पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है। केसर के उत्पादन के लिए आपको ध्यान देना होगा की जिस खेत में आप केसर की खेती करने जा रहे है उसकी मिटटी रेतीली, चिकनी, बलुई या फिर दोमट होनी चाहिए।
केसर की फसल लगने का सही समय ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में अगस्त से सितंबर है। लेकिन मध्य जुलाई के समय को सर्वश्रेष्ठ होती है। और मैदानी क्षेत्रों में फरवरी से मार्च है। केसर का बीज/ प्याज तुल्य केसर के कंद/ गुटिकाएं बोने या लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई की जाती है। इसके पश्चाता मिट्टी को भुरभुरा बना कर आखिरी जुताई से पहले 20 टन गोबर का खाद और साथ में 90 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस और पोटास प्रति हेक्टेयर के दर से खेत में डाल कर खेत को बुवाई के तैयार करें। इससे आपकी जमीन उर्वरक रहेगी एवं केसर की फसल काफी अच्छी होगी।
केसर के बीज / प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएं लगाते वक्त ध्यान रखे कि क्रोम्स को लगाने के लिए 6-7 सेमी का गड्ढ़ा करें और दो क्रोम्स/ बीज/प्याज तुल्य केसर के कंद/ गुटिकाएं के बीच की दूरी लगभग 10 सेमी रखें। इससे क्रोम्स अच्छे से फलेगी और पराग भी अच्छे मात्रा में निकलेगा।
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