भारतीय किसान अपनी आय को बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती के साथ-साथ खेती के अन्य विकल्प तलाश रहे हैं। वर्तमान समय में देश के किसान अधिक मुनाफा कमाने के लिए अलग-अलग तरह की खेती करने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। इसी कड़ी में अब मशरूम की खेती में किसानों का रूझान देखने को मिल रहा है। किसान भाई मशरूम की किस्मों को उगाकर अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। इन्ही किस्मो में से एक किस्म है दूधिया मशरूम, इस किस्म को भारत में बटन मशरूम के बाद सबसे ज्यादा उगाया जाता है। दूधिया मशरूम को आम बोलचाल की भाषा में मिल्की मशरूम (Milky Mushroom) भी कहते हैं। दूधिया मशरूम देखने में बटन मशरूम जैसा होता है। लेकिन बटन मशरूम की तुलना में दूधिया मशरूम का तना अधिक लंबा, मांसल और काफी मोटा होता है।
दूधिया मशरूम में विटामिन, प्रोटीन और अनेक प्रकार के खनिज होते हैं। इस मशरूम की ऊपरी परत (टोपी) कम समय में जल्दी खुलने वाली होती है। इसी वजह से दूधिया मशरूम को अन्य मशरूम की तुलना में अधिक पसंद किया जा रहा है। दूधिया मशरूम की खेती करने के लिए आपको कम जगह की जरुरत होती है और ये कम लागत लगाकर अधिक मुनाफा देने वाली फसल है। दूधिया मशरूम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसका भंडारण अधिक समय के लिए किया जा सकता है। किसान भाईयों आज हम आपको ट्रैक्टरगुरु के माध्यम से दूधिया मशरूम की खेती से संबंधित सभी जानकारी प्रदान करेंगे।
दूधिया मशरूम की खेती करते समय हमें कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं। आईये जानते है दूधिया मशरूम की खेती कैसे करते हैं:-
दूधिया मशरूम की खेती करने के लिए अधिक तापमान की जरूरत होती है। इसलिए इसकी खेती उस स्थान पर करें जहां का तापमान अधिक रहता हो। इसकी खेती में कवक जाल के फैलाव या बीज जमाव के लिए 25 से 35 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है, तथा नमी की मात्रा 80 से 90 प्रतिशत तक होनी चाहिए। दूधिया मशरूम की खेती में 38 से 40 डिग्री तापमान होने पर अधिक पैदावार मिलती हैं। दूधिया मशरूम की खेती के लिए तापमान अगर 40 डिग्री से ज्यादा होता है, तो इसकी फसल खराब भी हो सकती है।
दूधिया मशरूम की बुवाई करने के लिए आपको अपनी बीजों को उपचारित करने के बाद एक किलोग्राम साफ व सूखा हुआ भूसा लेना है, भूसे में 40 से 45 ग्राम मशरूम के बीज मिला दें। दूधिया मशरूम की बुवाई में छिड़काव विधि अपनायी जा सकती है, या फिर बुवाई को सतह में भी कर सकते हैं। सतह में बुवाई करने के लिए 15-16 इंच चौड़ी और 20-21 इंच लंबी पॉलिथीन बैग में भूसे की एक परत बिछाई जाती है, फिर उसके ऊपर बीजों को बिखेर दिया जाता है। भूसे की परत पर बीजों को बिखेरने के बाद उसके ऊपर भूसे की एक और परत चढ़ाकर उस पर फिर से बीज डाले जाते हैं। दो परतों के बीच में 3 से 4 इंच का अंतर होना चाहिए। इस तरह से सतह पर बुवाई की जाती है। एक बैग में 3-4 किलो उपचारित बीज भरे जाते हैं। इन बैगों को बिना प्रकाश वाले कमरे में रख दिया जाता है, और 15 से 20 दिनों तक 25 से 35 डिग्री तापमान के साथ 80 से 90 प्रतिशत नमी नियमित रुप से बनाए रखना होता है।
दूधिया मशरूम के बीज की बुवाई करने के बाद बैगों में 15 से 20 दिन बाद भूसे पर सफेद फफूंद फैल जाती है। यह समय मशरूम पर केसिंग परत चढ़ाने के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। केसिंग मिश्रण तैयार करने के लिए दोमट मिट्टी, बालू मिट्टी, चाक पाउडर, फार्मेलीन, बॉविस्टीन की जरूरत होती है। इन सभी चीजों को सही तरीके से मिलाकर 9 से 12 दिन के लिए ढककर रखना होता है और दूधिया मशरूम पर केसिंग करने से 24 घंटे पहले केसिंग बनाने वाली पॉलीथीन को हटाकर उसे खुला छोड़ दें और फिर मिश्रण को फावडा की मदद से उलट-पलट दिया जाता है, ताकि मिश्रण में फार्मेलीन की गंध न रहने पाए। इसके बाद केसिंग मिश्रण की 2-3 सेंटी मीटर मोटी परत को पॉलिथीन बैग का मुँह खोलकर सतह की चारों ओर बिछा दिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान 80 से 90 प्रतिशत नमी और 30 से 35 डिग्री तापमान बनाए रखने की जरुरत होती है।
दूधिया मशरूम के उत्पादन के समय कमरे में अधिक तापमान और नमी होने के कारण रोग लगना सामान्य बात है। इसलिए दूधिया मशरूम की खेती करते समय साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना होता है।
दूधिया मशरूम पर डिप्टेरियन और फोरोइड मक्खी का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है। इसलिए मशरूम की फसल की बुवाई से लेकर तुड़ाई करने तक साफ-सफाई पर विशेष ध्यान रखना होता है। इसके लिए समय-समय पर कमरे में 0.2 प्रतिशत DDVP का छिड़काव करना चाहिए। कमरे में व उसके पास पानी को एकत्रित न होने दे। इसके अलावा उत्पादन कमरे में ट्यूब लाइट या बल्ब के नीचे पीले रंग के कागज को लाइट ट्रेप तेल में भिगोकर लटका देना चाहिए, ताकि कीड़े उसमे चिपक जाए और फसल तक न पहुंच पाए।
दूधिया मशरूम की फसल में कवक जाल के फैलने के दौरान खरपतवार वाली फफूंद जैसे- राइजोपस, ट्राईकोडर्मा, म्यूकर, स्केलेरोशियम रोल्फसाइ, एस्परजिलस और क्रोपाइन्स देखने को मिल सकती है। इस खरपतवार फफूंद से बचाव के लिए समय-समय पर ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करते रहना चाहिए।
बुवाई करने के 30 से 40 दिनों के बाद मशरूम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मशरूम की तुड़ाई करते समय इसे कभी भी औजार से काटना नहीं चाहिए, इसे हलके हाथों से घुमाकर जमीन के पास से तोड़ना चाहिए। जब दूधिया मशरूम की ऊपरी सतह (टोपी) 5 से 6 सेंटी मीटर मोटी दिखने लगे तो उसे तैयार समझ लें और उसे घुमाकर तोड़ लें। इसके अलावा तने के मिट्टी लगे निचले भाग को काट लें और पालीथीन बैग में 4-5 छेद करके पैक कर दें। तक़रीबन 1 किलो सूखे भूसे वाले बैग में 1 किलो के आस-पास ताज़े मशरूम का उत्पादन प्राप्त हो सकता है। दूधिया मशरूम के उत्पादन में 12 से 15 रूपए प्रति किलोग्राम तक की फसल लागत आती है। मशरूम का बाज़ार भाव 170 से 270 रूपए प्रति किलो तक का होता है, जिससे किसान भाई दूधिया मशरूम की खेती से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
दूधिया मशरूम की खेती के लिए निम्न महत्वपूर्ण बिन्दुओ का ध्यान रखे:-
दूधिया मशरूम की खेती बंद कमरों में की जाती है जहां आयताकार सांचों में मशरूम की खेती की जाती है। साथ ही ग्रीन हाउस का उपयोग करके और अन्य तकनीकों का उपयोग करके भी वर्तमान में दूधिया मशरूम की खेती की जा रही है।
दूधिया मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त नमी की आवश्यकता होती है क्यूंकि नमी युक्त स्थानों पर ही मशरूम के कवक वृद्धि कर पाते हैं ऐसे में उत्पादन वाली जगह पर उपयुक्त नमी सुनिश्चित करे।
दूधिया मशरूम के बीजों को नमी एवं आवश्यक पोषण देने के लिए चावल, घास या अन्य फसल के भूसे को उबालकर बोरों में भरकर बीजों को लगाया जाता है जहां कूलर या ऐसी के माध्यम से आवश्यक नमी को बनाये रखना आवश्यक होगा।
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