आज किसान फसलों की उपज बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में रासायनिक खादों और उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। ऐसे में इन खादों से पैदा होने वाले फल, सब्जियां, अनाज के सेवन से शरीर में बीमारी तो होती ही हैं साथ ही वातावरण में भी प्रदूषण होता है। इन सभी समस्याओं के लिए कई किसान फसलों को बचाने और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए अपने खेतों में नीम जैविक खाद और गाय के गोबर का उपयोग करते हैं। आपको बता दें नीम की खाद का उपयोग भारत में प्राचीन काल से ही होता आ रहा है, इसके अलावा इसका इस्तेमाल कई गंभीर बीमारियों की दवा बनाने में किया जाता है। नीम के इन्हीं अनोखे गुणों के कारण नीम के पेड़ को अमृत के नाम से जाना जाता है।
नीम की छाल, पत्तियां, टहनियां, निबोरी और यहां तक कि जड़ें भी किसी न किसी रूप में काम आती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कृषि में नीम के इस्तेमाल से हजारों रुपए की बचत भी की जा सकती है। जी हां, नीम कीटनाशक न केवल कम लागत में फसलों से कीट-पतंगों को दूर करता है बल्कि फसलों को पोषक तत्व भी प्रदान करता है। ऐसे में यदि किसान जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें तो न केवल उनकी खेती की लागत कम होगी बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जैविक खाद हमारे पर्यावरण को बचाने में भी मदद करते हैं।
नीम एक ऐसा पौधा है जिसमें इंसानों के साथ-साथ जानवरों और पौधों को विभिन्न बीमारियों और हानिकारक कीड़ों को दूर भगाने की अद्भुत क्षमता होती है, जिसमें इसे रोग निवारक के रूप में भी जाना जाता है। वहीं, वैज्ञानिकों ने नीम पर आधारित 125 से अधिक रसायनों की खोज की है। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि नीम में विभिन्न फसल रोगों के इलाज के अलावा हानिकारक कीड़ों को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। जबकि आधुनिक रसायन मुक्त बीज और अनाज उत्पादन ने मानव और पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है, वहीं नीम के उपयोग से जहरीले कीटनाशकों से मुक्ति मिली है। इसीलिए जैविक और प्राकृतिक खेती में नीम का प्रयोग बढ़ाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
प्राचीन भारतीय ग्रंथों और चिकित्सा विज्ञान से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक शोधों तक में नीम ने अपने अद्भुत औषधीय गुणों को भी सिद्ध किया है। प्राचीन काल से ही नीम का उपयोग कृषि में अन्न भंडारण के लिए किया जाता रहा है। साथ ही यह पशुओं को परजीवी कीटों से भी बचाता है। नीम में जीवाणुरोधी, कवकरोधी, कीटनाशक, खांसी को कम करने वाला, गर्भनिरोधक, मूत्र और पित्त संबंधी विकार, ठंडक देने वाला, रक्त शुद्ध करने वाला, ज्वरनाशक, यकृत उत्तेजक, मधुमेह रोधी, दंत और रोग निवारक गुण होते हैं। इन अद्भुत गुणों के कारण नीम ने 'सर्व रोग निवारण', 'नीम हकीम' और 'एक नीम, सौ डॉक्टर' की उपाधियां अर्जित की है।
इस्तेमाल करने का तरीका - नीम का उपयोग करने के लिए लगभग 15 लीटर शुद्ध पानी में 1.5 लीटर अर्क (एक प्रकार का चूर्ण) मिलाकर सुबह पौधों पर छिड़कें। यह स्प्रे फसलों को कीड़ों, मच्छरों और एफिड्स से बचाता है। सावधान रहे! इस कीटनाशक का छिड़काव हमेशा एक माह पुरानी फसल पर ही करें।
नीम की पत्तियों का जूस - इस जूस का छिड़काव करने से सूंड़ी जैसे कीड़ों और हानिकारक कीट-पतंगों से बचाव होता है। इसके छिड़काव के लिए प्रति एकड़ 32 किलोग्राम नीम की पत्तियों और 160 लीटर पानी से तैयार जूस की जरूरत पड़ेगी।
बनाने की विधि : नीम के पत्तों का जूस तैयार करने के लिए एक किलो पत्तों को काटकर 5 लीटर पानी में रात भर के लिए भिगो दें। इन भीगी पत्तियों को सुबह पानी में पीसकर नीम के पत्तों का रस तैयार किया जाता है। अब एक महीन कपड़े से छान लें।
नीम गोमूत्र अर्क - इसके छिड़काव खड़ी फसल की पत्तियों का रस चूसने वाले और ‘मिली बग’ जैसे कीड़ों का उपचार करने में किया जा सकता है।
बनाने की विधि : नीम गोमूत्र अर्क तैयार करने के लिए 5 किलो नीम की पत्तियों को पानी में पीसकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को 5 लीटर गोमूत्र और 2 किलो गोबर के साथ मिलाकर घोल बना लें। अगले 24 घंटों के लिए कभी-कभी एक छड़ी के साथ मिलाएं, फिर एक महीन कपड़े से घोल को छान लें और 100 लीटर पानी डालें।
दशपर्णी अर्क - फसल में लगने वाले सामान्य कीट-पतंगों और बीमारियों की रोकथाम के लिए इसका कीटनाशक की तरह छिड़काव करें। छिड़काव से पहले दशपर्णी अर्क की 300 से 500 मिली मात्रा को 15 लीटर पानी में घोल कर लें। इतनी मात्रा एक एकड़ के लिए पर्याप्त है।
बनाने की विधि : दशपर्णी अर्क तैयार करने के लिए 5 किलो नीम के पत्ते, 2 किलो गिलोय, अनानास, लाल कनेर, मदार और करंज के पत्ते, 2 किलो हरी मिर्च और 250 ग्राम लहसुन का पेस्ट मिलाकर एक घोल तैयार करें। फिर इसमें 3 किलो गोबर और 5 लीटर गोमूत्र और 200 लीटर पानी मिलाकर घोल को एक महीने के लिए रख दें।
मिश्रित पर्णी अर्क - करीब सौ लीटर पानी में 2.5 लीटर मिश्रित अर्क मिलाकर एक एकड़ की फसल में छिड़काव करने से तना, फलों में छेद करने वाले या उसे चूसकर बर्बाद करने वाले कीटों की कारगर रोकथाम हो जाती है।
बनाने की विधि : इस अर्क को तैयार करने के लिए 3 किलो नीम के पत्ते और 2 किलो अनानास, पपीता, अनार और अमरूद के पत्तों को पीस लें। फिर इस पेस्ट को 10 लीटर गाय के मूत्र में मिलाकर तब तक उबालें जब तक कि इसकी मात्रा आधी न हो जाए। अगले दिन इस मिश्रित अर्क को छान लें। इसे 6 महीने तक बोतलों में रखा जा सकता है।
नीम के बीजों से बने उत्पाद - नीम में पाये जाने वाले ‘अजैडिरैच्टिन’ नामक तत्व ही रोगाणुओं और कीट-पतंगों का सफाया करने में सबसे प्रभावी भूमिका निभाता है। इस पदार्थ की सबसे ज्यादा मात्रा नीम के बीजों यानी निंबोली में पाया जाता है। इसलिए जैविक कीटनाशक बनाने में नीम के बीज बेहद गुणकारी है। नीम के बीजों से निम्न दवाएं बनती हैं –
बनाने की विधि : नीम के सूखे बीजों को कूट-पीसकर पाउडर बना लें। पाउडर को 2 प्रतिशत की दर से अनाज के स्टोरेज में इस्तेमाल कर सकते हैं। इस पाउडर को लकड़ी के बुरादे या धान के भूसे के साथ काली चिकनी मिट्टी में बराबर मात्रा में मिलाकर और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना रखी जा सकती है।
नीम के बीजों की गोलियों को प्रति एकड़ 100 गोलियों के हिसाब से खेत में फैलाने से अगले दस महीनों तक दीमक, सफ़ेद गिडार जैसे कीटों का प्रभावी नियंत्रण हो जाता है।
बनाने की विधि : कृषि वैज्ञानिकों ने नीम बीजों के पाउडर में करीब 12 से 15 प्रतिशत नीम का तेल और एक प्रतिशत यूकेलिप्टस के तेल का इस्तेमाल करके एक ख़ास नीम की गोलियां (पैलेट) बनायी हैं।
नीम बीज गिरी अर्क को खेतों में छिड़कने से पहले 10 लीटर नीम बीज गिरी अर्क में 25 लीटर पानी और करीब 350 मिली खादी साबुन का घोल मिलाएं। एक एकड़ की फसल में ऐसे 250 से 300 ग्राम जैविक कीटनाशक के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
बनाने की विधि : ये नीम के फल की गुठली यानी गिरी का अर्क है। इसे बनाने के दो तरीके हैं –
लहसुन नीम अर्क को 500 मिली प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर प्रत्येक सप्ताह छिड़काव करने से अनेक तरह के कीटो से छुटकारा मिल जाता है।
बनाने की विधि : एक किग्रा लहसुन, आधी मुट्ठी नीम गिरी, 10 किग्रा नीम की पत्तियां और 500 ग्राम नीम के तने की छाल को उपयुक्त पानी मिलाकर इसका लेई जैसा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट में 12 लीटर पानी मिलाकर उबाल लें। ठंडा होने पर मिश्रण को महीन कपड़े से छान लें तथा बोतलों में भरकर 4-5 सप्ताह तक छाया में रखें।
नीम की पत्तियों द्वारा जैविक कीटनाशक बनाने की विधि
जैविक कीटनाशक के प्रयोग से लाभ
नीम की बीज द्वारा कीटनाशक बनाने की विधि
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