सदाबहार : किसानों को अमीर बना देगा यह औषधीय पौधा, जानिए खेती का तरीका

पोस्ट -31 अक्टूबर 2022 शेयर पोस्ट

सदाबहार की खेती कर कमांए अच्छा मुनाफा, सजावटी पौधे के रूप में भी होता है इस्तेमाल

खेती में किसानों के बीच औषधियों फसलों का चलन काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। क्योंकि आज के इस आधुनिक दौर में बाजारों के अंदर औषधीय फसलों की काफी उचे स्तर पर मांग है। यहीं वजह है कि आज के समय में किसान बाजार मांग के अनुसार इन फसलों की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। यदि आप भी किसान है और औषधीय फसलों की खेती करने का मन बना रहे है, तो हम आपको एक ऐसी ही औषधी फसल के बारें में जानकारी देने जा रहे है। जिसकी खेती कर आप उसके फुल, पत्तियों व तनों से काफी अच्छी कमाई कर सकते है। इस औषधीय फसल का नाम सदाबहार है। यह औषधीय गुणों की दृषि से एक महत्वपूर्ण पौधा है। सदाबहार एक व बहु-वर्षीय महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी बूटी है जिसका उपयोग आमतौर पर सजावटी पौधे के रूप में होता है। सदाबहार फूल बारह महीने खिलने वाले पौधों में से एक है। पश्चिमी भारत में इसे सदाफूली के नाम से भी जाना जाता है। तो आइए ट्रैक्टरगुरु के इस लेख के माध्यम से इसकी खेती के बारे में जानते है। 

सदाबहार का परिचय

सदाबहार का वानस्पतिक नाम कैथरैंथस रोजिआ है। यह एक सदाबहार जड़ी-बूटी है। भारत में इसे सदाफूली के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा अफ्रीका महाद्वीप के मेडागास्कर देश का मूल निवासी है, यह उष्णकटिबंधीय वर्षा वन में जंगली अवस्था में उगता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग नामों से जाना जाता है। जिसमें तमिल में सदाकाडु मल्लिकइ, बांग्ला नयनतारा या गुलफिरंगी, मलयालम में उषामालारि, पंजाबी में रतनजोत और उडिया में अपंस्कांति कहते है। इसके पत्ते चमकीले, जिनका आकार अंडाकार से लम्भकार होता हैद्य इनके बीच की नाड़ी पीली और पत्तों का आकार छोटा होता है। इसके फूलों की 5 पत्तियां होती है, जिसके बीच में पीले-गुलाबी या जामुनी रंग की आंख होती है। इस पौधे से तैयार दवाईयां का उपयोग ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और कैंसर जैसी कई अन्य बीमारीयों के इलाज के लिए किया जाता है। इसकी फसल पूरे भारत मै उगाई जाती हैं।

एक हेक्टेयर में सदाबहार की उपज

विशेषज्ञों के अनुसार सदाबहार की पूरी फसल करीब 8 से 10 महीने में उपज देने के लिए पूरी तरह से तैयारी होती है। रोपाई के बाद इसका पौधा जैसे जैसे विकास करता है उसी दौरन इसके अंदर एल्केलायड व अन्य रसायन भी बढ़ते हैं। 6 से 8 महीने की फसल में विनक्रिस्टिन तत्त्व सबस से ज्यादा जड़ों में पाया जाता है। इसकी कारण इसकी फसल की इस समय पहली बार पुरानी जड़ों की तोड़ाई की जा सकती है। इसके बाद 3 महीने के पश्चात जड़ें दोबारा तोड़ी जा सकती हैं। 6 से 8 महीने के अंदर 2-4 बार पत्तियों की तोड़ाई भी की जा सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार इसके पौधे से करीब 3.6 टन सूखी पत्तियां तथा 1.5 टन सूखी जड़ें और 4.5 टन तने प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकती है। बाजार में इसकी जड़े अच्छे कीमत पर बिकती है। इसके अलावा बाजार में इसके तना, जड़ सभी चीजों का उपयोग होता है, इसलिए मुनाफा ज्यादा होता है। 

सदाबहार की प्रजातियां

सामान्य सदाबहार की तीन प्रजातियां होती है। जिनमें गुलाबी पंखडियों वाली, सफेद रंग पंखडियों वाली, सफेद फूलों के बीच में गुलाबी, बैगनी व मखमली रंग वाली होती है। इन प्रजातियों को औषधीय पौधों के रूप में उगाया जाता है। 

सदाबहार के लिए उपयुक्त जलवायु, तापमान व मिट्टीे

सदाबहार उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है। इसकी खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसकी अधिक उपज गर्म तथा अधिक आर्दता वाली परिस्थितियों में मिलती है। 15 डिग्री सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तपमान इसकी खेती के लिए बेहतर माना जाता है। सितम्बर से फरवरी तक इसकी खेती की बिजाई की जा सकती है। इसकी खेती 100 सेंटीमीटर तक वर्षा वाले इलाकों में आसानी से की जा सकती है। इसकी खेती अनुपजाऊ मिट्टी में भी की जा सकती है। इसकी खेती के लिए ज्यादा उपजाऊ मिट्टी को ज्यादा अच्छी नहीं माना जाता है, क्योंकि इससे पौधे के फूलों को नुकसान पहुंचता है। इसकी खेती बढि़या जल निकास वाली किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से कर सकते है। इसके लिए मिट्टी का पीएच 6-6.5 होना चाहिए। 

खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें।

सदाबहार की खेती के लिए किसी विशेष प्रकार से खेत तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती हैं। लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए करने के लिए अगस्त माह में इसके खेत की तैयारी करें। खेत की दो से तीन गहरी जुताई करके खेत में करीब 15 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर दोबारा जुताई कर गोबर की खाद मिट्टी में मिला दें। इसके बाद खेती में सुविधानुसार सिंचाई की नालियाँ भी बना लेना चाहिए।

खाद-बीज की मात्रा

विशेषज्ञों के अनुसार सदाबहार की अच्छी उपज के लिए एक साल से ज्यादा पुराने बीजों का प्रयोग न करें। इसकी खेती की रोपाई नर्सरी में तैयार पौधों से की जाती हैं। इसके अलावा इसकी बिजाई सीधे बीजों के मध्यम से भी की जाती है। एक  हेक्टेयर के लिए करीब 2.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। स्थानांतरित खेती के लिए 500 ग्राम बीजों के पौध पौधशाला की क्यारियों में उगाए जाते हैं, जो 1 हेक्टेयर के लिए सही होते हैं। इसके तैयार को खेत में लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हुए रोपाई करें। इस प्रकार 1 हेक्टेयर खेत में तकरीबन 74000 पौधे लग जाते हैं।
इसके पौधों की रोपाई के समय 26 किलो नाइट्रोजन, 13 किलो फॉस्फोरस तथा 13 किलो पोटाश दें। बाकी मात्रा 2 भागों में यानी बोआई के 45 दिनों बाद व 90 दिनों बाद देनी चाहिए। दिल्ली में किए गए परीक्षणों से पता चला है कि 80 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर सिचिंत खेतों के लिए और 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर असिंचित खेतों के लिए (जो वर्षा पर निर्भर रहते हैं) लाभकारी होती है।

सदाबहार की खेती की देख-भाल

सिंचाई- पहली सिंचाई तो रोपाई के तुरंत बाद करे। इसके बाद 15-15 दिनों में नियमित सिंचाई करें वर्षा काल आरंभ होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बाद जाड़े के दिनों में नमी के हिसाब से सिंचाई करें। फसल 3 महीने की होने के बाद 15-20 दिनों के अंतराल में नियमित सिंचाई करें। 

निराई-गुड़ाई- खेत में खरपतवार की मात्रा अधिक है, तो नियमित निराई-गुडाई करें। इसके खेत को हर महीने बाद निराई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त कर लेना चाहिए। इसकी फसल की दो-5 बार निराई गुड़ाई करना चाहिए।

सदाबहार के पौधों की पत्तियों पर लिटिल लीफ (मोजेक) रोग लग जाता है। इस रोगे के करण पौधों की बढ़वार रुक जाती है। इस रोग के निस्तारण के लिए प्रभावित पौधों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट करे। इसके अलावा 15-20 दिनों के अंतर से डाइथेन जेड 78 छिड़कने से इसमें होने वाले रोगों पर नियंत्रण किया जा सकता है। वहीं, फ्यूजेरियम मुरझाना व उकठा रोग भी इनमें देखने को मिलते है। इन्हें रोकने के लिए फसल बोने या रोपाई से पहले फफूंदीनाशक दवा से उपचारित करना अच्छा रहता है.। इसे कोई कीट हानि नहीं पहुंचाता है। यह पौधा कड़वा होता है, इस कारण इसे कोई जानवर भी नहीं खाता।

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