Production of peanut crop : देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के तहत तिलहनी फसलों (सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, कुसुम, सूरजमुखी, तिल, अरंडी, अलसी और नाइजर) के तिलहन उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों को विशेष सलाह दी जा रही है। इसी क्रम में अजमेर के ग्राहृय परीक्षण केन्द्र (ATC) तबीजी फार्म की तरफ से मूंगफली फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीक साझा की गई है। इसके माध्यम से उत्पादक किसान फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश में जायद सीजन में मूंग और मूंगफली की खेती करने वाले किसानों से इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद करने का महत्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा लिया गया है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने ग्रीष्मकालीन फसल सीजन 2025-26 के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत उत्तर प्रदेश में 50,750 मीट्रिक टन मूंगफली की खरीद को मंजूरी दी है।
बता दें कि खरीफ सीजन 2024-25 के लिए केंद्र सरकार द्वारा मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य 8682 रुपए प्रति क्विंटल औेर मूंगफली के लिए 6783 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया गया था, जिस पर ही जायद में उगाई गई मूंग और मूंगफली फसलों की खरीद की जाएगी। हाल ही में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच एक वीडियो कॉन्फ्रेंस हुई, इसमें प्रदेश के कृषि मंत्री ने अवगत कराया कि जायद सीजन 2024-25 में मूंग का आच्छादन 1.60 लाख हेक्टेयर और मूंगफली का आच्छादन 1.74 लाख हेक्टेयर रहा है। उन्होंने उत्पादित जायद मूंग और मूंगफली को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदने का आग्रह किया, जिसे केंदीय कृषि मंत्री चौहान ने स्वीकार कर लिया है। सरकार के इस निर्णय से बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिलेगा। साथ ही केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर मूंगफली और मूंग के क्रय के लक्ष्य में वृद्धि की जा सकती है।
ग्राहृय परीक्षण केन्द्र तबीजी फार्म के कृषि उप निदेशक मनोज कुमार ने बताया कि मूंगफली खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जिसकी बुआई जून के पहले सप्ताह से द्वितीय सप्ताह के दौरान की जानी चाहिए। मूंगफली फसल की पैदावार में बढ़ोतरी के लिए उन्नत शस्य क्रियाओं के साथ ही फसल को कीटों एवं रोगों से बचाना भी बहुत आवश्यक है। फसल में दीमक, सफेद लट, कॉलर रॉट, टिक्का (पत्ती धब्बा) एवं विषाणु गुच्छा जैसे कई अन्य हानिकारक कीट तथा रोगों का प्रकोप होता हैं। उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को सिफारिश के मुताबिक ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही बुवाई से पहले मृदा उपचार व बीजोपचार करना भी बहुत इसके उत्पादन के लिए अधिक फायदेमंद रहता है। कृषि रसायनों का उपयोग करते समय किसानों को हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क एवं पूरे वस्त्र पहनना चाहिए। फफूंदनाशी, कीटनाशी से बीजों को उपचारित करने के बाद ही राइजोबियम जीवाणु कल्चर से बीजों को उपचारित करें।
बता दें कि मूंगफली भारत की महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जिसकी खेती गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक होती है। अन्य राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में भी यह सबसे अधिक उगाई जाती है। राजस्थान में इसकी खेती लगभग 3.47 लाख हैक्टर क्षेत्र में की जाती है जिससे लगभग 6.81 लाख टन उत्पादन होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ अनुसंधान संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों ने मूंगफली की उन्नत तकनीक जैसे मूंगफली की उन्नत किस्में, रोग नियंत्रण, निराई-गुड़ाई तथा खरपतवार प्रबंधन आदि विकसित की हैं, जिनका उपयोग कर किसान मूंगफली का अच्छा उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं।
फार्म के कृषि अनुसंधान अधिकारी डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने सलाह दी कि कॉलर रॉट रोग से मूंगफली फसल को सही ढंग से बचाव हेतु भूमि उपचार, बीजोपचार और रोग प्रतिरोधक उन्नत किस्मों का उपयोग करना चाहिए। बुवाई से पूर्व प्रति हेक्टेयर क्षेत्र 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा 100 किलोग्राम गोबर में मिलाकर भूमि में मिलाएं। इसके साथ ही कॉर्बोक्सिन 37.5% थाइरम 37.5 फीसदी का 3 ग्राम या मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें। यदि रासायनिक फफूंदनाशी का इस्तेमाल कम करना हो, तो किसान 1.5 ग्राम थाइरम व 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें।
कृषि अनुसंधान अधिकारी डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया है कि मूंगफली की फसल को भूमिगत कीटों के समन्वित प्रबंधन के लिए बुवाई से पहले भूमि तैयारी के दौरान 250 किलो नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में डालें। सफेद लट प्रकोप से फसल को बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 600 एफ.एस. की 6.5 मि.ली. प्रति किलो बीज या क्लोथायोनिडिन 50 डब्ल्यूडी.जी. 2 ग्राम/ किलो बीज को उपचारित करें एवं बीज को दो घंटे छाया में सुखाकर ही बुवाई करें।
संस्थान के कृषि अनुसंधान अधिकारी (रसायन) कमलेश चौधरी ने जानकारी साझा कि है कि मूंगफली की बुवाई से पहले बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने से फसल पैदावार में बढ़ोतरी होती है। बीजों को राइजोबियम कल्चर (Rhizobium Culture) से उपचारित करने के लिए 2.5 लीटर पानी में 300 ग्राम गुड को गर्म करके घोल बनाए और घोल के ठंडा होने पर 600 ग्राम राइजोबियम जीवाणु कल्चर मिलाएं। इससे प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करने वाले बीज को इस प्रकार मिलाए कि सभी बीजों पर इसकी एक समान परत चढ़ जायें। बीजों को छाया में सुखाकर शीघ्र बुवाई करने का काम करें।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) राम करण जाट ने बताया कि बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर 60 किलो फॉस्फोरस व 15 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव भूमि में करें। पोटाश की कमी वाले खेतों में 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पोटाश बुवाई से पूर्व डालें। फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के तुरन्त बाद पेन्डीमिथालीन (30 प्रतिशत) और ईगिजाथापर (2 प्रतिशत) उपलब्ध मिश्रित शाकनाशी 800 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें एवं पेन्डीमिथालीन (30 प्रतिशत) शाकनाशी एक किलो ग्राम सक्रिय तत्व/ हेक्टेयर की मात्रा से छिड़काव करे और 30 दिन बाद निराई-गुड़ाई का कार्य करें।
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