थ्रेशर किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कृषि मशीन है। फसल की कटाई के बाद फसल से अनाज के दानों को भूसा से अलग करने के लिए थ्रेसर का उपयोग किया जाता है। भारत में 1950 के आसपास थ्रेसर को इजाद किया गया था। आज थ्रेसर मशीन का उपयोग फसलों से साफ और गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त करने के लिए किसानों द्वारा खूब किया जाता है। देखा जाए, तो भारत में वर्तमान समय में कई प्रकार के थ्रेसर उपलब्ध है, जिनमें ड्रमी टाइप, बीटर टाइप, स्पाइक टूथ सिलेंडर टाइप, एक्सियल फ्लो टाइप, ऑस्सीलेटिंग स्ट्रा वाकर टाइप (मल्टी क्राप थ्रेसर) और एस्पोरेटर टाइप शामिल हैं। वर्तमान समय में किसानों के बीच ड्रमी टाइप और एस्पोरेटर टाइप थ्रेसर ज्यादा प्रचलित है। प्रायः इन दोनों प्रकार के थ्रेसर में खूंटीदार (स्पाइक) टाइप थ्रेसिंग ड्रम लगा होता है। ये ड्रमी टाइप थ्रेसर में दाना एवं भूसा पूरी तरह से अलग नहीं हो पाता है, लेकिन एस्पोरेटर टाइप थ्रेसर से दाना छलनी के जरिए पूरी तरह भूसा से अलग होकर बिल्कुल साफ बाहर निकलता है। लेकिन इस प्रकार के थ्रेसर प्रायः ड्रमी टाइप थ्रेसर से थोड़ा महंगा होते हैं, जिसके कारण किसानों द्वारा ड्रमी टाइप थ्रेसर को ज्यादा पंसद किया जाता है। थ्रेसर किसानों के लिए बहुत ही जरूरी कृषि मशीन है, क्योंकि इसकी मदद से आज किसान फसल की कटाई और उनके दानों को अलग करने जैसे बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य को कम समय और श्रम में आसानी से पूरा कर पाते हैं। थ्रेसर से आमतौर पर सोयाबीन, गेहूं, मटर, मक्का, धान और अन्य छोटे अनाज और दलहन व तिलहन फसलों को उनके पुआल और भूसे से अलग किया जाता है। थ्रेसर इस काम में किसानों की मेहनत और पैसों की बचत कर खेती की लागत कम करता है। लेकिन आए दिन थ्रेसर के इस्तेमाल के दौरान कई प्रकार की दुर्घटनाओं की घटना की खबर आती है, जिनमें उंगली कट जाना, बांह कट जाना, धोती या साड़ी का फंस जाना आदि शामिल है। ऐसे में कुछ जरूरी सावधानी और बातों का ध्यान रखते हुए इन सब दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। आज हम ट्रैक्टर गुरू के इस लेख में थ्रेसर प्रयोग के समय बरती जाने वाली कुछ जरूरी सावधानियों एवं बातों की जानकारी देने जा रहे हैं।
पंजाब एग्रीकल्चरल विश्वविद्यालय के एक अधिकारी बताते हैं कि थ्रेसर कृषि का एक महत्वूर्ण अंग है। फसल कटाई के बाद फसल गहाई के काम में इसका इस्तेमाल किसानों द्वारा किया जाता है। फसल गहाई के कामों को थ्रेसर सुविधाजनक तरीके से शीघ्रातिशीघ्र पूरा करता है। लेकिन इसके प्रयोग के समय किसान कई प्रकार की घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। पंजाब एग्रीकल्चरल विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के सर्वे से पता चला है कि थ्रेसर प्रयोग के समय घटने वाली दुर्घटनाओं में 72.5 प्रतिशत चालक की गलती से 12.9 प्रतिशत मशीनी खराबी और मानकों में कमी से, 5.2 प्रतिशत धूम्रपान एवं अन्य कारणों से होती है।
पंजाब एग्रीकल्चरल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बताते हैं कि थ्रेसर खरीदते समय सही मानकों के साथ-साथ थ्रेसर के सही तरह से रख-रखाव जैसी बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। थ्रेसर के सही चुनाव और सही प्रयोग न करने से दुर्घटना घटने की संभावना रहती है। ऐसे में थ्रेसर के इस्तेमाल और इसे खरीदते समय इन कुछ बातों का ध्यान रखने से दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। थ्रेशर के बारे में बहुत अहम जानकारियां साझा करते हुए प्रोफेसर बताते हैं कि थ्रेसर खरीदते समय मजबूत डिजाइन और अच्छी क्वालिटी मानकों का ध्यान रखें। सस्ते एवं हल्के मानकों के थ्रेसर खरीदने से बचें। थ्रेसर में आने वाली मोटर एवं इंजन की एचपी पावर के बारे में अच्छे से पता करें कि वह थ्रेसर साइज के अनुरूप है या नहीं। सरकार द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करने वाले थ्रेसर निर्माता से ही थ्रेसर खरीदें। थ्रेसर खरीदते समय थ्रेसर के डिजाइन और कलपुर्जो पर जरूर ध्यान दें कि वे आई० एस० आई० मार्का के हैं या नहीं। थ्रेसर की डिजाइन में फसल लगाने वाले पतनाले पर ध्यान दें कि पतनाले की लंबाई, चौड़ाई सही हो और यह ऊपर से 45 से०मी0 कवर है या नहीं। इसके अलावा, चैक करें की पतनाला घेतर के साथ 5 डिग्री कोन पर ऊपर की तरफ उठा हुआ ढलानदार है या नहीं।
प्रोफेसर बताते हैं कि आज भारत में कई एग्रीकल्चरल इम्प्लीमेंट्स कंपनियां आमतौर पर थ्रेसर डिमांड और सुरक्षा जरूरतों को अनुसार डिजाइन कर रही है, जिनमें छोटे साइज से लेकर बड़े साइज तक के थ्रेसर डिजाइन शामिल है। पहाड़ी इलाकों के लिए एग्रीकल्चरल इम्प्लीमेंट्स कंपनियों ने खासतौर पर छोटे थ्रेसर किसानों के लिए डिजाइन किए है। ये आकार में छोटे होने के कारण इसे पहाड़ों पर आसानी से ऊपर ले जाया जा सकता है।
इन सावधानियों को बरतते हुए आप थ्रेसर पर आसानी से बिना किसी जोखिम के के फसल की दौनी कर सकते है।
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