Subsidy on direct sowing of paddy : धान खरीफ मौसम की एक महत्तवपूर्ण फसल है जो भारत के जुताई योग्य क्षेत्र के लगभग एक चौथाई हिस्से में उगाई जाती है और लगभग आधी आबादी इसे मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग करती है। लेकिन पारंपरिक धान की खेती (traditional paddy cultivation) में बहुत ज्यादा मेहनत और जल संसाधनों की जरूरत होती है। साथ ही किसानों को खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए पानी भरे खेतों में धान के पौधे रोपने पड़ते हैं। यह विधि न केवल श्रम-गहन है बल्कि इसमें बहुत ज्यादा पानी भी खर्च होता है। इससे किसानों को काफी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। इन्हीं को देखते हुए अब सरकार द्वारा धान की सीधी बिजाई (डीएसआर) करने के लिए बंपर अनुदान दिया जा रहा है। इसी कड़ी में हरियाणा के धान किसानों के लिए एक बड़ी खबर है! राज्य सरकार द्वारा किसानों को डीएसआर तकनीक से धान की खेती (Subsidy on direct sowing paddy) करने के लिए 4 हजार रुपए प्रति एकड़ की सब्सिडी दी जा रही है। इससे न सिर्फ किसानों को आर्थिक लाभ मिलेगा, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा होगा। कुरूक्षेत्र में एक किसान कार्यशाला के दौरान यह जानकारी राज्य के कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा द्वारा दी गई।
राज्य के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्याम सिंह राणा ने बताया कि जो किसान धान की सीधी बुआई यानी डायरेक्ट-सीडेड राइस (डीएसआर) तकनीक अपनाते हैं, उन्हें राज्य सरकार की ओर से 4,000 रुपए प्रति एकड़ की सब्सिडी मिलेगी। ये देश में सबसे बड़ी सब्सिडी है। राणा ने कहा कि हरियाणा टिकाऊ धान खेती (Paddy farming) में सबसे आगे चल रहा है और वो इसे और भी बढ़ावा देना चाहते हैं। डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) धान उगाने की एक वैकल्पिक तकनीक है, जिसमें चावल के बीज (Rice Seeds) सीधे खेत में बोए (sowed) जाते हैं, जबकि पारंपरिक रोपाई विधि में पहले नर्सरी में पौधे उगाए जाते हैं और फिर उन्हें खेत में रोपा जाता है। इस तकनीक के बारे में दावा किया जाता है कि इससे चावल की खेती में 30 प्रतिशत तक पानी की खपत कम हो जाती है।
सवाना सीड्स और राज्य कृषि विभाग ने मिलकर इस कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें जल संरक्षण धान की खेती के लिए डीएसआर (चावल के बीज की सीधी बिजाई) के फायदे और मुश्किलों पर खुलकर चर्चा हुई। इस मौके पर कृषि मंत्री ने बताया कि आम तौर पर धान की रोपाई में ढेर सारा पानी लगता है, लेकिन डीएसआर में पौधे रोपने की झंझट खत्म होने के साथ ही पानी भी कम लगता है और श्रम लागत भी बचती है। उन्होंने कहा डीएसआर तकनीक से भूजल को कैसे बचाया जा सकता है और धान की खेती को आसान कैसे बनाया जाए। इसके लिए सरकार द्वारा समर्पित प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य में जल स्तर की समस्या बड़ी गंभीर है, जिसके लिए सरकार डीएसआर (DSR) को एक स्थायी विकल्प के रूप में बढ़ावा दे रही है, ताकि पानी बचे। किसान इसे अपनाएं, इसके लिए राज्य सरकार किसानों को वित्तीय सहायता देगी, प्रशिक्षण और उन्नत बीज भी प्रदान करेगी।
कृषि मंत्री राणा ने कहा, सरकार का लक्ष्य है कि राज्य में 3 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) तकनीक से चावल की खेती कराई जाएं। वर्ष 2024 तक 50,540 किसानों ने लगभग 1.8 लाख एकड़ में डीएसआर (Direct Seeded Rice) मशीन से धान की सीधी बिजाई की। उन्होंने कहा कि धान हरियाणा की प्रमुख खरीफ फसल है, वर्ष 2022-23 में 59.21 लाख टन से ज्यादा धान का उत्पादन हुआ था और करीब 16 लाख हेक्टेयर पर इसकी खेती होती है। लेकिन गिरते जलस्तर, खरपतवार की दिक्कत और महंगी मजदूरी के चलते किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पुराने तरीके से धान उगाने में 1 किलो चावल के लिए 3,000 से 4,000 लीटर पानी लगता है। ऐसे में राज्य सरकार डीएसआर को बढ़ावा दे रही है, ताकि पानी बचे और खेती लागत कम हो सके। इसलिए हरियाणा सरकार ने धान की सीधी बिजाई (DSR) तकनीक के लिए किसानों को 4000 रुपए प्रति एकड़ का अनुदान देने का प्रावधान किया है।
डीएसआर (धान की सीधी बिजाई) तकनीक जल की खपत, श्रम आवश्यकताओं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके धान की खेती में क्रांति ला रही है। पारंपरिक विधि के विपरीत, डीएसआर बार-बार जलभराव की आवश्यकता को समाप्त करके बहुत सारा जल बचाती है। यह विधि मिट्टी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य में सुधार करती है, क्योंकि इसमें न्यूनतम जुताई की आवश्यकता होती है। रोपाई से जुड़ी श्रम लागत को कम करके, किसान प्रति एकड़ 60 श्रम घंटे तक बचा सकते हैं। डीएसआर से नर्सरी की जरूरत खत्म हो जाती है, पानी कम लगता है और पंप चलाने का खर्च 30 प्रतिशत तक घट जाता है। इसके अलावा, साल में 15 से 25 लाख लीटर पानी बच सकता है, मीथेन गैस भी कम निकलती है, जो पर्यावरण के लिए अच्छा है। इसके अलावा, डीएसआर में खरपतवारनाशकों के कुशल उपयोग से पैदावार में बढ़ोतरी होती है और लाभप्रदता बढ़ती है। हालांकि डीएसआर में कुछ चुनौतियां भी हैं जैसे कि किसान की सीमित जागरूकता और समझ के कारण, विशेषकर अनुपयुक्त मिट्टी और खरपतवार प्रबंधन के संबंध में वे आशंकित भी हैं।
डीएसआर से पराली जलाने में भी 29 प्रतिशत कमी आई है, क्योंकि सरकार ने किसानों को इसके लिए इनाम दिया। हरियाणा और पंजाब जैसे धान उत्पाद राज्यों के किसान अब इसे अपना रहे हैं और डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) यंत्र से धान की सीधी बिजाई कर, पानी और श्रम लागत में कमी कर रहे हैं। डीएसआर (Direct Seeding of Rice) यंत्र चलाने के लिए, 35 से 40 एचपी श्रेणी इंजन के ट्रैक्टर उपयुक्त हो सकते है, लेकिन 50 एचपी तक के ट्रैक्टर डीएसआर मशीन के साथ बेहतर प्रदर्शन करते हैं। ट्रैक्टर की पीटीओ से डीएसआर मशीन को चलाया जाता है, 0.3-0.04 हेक्टेयर/घंटा से अधिक डीएसआर मशीन की कार्य क्षमता हो सकती है। भारत में महिंद्रा, स्वराज, आयशर, सोनालीका, जॉन डियर, टैफे और एस्कॉर्ट्स जैसी अन्य कंपनियां के हैवी-ड्यूटी ट्रैक्टर मॉडल उपलब्ध हैं, जो डीएसआर यंत्र के साथ कुशल कार्य दक्षता प्रदान करते हैं।
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