भारत में प्राचीन काल से विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती होती आ रही है। कृषि क्षेत्र में कुछ फसल तो ऐसी भी है, जो कई हजारों साल पुरानी है। और प्राचीन काल से ही इनकी खेती मुख्य तौर पर की जा रही है। ऐसी ही पुरानी और मुनाफेमंद फसल में रागी भी एक है। भारत में इसकी खेती करीब 4 हजार साल पहले आई थी। यह एक ऐसी फसल है, जो विपरीत परिस्थितियो एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्रो में आसानी से उगाया जा सकता है। इसे अनाज की पहली फसल भी कहते है। इसे फिंगर बाजरा, अफ्रीकन रागी, लाल बाजरा आदि के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है। यह गंभीर सूखे को सहन कर सकती है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उगाई जा सकती है। रागी सभी फसलों में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। इसमें खनिज, और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। इसके अलावा इसमें लोह तत्वों की मात्रा भी ज्याादा पाई जाती है। जिस वजह से यह कम हीमोग्लोबिन वाले व्यक्ति के लिए बहुत लाभदायक है। तो आइये ट्रैक्टरगुरु के इस लेख के माध्यम से जानते हैं रागी की खेती कैसे करें।
रागी अनाज की पहली फसल है। रागी को सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी आसानी से उगाया जा सकता है। क्योंकि यह शुष्क मौसम में उगाई जाने वाली फसल है। यह ऊँचा तापक्रम और गंभीर सूखे को भी सहन कर सकती है। यह कम समय वाली फसल है, 65 दिनों में कटाई कर सकते हैं। रागी की फसल बुवाई के बाद 115 से 125 दिनों में कटाई के तैयार हो जाती है। फसल पूर्ण रूप से पकने पर इसके सिरों को पौधों से काटकर अलग करें, फसल अच्छे से सूख जाएं तब मशीन की सहायता से गहाई के बाद बीज की ओसाई करें। दानो को धूप में अच्छी तरह सुखाकर बोरों में भरें और भण्डारित करें। रागी की विभिन्न किस्मों और वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 क्विंटल के आसपास प्राप्त होती है। रागी का बाजार भाव 2,500 रूपए से 2700 रूपये प्रति क्विंटल के आसपास होता है। इस हिसाब से किसान रागी की एक हेक्टेयर से फसल से 60 हजार रूपये तक की कमाई आसानी से कर सकते है।
रागी या मड़ुआ अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अन्न है। इसे भारत में कुछ चार हजार साल पहले लाया गया था। रागी की खेती बाजरा की खेती के सामान ही होती है। इसकी खेती की बुवाई मई के आखिर से जून के अंत तक की जाती है। इसके अलावा कई क्षेत्रों में इसकी रोपाई जून के बाद भी होती है और कुछ क्षेत्रो में इसे जायद के मौसम में भी उगाते हैं। इसके खेती में बीजों के अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं। एवं पौधों को विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है। इसके पौधे गंभर सूखे को सहन करने वाले होते है। इसके पूर्ण विकसित पौधे 40 से 46 डिग्री का तापमान भी आसानी से सहन कर सकते है।
बाजरा की फसल की भॉति इसे भी किसी विशेष प्रकार की बहुत अच्छी मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती और यह साधारण से साधारण मिट्टी में भी अच्छी तरह से उगाई जा सकती है। इसकी खेती से अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में करे। भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए। इसके अलावा इसे कई तरह की उपजाऊ और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर भूमि वाली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।
रागी की खेती में अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए उन्नत और प्रमाणित संकर किस्मों का ही इस्तेमाल करें। वर्तमान समय में बाजार के अंदर रागी की वैज्ञानिक प्रमाणित उपलब्ध है। जिनसे कम समय में अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। बाजार में उपलब्ध रागी की किस्म इस प्रकार है- जीपीयू 45, चिलिका , जेएनआर 1008, आरएच 374, पीइएस 400, वीएल 149, जेएनआर 852, कुछ उन्नत किस्में हैं। जिन्हें आप अपने क्षेत्र के अनुसार चयन कर उनकी बुवाई कर सकते है।
रागी फसल उगाने के इसके खेत को बुवाई से पहले तैयार किया जाता हैं। इसके लिये खेत को एक महीने पहले तीन चार बार जोत कर पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट किया जाता है। इसके बाद रागी की अच्छी उपज के लिए इसके खेत में 12 से 15 टन जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद डालकर खेत को दो से तीन गहरी जुताई करें। उसके बाद खेत में पानी चलाकर पलेवा करें। पलेव के तीन से चार दिन बाद जब खेत सूखने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें। उसके बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें।
रागी के बीजों की बुवाई ड्रिल और छिड़काव दोनों विधियों से की जाती है। बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर रखें और बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर गहरा बोयें। बीजों की बुआई से पहले बीजों को उपचारित करने के लिए कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन), कैप्टन दवा या फिर थीरम का इस्तेमाल करें। बीजोपचार करने से फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बीज की मात्रा उसके आकार, अंकुरण प्रतिशत, बुवाई का तरीका पर निर्भर करती है। ड्रिल विधि से रोपाई में प्रति हेक्टेयर 8 -10 किलो बीज लगता है। वहीं, छिडकाव विधि से रोपाई में लगभग 10 से 15 किलो बीज लगता है।
रागी के पौधों को ज्यादा सिंचाई करने की विशेष जरूरत नहीं होती है। क्योंकि इसकी खेती बारिश के मौसम में जाती है। बारिश न होने पर 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई जरूर करें। इसकी फसल उच्च गर्मी सहन करने वाली फसल है। इसकी फसल को तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है। जब पौधे पर फूल और दाने आने लगें तब खेत में नमी का विशेष ध्यान रखें।
इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए आइसोप्रोट्यूरॉन या ऑक्सीफ्लोरफेन की उचित मात्रा का छिड़काव करे। वहीं, प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 15 से 20 दिन बाद एक बार पौधों की निराई- गुड़ाई कर देनी चाहिए।
रागी के खेतों में खाद देने की विशेष आवश्यकता नहीं होती। अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी जांच रिपोर्ट के अनुसार रासायनिक खाद के रूप में डेढ़ से दो बोरे एनपीके की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की आखिरी जुताई के वक्त छिड़ककर मिट्टी में मिला दे।
ट्रैक्टरगुरु आपको अपडेट रखने के लिए हर माह महिंद्रा ट्रैक्टर व सोनालिका ट्रैक्टर कंपनियों सहित अन्य ट्रैक्टर कंपनियों की मासिक सेल्स रिपोर्ट प्रकाशित करता है। ट्रैक्टर्स सेल्स रिपोर्ट में ट्रैक्टर की थोक व खुदरा बिक्री की राज्यवार, जिलेवार, एचपी के अनुसार जानकारी दी जाती है। साथ ही ट्रैक्टरगुरु आपको सेल्स रिपोर्ट की मासिक सदस्यता भी प्रदान करता है। अगर आप मासिक सदस्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें।
Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y