कमल के फूल दिखने में काफी सुंदर होते हैं, और यह भारत का राष्ट्रीय फूल है। आपने कमल को अधिकतर तालाब या झील के गंदे पानी में ही उगता देखा है। लेकिन हम आपसे कहे कि पानी में फलने वाला कमल का फूल अब खेतों में भी उगाया जा सकता है, तो आप यकिन नहीं होगा। कमल की खेती को लेकर लोगों की समान्य विचार धारा है कि इसकी खेती सबसे अधिक पानी के बगीचों में की जाती है, लेकिन ये बात अब पुरानी हो गई है, क्योंकि अब कमल की खेती तालाबों और पोखरों के अलावा खेतों में भी की जाने लगी है। यही वजह है कि किसान अब इसकी खेती की ओर रूख करने लगे हैं। हाल के कुछ सालों में किसानों ने खेतों में कमल की खेती करने की शुरुआत की है। ऐसा करने से किसानों को फायदा भी बहुत मिल रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार बेहद कम वक्त में कमल की खेती कर किसान लागत से कई गुना ज्यादा मुनाफा हासिल कर सकते हैं। कमल की सबसे खास बात है कि ये सिर्फ 3 से 4 महीने में तैयार हो जाती है। इसी वजह से कृषि विशेषज्ञों ने इसे कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों की श्रेणी में गिना हैं, तो आइए ट्रैक्टरगुरू की इस पोस्ट के माध्यम से कमल की खेती के तरीके, लागत एवं इससे होने वाली कमाई के बारें में विस्तार से जानते हैं।
भारत में जिस तरह की जलवायु है, उस हिसाब से इसकी खेती आसान मानी जाती है। गर्म मौसम और बड़ी मात्रा में पानी के साथ धूप की भी जरूरत होती है। कमल को सफलतापूर्वक विकसित करने के लिए पानी का तापमान 21 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापकान की आवश्यकता होती है। कमल को ठंड से बचाना जरूरी होता है। इसका पौधा उष्णकटिबंधीय वाला होता है, तथा सामान्य तापमान पर इसके पौधे ठीक से विकास करते है।
कमल की खेती जलभराव वाली हल्की काली चिकनी मिट्टी वाले तालाब की जरूरत होती है, जिसमे पानी अधिक समय तक एकत्रित रहे। इसकी खेती के लिए उचित मानी जाती है। भारत में यह सभी उष्ण प्रदेशों तथा कश्मीर, हिमालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, दक्षिणी भारत में पाया जाता है।
कमल की खेती जुलाई महीने में की जाती है। कमल की रोपाई कीचड़ में की जाती है। इसके लिए खेत में ऑर्गेनिक तरीके से तालाब को तैयार किया जाता है, जिसे सबसे पहले मिट्टी की खुदाई कर के तैयार किया जाता है, खुदाई के पश्चात तैयार तालाब में पानी भर दिया जाता है। इसके पश्चात उस तालाब में मिट्टी और पानी को मिलाकर कीचड़ को तैयार कर लेते है। इसी कीचड़ में कमल की जड़े या बीजो को लगाया जाता है। इसके बाद करीब दो महीने तक खेत में पानी भरकर रखा जाता है, क्योंकि इसकी फसल के लिए पानी और कीचड़ दोनों ही बेहद जरूरी होते हैं। यही वजह है कि इसके रोपाई के बाद खेत में पानी और कीचड़ दोनों भरा जाता है, जिससे कमल के पौधे तेजी से विकास करते हैं।
कमल की खेती जुलाई-अगस्त में की जाती है। इसके पौधे बीज रोपाई के एक से डेढ़ महा पश्चात लग जाते हैं। इसकी जड़ों में जितनी गांठे होती हैं उतने ही पौधे बाहर आते हैं। इसके बीजों का गुच्छा भी पौधों पर ही तैयार होता है। इस बीच पौधों में फूल आने की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं। इस तरह से अक्टूबर-नवंबर में इसके फूलों को तोड़ा जा सकता है।
कमल की खेती कम समय में ज्यादा आमदनी देती है। इसकी फसल मात्र 3 से 4 महीने में तैयार हो जाती है। इसकी खेती करने में लागत भी बेहद कम होती है। इसकी खेती में बीज एवं कमल लगाने में 15 से 22 हजार रूपये का खर्च आता है। यहां तक की सरकार भी अब कमल की सह-फसली खेती करने के लिए किसानों को जागरूक करते हुए मदद कर रही है। कमल के बीज ऑनलाइन या फिर अपने नजदीकी नर्सरी या किसी उद्यान केंद्र से खरीद सकते हैं। कई सरकारी नर्सरियों में इसके बीज और पौधे मुफ्त भी दिए जाते हैं। कमल के एक एकड़ खेत में करीब छह हजार पौधे तैयार हो सकते हैं। वहीं, इसके फूल करीब 12 हजार रुपये थोक में बिक जाते हैं। इसके बीज, बीज के पत्ते, कमल गट्टे और कमल का फूल अलग-अलग बिकता है। ऐसे में इसकी खेती करने के 3 महीने बाद ही 55 हजार से ज्यादा रुपये का मुनाफा मिल सकता है।
किसान भाई दुगुने मुनाफे के लिए कमल के साथ सह-फसली के रूप में सिंघाड़ा और मखाना जैसी फसलों की खेती सकते हैं। इसके अलावा किसान चाहें, तो कमल की खेती के साथ ही मछली पालन, सीप पालन और झींगा मछली पालन का काम भी कर सकता है। इससे किसानों को कमल की फसलों के साथ ही अन्य फसलों से भी आमदनी मिल जायेगी। यहां तक की सरकार भी अब कमल की सह-फसली खेती करने के लिए किसानों को जागरूक करते हुए मदद कर रही है।
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