पीएम मोदी के कथन के मुताबिक गंगा की स्वच्छता, गौ संवर्धन को लेकर राज्यों में लगातार काम किया जा रहा है। सरकार द्वारा कई योजनाएं लागू कर पशुपालकों को गाय का पालन करने एवं गाय के संरक्षण के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। वहीं, गौशालाओं को और बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं बनाई जा रही हैं। चारे की नियमित आपूर्ति और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम भी उठाए जा रहे हैं। इस कड़ी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने गोवंश संरक्षण और गोपालन के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। गोवंश संरक्षण के मामले में उत्तर प्रदेश को देश के अग्रणी राज्यों में शामिल करते हुए सरकार ने 6708 ग्रामीण गो-आश्रय स्थलों का सफलतापूर्वक संचालन किया है। इससे न केवल गोवंश का कल्याण हो रहा है, बल्कि प्रदेश के किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती भी मिल रही है।
इन सभी गो-आश्रय स्थलों पर पर गोवंश संरक्षण एवं उनके लिए हरा-चारा की आपूर्ति के लिए 100 प्रतिशत टैग्ड गोचर भूमि (परती भूमि) का उपयोग किया गया है, जो 9091.21 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली हुई है। इस वेस्टलैंड, गोचर, क्षरित वन भूमि में हरा चारागाह विकसित करने के लिए प्राथमिकता दी गई है, जिससे गोवंश के पोषण के लिए चारा उत्पादन कर इस समस्या को दूर किया जा सके।
टैग्ड गोचर भूमि में से 60.12 प्रतिशत क्षेत्रफल (5465.93 हेक्टेयर) पर हरित चारे का उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें 81 प्रतिशत क्षेत्र (4457.93) में बरसीम और ज्वारी चारे का उत्पादन हुआ है, जबकि 1007.99 हेक्टेयर (19 प्रतिशत क्षेत्रफल) पर नेपियर घास की खेती की गई है। यह प्रयास गोवंश के लिए पौष्टिक आहार सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक गो-आश्रय स्थल जालौन (396), हरदोई (357), हमीरपुर (319), बांदा (309), चित्रकूट (306), बदायूं (297), उन्नाव (291), महोबा (266) जैसे जनपदों में हैं, जहां बड़े पैमाने पर हरे चारे का उत्पादन और गोवंश संरक्षण के लिए राज्य योजनाओं को लागू किया जा रहा है।
यूपी की योगी सरकार ने कई योजनाओं के तहत किसानों को चारा बीज का वितरण किया। इसके लिए 7404.41 क्विंटल ज्वारी चारा बीज और 810.80 क्विंटल प्रमाणित बरसीम चारा बीज का आवंटन जिलों में किया है। इसके अलावा, किसानों को अब तक 35 लाख नेपियर रूट स्लिप्स (जड़ों) का भी वितरण किया है। सरकार की यह पहल किसानों को हरा चारा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाते हुए उन्हें गोवंश आधारित जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरित कर रही है।
सरकार के इन प्रयासों से न केवल जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। परती भूमि (वेस्टलैंड, गोचर, क्षरित वन भूमि) पर जैविक खाद उत्पादन के जरिए पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जा रही है। गोबर और मूत्र का उपयोग जैविक खाद बनाने में किया जा रहा है, जिससे किसान कम लागत में जैविक खाद प्राप्त कर रहे हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिला है। गोवंश आधारित योजनाएं न केवल पर्यावरण अनुकूल हैं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी साबित हो रही हैं।
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