DAP fertilizer crisis : अक्टूबर और नवंबर में रबी फसलों की बुवाई होती है, जिसके चलते डीएपी खाद की मांग बहुत अधिक बढ़ जाती है। नतीजतन, इस अवधि के दौरान किसानों को डीएपी खाद के लिए कई समस्याओं का सामना करना पड़ता रहा है। देश में डीएपी (DAP) खाद की कमी को देखते हुए केंद्र ने कहा है कि कई चुनौतियों के बावजूद राज्यों को डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) खाद की पर्याप्त आपूर्ति बनाए रखने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। इसमें 60 प्रतिशत आयात निर्भरता के बीच स्थानीय स्तर पर उपलब्धता के मुद्दों को हल किया जाएगा। सरकार के मुताबिक प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं द्वारा भारत को कम निर्यात और लाल सागर संकट जैसी मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण डीएपी की आपूर्ति प्रभावित हुई है।
उर्वरक मंत्रालय के एक आधिकारिक बयान के अनुसार, "सरकार स्थानीय उपलब्धता के मुद्दों को हल करने और डीएपी की जल्दी आपूर्ति करने के लिए राज्यों, रेलवे और खाद कंपनियों के साथ व्यवस्था बनाने में सभी आवश्यक कार्रवाई कर रही है। इसके अलावा, सरकार किसानों के लिए उर्वरक की उपलब्धता बनाए रखने के लिए डीएपी उर्वरक के विकल्प के तौर पर सिंगल सुपर फॉस्फेट और एनपीके खाद के इस्तेमाल की सलाह दे रही है।
उर्वरक मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि चुनौतियों के बावजूद भारत सरकार के उर्वरक विभाग ने राज्यों को डीएपी (DAP fertilizer) की पर्याप्त आपूर्ति बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए हैं। राज्यों की मांग को पूरा करने के लिए भारत डीएपी के आयात पर निर्भर है। वर्तमान रबी सीजन की कुल मांग की 65-70 प्रतिशत आपूर्ति आयातित डीएपी से करनी पड़ती है। इसके अलावा, घरेलू उत्पादन भी कच्चे माल के आयात पर निर्भर है। विभाग ने कहा कि इस वर्ष प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं द्वारा भारत को कम निर्यात और लाल सागर संकट (यानी रूस-यूक्रेन युद्ध) जैसी मौजूदा भू-राजनीतिक स्थितियों के कारण डीएपी की आपूर्ति प्रभावित हुई है।
रसायन एवं उर्वरक विभाग ने बताया कि लाल सागर संकट के कारण फॉस्फेटिक एसिड के जहाजों को केप ऑफ गुड होप के रास्ते मोड़ना पड़ा, जिसकी वजह से यात्रा का समय लंबा हो गया और आपूर्ति में देरी हुई। हालांकि, उद्योग जगत के कई लोगों का कहना है कि लाल सागर संकट जनवरी में ही शुरू हो गया था और इस वर्ष यदि पहले से ही कोई “प्रभावी रणनीति” बना ली गई होती तो इस खाद संकट से बचा जा सकता था। विभाग ने यह भी बताया कि पोटाश के मामले में भी इतना ही समय लग रहा है, इसमें भारत शत-प्रतिशत आयात पर निर्भर है।
उर्वरक विभाग के अनुसार इस रबी सीजन 2024-25 में विभिन्न बंदरगाहों पर 17 लाख टन से अधिक डीएपी पहुंचा और अक्टूबर और नवंबर 2024 में राज्यों को भेजा गया। इसके अलावा लगभग 6.50 लाख टन घरेलू उत्पादन राज्यों को उपलब्ध कराया गया। विभाग के अनुसार, एमपी और यूपी जैसे प्रमुख राज्यों ने पिछले रबी सीजन की तुलना में 5 लाख टन अधिक विभिन्न ग्रेड के एनपीकेएस का उपयोग किया है। पूरे देश में पिछले रबी सीजन की तुलना में 10 लाख टन अधिक एनपीकेएस की खपत की है।
उर्वरक विभाग ने बताया कि अक्टूबर और नवंबर 2024 में राज्यों को आपूर्ति की गई आयातित और घरेलू डीएपी खाद, अब तक राज्यों में उपलब्ध बफर स्टॉक को छोड़कर लगभग 23 लाख टन हो गई है। वर्तमान रबी सीजन के दौरान अब तक कुल 34.81 लाख मीट्रिक टन डीएपी और 55.14 लाख मीट्रिक टन एनपीकेएस उपलब्ध कराई जा चुकी है। अक्टूबर के दौरान आयात में 59 प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद भी इस महीने डीएपी की मांग पूरी नहीं हो सकी है। वहीं, बिक्री एक साल पहले की तुलना में कम रही।
विभाग के अनुसार, रबी सीजन के पहले दो महीनों में डीएपी की आपूर्ति लगभग 35 लाख टन अनुमानित की गई थी, जिसमें अक्टूबर के लिए 18.69 लाख टन और नवंबर के लिए लगभग 16.14 लाख टन आपूर्ति शामिल है। उर्वरक मंत्रालय की ओर से स्थानीय स्तर पर उपलब्धता और शीघ्र आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए राज्यों, रेलवे और उर्वरक कंपनियों के साथ मिलकर सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं।
डाइअमोनियम फॉस्फेट (DAP) की बढ़ती किल्लत के बीच किसान अब कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर की ओर अधिक रुख कर रहे हैं, क्योंकि यह सस्ता होने के साथ आसानी से उपलब्ध भी है। व्यापारी इसकी मांग को पूरा करने के लिए विदेशों से कच्चा माल आयात कर देश में ही सस्ते में कॉम्प्लेक्स खाद बना रहे हैं और किसानों को आपूर्ति करा रहे हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश में कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर के उत्पादन में 11 प्रतिशत की तेजी आई है, जो अब करीब 63 लाख टन तक पहुंच गया है। सॉइल हेल्थ कार्ड से किसानों के बीच जागरूकता बढ़ी है, जिसके चलते एनपीके जैसी कॉम्प्लेक्स खादों की मांग बढ़ी है। सॉइल हेल्थ कार्ड के अनुसार किसान मिट्टी में पोषक तत्व की मात्रा के लिए एनपीके खादों का प्रयोग कर रहे हैं। वहीं, किसानों को डीएपी उर्वरक के विकल्प के तौर पर सिंगल सुपर फॉस्फेट और एनपीके खाद के इस्तेमाल की सलाह दी जा रही है।
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