Thresher machine : किसानों द्वारा उगाई गई फसलों से अनाज प्राप्त करने में कृषि यंत्र थ्रेशर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक गहाई मशीन है, जिसका उपयोग कटाई के बाद फसल से अनाज के दानों को भूसा से अलग करने के लिए किया जाता है। थ्रेशर के उपयोग से समय पर गहाई पूरी करके पैदावार की क्षति को कम करने में मदद मिलती है। उच्च क्षमता व दक्षता वाले थ्रेशर मशीन के उपयोग से समय की बचत के साथ-साथ गहाई में लगने वाले श्रम में भी कमी आई है। कई दिनों तक चलने वाले गहाई कार्य अब इस गहाई मशीन (थ्रेशर) से कुछ दिनों में पूर्ण हो जाता है। भारत में 1950 के आसपास थ्रेसर मशीन को विकसित किया गया था, तब से लेकर अब तक थ्रेशर की दक्षता एवं उत्पादकता में कई सुधार किया गया है, लेकिन इन यंत्रों से होने वाले दुष्प्रभाव की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप थ्रेशर मशीनों से होने वाली दुर्घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। हालांकि, कुछ थ्रेशर के उपयोग के दौरान कुछ-कुछ जरूरी सावधानियों और बातों का ध्यान रखकर, इसके उपयोग के दौरान होने वाली विभिन्न दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। आईए, थ्रेशर मशीन से होने वाली दुर्घटनाओं और इसके उपयोग के समय किन-किन सावधानियों को बरतना चाहिए आदि के बारे में जानते हैं।
थ्रेशर मशीन (Thresher Machine) पर काम करते समय दुर्घटनाएं मुख्यत: उचित जानकारी के अभाव तथा कुछ असुरक्षित मशीनों के उपयोग से होती हैं। एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 73 फीसदी दुर्घटनाएं मानवीय गलतियों के कारणों से, 13 फीसदी मशीनी कारणों से एवं शेष 14 प्रतिशत दुर्घटनाएं अन्य कारणों से होती हैं। थ्रेशर के उपयोग के दौरान मुख्यत: उंगली कट जाना, बांह कट जाना, धोती या साड़ी का फंस जाना इत्यादि है। अत: इन दुर्घटनाओं से बचाव के लिए लोगों को जागरूक बनाने व थ्रेशर को सुरक्षित उपयोग करने की आवश्यकता है। थ्रेशर पर होने वाली प्रमुख दुर्घटनाओं के कारणों में इस मशीन के तेज गति तथा भारी संवेग के साथ घूमने वाले कलपुर्जे हैं। इन कलपुर्जों जैसे थ्रेशिंग सिलेंडर, पंखे या पट्टों इत्यादि की चपेट में शरीर के अंगों के आने से दुर्घटना होती है। सर्वाधिक दुर्घटनाएं थ्रेशिंग सिलेंडर की चपेट में हाथों के आने से होती हैं।
भारतीय कृषि बाजार में कई प्रकार के थ्रेशर मॉडल उपलब्ध है, जिनमें बीटर टाइप, स्पाइक टूथ सिलेंडर टाइप, एक्सियल फ्लो टाइप, ऑस्सीलेटिंग स्ट्रा वाकर टाइप (मल्टी क्राप थ्रेसर) शामिल है। इनमें किसानों के बीच ड्रमी टाइप और एस्पोरेटर टाइप थ्रेशर ज्यादा प्रचलित है। भराई शूट आई.एस.: 9020-2002 के अनुरूप बनाई गई थ्रेशर मशीन का ही चयन करें। थ्रेशर की लंबाई कम से कम 900 एमएम और चौड़ाई (ड्रम के मुंह पर) कम से कम 220 एमएम और ऊपर से ढके हुए भाग की लंबाई कम से कम 450 एमएम होनी चाहिए। इससे हाथ गहाई धुरे तक आसानी से न पहुंच सके। ढंके हुए भाग का उठाव 10-30 डिग्री होना चाहिए। भराई शूट को थ्रेशर से 5-10 अंश के कोण पर ऊपर की ओर झुका देने से फसल आसानी से थ्रेशर में पहुंच जाती है। थ्रेशर के घूमने वाले कलपुर्जे जैसे पुली व पट्टे सही तरीके से गार्ड्स/आवरण लोहे की मोटे तार की जाली से ढंके होने चाहिए।
अक्सर देखा गया है कि व्यक्ति द्वारा थ्रेशर मशीन में फसल डालने का काम करने पर प्राय: जल्दबाजी की जाती है, जो कभी-कभी दुर्घटना का मुख्य कारण बन जाती है। इसलिए थ्रेशर में फसल डालने का काम दो व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिए। एक व्यक्ति फसल को नीचे से उठाए एवं दूसरा व्यक्ति उसे मशीन में डाले। फसल अंदर डालने वाले व्यक्ति के खड़े होने की जगह समतल और मजबूत होनी चाहिए। चारपाई, अनाज के बोरे, फसलों के गर या टायर इत्यादि पर खड़े होने से शरीर का संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे मशीन पर गिरने की प्रबल संभावना रहती है। अगर व्यक्ति ऊंचे प्लेटफार्म पर खड़ा हो या सीधे ट्रैक्टर की ट्राली से ही फसल को थ्रेशर में डाल रहा हो तो वह हाथों के अलावा कभी-कभी पैरों से भी फसल को अंदर की ओर धकेलता है, जिससे फसल के अचानक अन्दर प्रवेश करने पर हाथ या पैर का अन्दर जाना स्वाभाविक ही है।
Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y