पपीते की खेती : एक हेक्टेयर जमीन से 10 लाख रुपए सालाना की कमाई

पपीते की खेती : एक हेक्टेयर जमीन से 10 लाख रुपए सालाना की कमाई

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पपीते की खेती है बहुत लाभकारी, पपीते के खेत में पैदा की जा सकती है सब्जियां

स्वास्थ्य की दृष्टि से पपीता बहुत लाभदायक फल है। देश में पपीते की मांग सालभर बनी रहती है। पपीते की खेती शीघ्र फल देने वाली फसल है। पपीते का पेड़ एक वर्ष में ही फल देने लगता है। किसान भाई अगर परंपरागत खेती को छोडक़र पपीते की खेती करें तो वह ज्यादा लाभ कमा सकता है। एक बार पपीते का पेड़ लगाने पर 24 महीने तक उससे फल प्राप्त होते हैं। एक सामान्य अनुमान के अनुसार एक हेक्टेयर भूमि में पपीते की व्यावसायिक खेती से करीब 10 लाख रुपए सालाना की कमाई की जा सकती है। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में आपको पपीते की व्यावसायिक खेती / पपीता की उन्नत खेती / पपीते की खेती की जानकारी दी जा रही है।

भारत में पपीते की खेती / पपीता की फसल

भारत में पपीते की खेती

अगर कोई किसान पपीते की खेती करना चाहता है तो उसे भूमि, मिट्टी, जलवायु, सिंचाई, पीएच मान आदि की जानकारी होनी चाहिए। भारत के अधिकांश राज्यों में पपीते की खेती आसानी से की जा सकती है। भारत में पपीते की सफलतापूर्वक बागवानी उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, असम, कर्नाटक, तमिलनाडू व ओडि़सा में की जाती है।

पपीते की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

भारत की भौगोलिक परिस्थितियां पपीते की खेती के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। पपीते के पौधे को ठंडे और गर्म मौसम दोनों में लगाया जा सकता है। पपीते की खेती के लिए हल्की दोमट या दोमट मृृदा, उपजाऊ, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर और अच्छे जल निकास वाली मृदा सबसे अच्छी रहती है। साथ ही मृदा का पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए। साथ ही पपीते की खेती के लिए न्यूनतम तापमान 5 डिग्री और अधिकतम तापमान 38 से 44 डिग्री सेल्सियस तक होना अनिवार्य है। खेत में पानी निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। पानी के जमा होने से पपीते के पेड़ की जड़ों में रोग पनप जाते हैं। पपीते की खेती में अधिक ठंड तथा पाला शत्रु हैं, इससे पौधे और फल दोनों ही प्रभावित होते हैं। पपीते के सकल उत्पादन के लिए तुलनात्मक उच्च तापमान, कम आर्द्रता और पर्याप्त नमी की जरुरत होती है।

पपीता की खेती का समय / पपीते के पौधे कैसे लगाएं / पपीते को बोने का समय

पपीते की खेती सालभर की जा सकती है लेकिन पपीते के बीज बोने का उचित समय जुलाई से सितंबर और फरवरी से मार्च होता है। पपीते की खेती के लिए बीज स्वच्छ फल और अच्छी किस्म के लेने चाहिए। नया बीज संकर किस्म का होने पर हर साल नया बीज ही बोना चाहिए। बीजों को क्यारियों, मिट्टी के गमलों व पॉलीथीन की थैलियों में बोना चाहिए। पपीते के पौधों को पद विगलन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फार्मलीन के 1:40 के घोल से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को भी 0.1 फीसदी कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित करके बोना चाहिए।

पपीता की बुवाई : पपीते की खेती के लिए भूमि की तैयारी

पपीता की बुवाई : पपीते की खेती के लिए भूमि की तैयारी

पपीते की खेती के लिए खेत को जोतकर समतल करना चाहिए। फिर पपीता के पौधे रोपने के लिए 50x50x50 सेमी आकार में गड्ढे खोदने चाहिए। यदि हम पपीते की खेती मेंं पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 2×2 मीटर रखते हैं तो एक हैक्टेयर में 2500-3000 पौधे लगाए जा सकते हैं। गड्ढो में पौधे लगाने से करीब दस दिन पहले 20 किग्रा गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट एवं 250 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर गड्ढों में भर देना चाहिए।

खाद व उर्वरक का प्रयोग

पपीते की खेती में खाद व उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग उत्पादकता को कई गुणा तक बढ़ा सकता है। पपीते की खेती में अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे तो अच्छी उपज प्राप्त कर सकेंगे।

1. पपीते की खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है। पपीते के पेड़ पर ज्यादा फल प्राप्त करने के लिए 250 ग्राम नाइट्रोजन, 150 ग्राम फॉस्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की आवश्यकता होती है। फॉस्फोरस और पोटाश की आधी-आधी मात्रा दो बार देनी चाहिए।

2. पपीते की खेती में रसायनिक खाद-उर्वरक के साथ-साथ जैविक खाद का प्रयोग किया जाए तो असाधारण फायदा पहुंचता है। प्रति वर्ष प्रति पौधे 20-25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, एक किलोग्राम बोनमील और एक किलोग्राम नीम की खली की जरुरत पड़ती है। खाद की यह मात्र तीन बार बराबर मात्रा में मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्टूबर के महीने में देनी चाहिए।

3. उर्वरकों को तने से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधें के चारों ओर बिखेर कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। फास्फोरस व पोटाश की आधी मात्रा फरवरी-मार्च और आधी जुलाई-अगस्त में देनी चाहिए। उर्वरक देने के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

पपीते की खेती में सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

पपीते की खेती में सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

पपीते की खेती में सही समय पर सिंचाई का बहुत अधिक महत्व है। पानी की कमी से पपीते के उत्पादन पर विपरित असर पड़ता है। पपीते के खेत में गर्मियों के दिनों में 7 दिन के अंतराल में व सर्दियों के दिनों में 10-12 दिनों के अंदर सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई के समय यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि पानी तने के संपर्क में नहीं आए। बचाव के लिए तने के चारों और मिट्टी को ऊंची चढ़ा देनी चाहिए। पपीते के पेड़ का तना पानी के संपर्क में आकर गलन रोग से प्रभावित हो सकता है। पपीते के खेत में खरपतवार नियंत्रण पर भी ध्यान रखना चाहिए। पपीते के बगीचे में तमाम खरपतवार उग जाते हैं, इससे पौधों की बढ़वार और उत्पादन पर वितरित असर पड़ता है। खरपतवारों से बचाव के लिए जरूरत के मुताबिक निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।

पपीते की किस्में

पपीते की किस्में

भारत में पपीते की अनेक किस्में है। यहां कुछ लोकप्रिय पपीते की किस्मों के बारे में जानकारी दी जा रही है।

1. पूसा डेलिसियस :

इस किस्म को संपूर्ण भारत में लगाया जा सकता है। इसका एक पौधा 40 से 45 किलोग्राम फल देता है। यह पपीते की गाइनोडाइसियसे प्रजाति से है। मादा और नर दो फूल एक ही पौधे पर आते हैं। फल का वजन 1-2 किलोग्राम होता है।

2. पूजा मैजेस्टी :

इस किस्म को संपूर्ण भारत वर्ष में लगाया जा सकता है। इसका एक पौधा 35 से 40 किलोग्राम फल देता है। यह पपीते की गाइनोडाइसियसे प्रजाति है। पपेन के लिए उपयुक्त तथा भंडारण क्षमता अधिक होती है। फल का वजन 1 से 1.5 किलोग्राम होता है।

3. पूसा जायंट :

यह किस्म संपूर्ण भारत के लिए अनुमोदित है। इसका एक पेड़ 30-35 किलोग्राम तक फल प्राप्त होता है। इस किस्म में नर व मादा फूल अलग-अलग पौधे पर पाए जाते हैं। तेज हवाओं के प्रति सहनशीलता वाले क्षेत्रों में अधिक उपयोगी। फल का वजन 1.5 से 3 किलोग्राम तक होता है।

4. पूसा ड्वार्फ :

इस किस्म की खेती भी संपूर्ण भारत में की जा सकती है। इसका पेड़ 40 से 45 किलो फल देता है। इसमें नर व मादा फूल अलग-अलग पौधे पर आते हैं। फल का वजन 1 से 1.50 किलो होता है।

5. रेड लेडी 786 :

यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी, दिल्ली, झारखंड और राजस्थान में लोकप्रिय है। इसका पेड़ 80 से 100 किलोग्राम तक फल देता है। इसमें नर व मादा फूल एक ही पौधे पर आते हैं। भंडारण क्षमता अधिक होती है। अन्य किस्मों से जल्दी तैयार होते हैं। रेड लेडी पपीता की खेती में किसान बंपर उत्पादन ले रहे हैं।

6. ताइवानी :

ताइवानी पपीता की खेती ज्यादा मुनाफा देने वाली है। ताइवानी नस्ल का पौधा डेढ़ साल तक फसल देता है। एक पौधे से ढाई से तीन क्विंटल पपीते का उत्पादन होता है। इस नस्ल के पौधे की ऊंचाई दो से तीन फीट तक होती है। पौधा लगाने के तीन माह बाद फल आने लगता है। आठ माह के बाद फसल तैयार हो जाती है।

पपीते में रोग के प्रकार और बचाव की जानकारी

पपीते में रोग के प्रकार और बचाव की जानकारी

पपीते की फसल को किसी कीड़े से नुकसान नहीं पहुंचता है। पपीते में प्रमुख रूप से कीटों से रोग फैलते हैं। पपीते की फसल में फैलने वाले प्रमुख रोगों के बारे में नीचे जानकारी दी गई है।

1. मोजेक : इस रोग के कारण पपीते के पेड़ में पत्तियों का रंग पीला हो जाता है। साथ ही डंठल छोटा और आकार में सिकुड़ जाता है। इस रोग से बचाव के लिए 250 मिली लीटर मैलाथियान 50 ई.सी. 250 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना काफी फायदेमंद होता है।

2. तना तथा जडग़लन रोग : पपीते की खेती में जल के ठहराव को अच्छा नहीं माना जाता है। पपीपे के पेड़ में जल का अधिक समय तक ठहराव तना तथा जडग़लन रोग का प्रमुख कारण है। इस रोग से प्रभावित पेड़ों की जड़ें गलने लगती है। तने का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है और पौधा मर जाता है। तना तथा जडग़लन रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एक प्रतिशत बोरडॉक्स मिश्रण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए।

3. डेम्पिंग ऑफ : डेम्पिंग ऑफ रोग के कारण छोटे पौधे नर्सरी में ही गलकर समाप्त हो जाते हैं। इस रोग से बचाव के लिए बीज बोने से पहले सेरेसान एग्रोसन जी.एन. से तथा सीडबेड को 2.5 प्रतिशत फार्मेल्डिहाइड घोल से उपचारित करना चाहिए।

4. चैंपा : इस रोग में कीट पौधे के तमाम हिस्सों का रस चूसते हैं और विषाणु रोग फैलाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए डायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिलीलीटर या पफास्पफोमिडाल 5 मिलीलीटर को 1 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए।

5. पद विगलन : इस रोग के कारण पौधे की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां पीली हो जाती हैं, पौध सडक़र गिर जाती है। पद विगलन रोग पीथियम फ्रयूजेरियम नामक फफूंदी के कारण होता है। इस रोग की रोकथाम के लिए रोग वाले भाग को खुरचकर साफ करें। फिर उस पर ब्रासीकोल 2 ग्राम को एक लीटर पानी मेें घोलकर छिडक़ाव करें।

6. श्याम वर्ण : इस रोग में फलों के ऊपर भूरे रंग के निशान आ जाते हैं। रोग के कारण पत्तियों और फलों की वृद्धि रुक जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए ब्लाईटाक्स 3 ग्राम को 1 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए।

पपीते के फलों की तुड़ाई

पपीते के फल पकने के बाद तुड़ाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पौधे लगने के 9 से 10 महीने बाद फल पककर तैयार हो जाते हैं। जब फलों का रंग गहरे हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगे और फलों के नाखून लगाने पर सफेद दूध की जगह पानी जैसा तरल पदार्थ निकलने लगे तो समझना चाहिए कि फल तोडऩे लायक हो गए हैं।

पपीते की उपज / पपीते की खेती से कमाई का गणित

पपीते की उपज / पपीते की खेती से कमाई का गणित

पपीते की खेती से किसान भाई प्रति हेक्टेयर करीब 10 लाख रुपए सालाना कमा सकता है। पपीते की खेती वैज्ञानिक व उन्नत विधि से करने पर प्रति पौधा 40 से 50 किलोग्राम फल देता है। एक हेक्टयेर खेत में 2500 से लेकर 3000 पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर 2500 पेड़ पर 50 किलो पपीपे के उत्पादन का हिसाब लगाया जाए तो एक हैक्टेयर भूमि में कुल उत्पादन 1 लाख 25 हजार क्विंटल होगा। अगर इसे न्यूनतम 10 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भी बेचा जाए तो किसान को 12 लाख 50 हजार रुपए प्राप्त होंगे। इस राशि में से अगर 2.50 लाख रुपए का खर्चा काट दिया जाए तो किसान को 10 लाख रुपए का मुनाफा होगा।

भारत में पपीते का बाजार

पपीते को स्थानीय मंडी के अलावा देश की बड़ी फल मंडियों में आसानी से बेचा जा सकता है। पपीले की मांग हमेशा बनी रहती है। इसके अलावा पपीते का उपयोग दवा बनाने व कॉस्मेटिक आइटम में भी होता है। इन प्रोडक्ट का निर्माण करने वाली कंपनियों में भी पपीते की मांग बनी रहती है।

पपीता खाने के फायदे और नुकसान

पपीता पोषक तत्वों से भरपूर फल है। यहां आपको पपीता खाने के फायदे और पपीता खाने के नुकसान बताए जा रहे हैं। अक्सर लोगों के जेहन में यह सवाल उठता है कि पपीता में कौन सा विटामिन होता है तो हम आपको बता दें कि पपीते में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। एक मध्यम आकार के पपीते में 30 ग्राम कार्बोहाइड्राइट, 5 ग्राम फाइबर, 18 ग्राम शुगर और 2 ग्राम विटामिन पाया जाता है। पपीता का उपयोग कच्चे और पके फल के रूप में किया जाता है। पपीते के कई फायदे हैं। पपीता एक शानदार डाइजेशनल डाइट है। इससे हार्ट डिजिज, डाइबिटिज, कैंसर, डाइजेस्टिव की समस्या खत्म करने वाला माना जाता है। वहीं पपीते में कई एंजाइम भी पाए जाते हैं। इस कारण पपीते का ज्यादा सेवन भी नुकसानदायक होता है।

कच्चा पपीता खाने के फायदे और नुकसान

भारतीय कच्चे पपीते का भी सेवन करते हैं। कच्चा पपीता कई रोगों के इलाज में ज्यादा कारगर है। कच्चे पपीते में कैरेटनॉइड, एंटी-ऑक्सीडेंट जैस तत्व होते हैं। जो शरीर को कई रोगों से बचाते हैं। कच्चा पपीता खाने के फायदे बहुत हैं, जैसे इंफेक्शन से बचाव, वजन घटाने में फायदेमंद, पीलिया रोग, खूबसूरत त्वचा, हेल्थी पेट आदि। पपीते को सुबह के समय खाने की सलाह स्वास्थ्य विशेषज्ञ देते हैं। रात में पपीता खाने के फायदे कम, नुकसान ज्यादा हैं। रात को पपीता खाने के फायदे नहीं है क्योंकि यह पेट के लिए कुछ भारी साबित होता है।

पपीते के पत्ते के फायदे और नुकसान

डेंगू बुखार में पपीते के पत्ते के फायदे बताए गए हैं। डेंगू वायरस के कारण अक्सर लोगों को बुखार हो जाता है। डेंगू वायरस शरीर में प्लेटलेट को कम कर देता है। ऐसे में आप पपीते के पत्ते का 25 एमएल रस दिन में दो बार ले सकते हैं। इससे आपके प्लेटलेट काउंट बढऩे में मदद मिल सकती है और संक्रमण की गंभीरता कम हो सकती है।

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