सेब की खेती : एक बार पेड़ लगाएं, 100 साल तक फल पाएं

सेब की खेती : एक बार पेड़ लगाएं, 100 साल तक फल पाएं

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सेब की खेती : मौसम, जलवायु, मिट्टी, सिंचाई और देखभाल के तरीकों की पूरी जानकारी

क्या आप जानते हैं सेब एक स्वास्थ्यवर्धक फल होने के साथ-साथ किसानों की आमदनी का बहुत अच्छा स्त्रोत है। सेब का पेड़ बड़ा होने के बाद करीब 100 साल तक फल देता है और सेब की बागवानी से जुड़े किसानों को हर साल एक निश्चित आय होती है। भारत में सेब की बहुत ज्यादा खपत होती है। अच्छी क्वालिटी के सेबों का कई देशों में निर्यात भी किया जाता है। सेब के फायदे को देखते हुए ‘एक सेब रोज खाईये और डॉक्टर को दूर भगाइये’ जैसी कहावतें भी बहुत प्रचलित है। सेब सामान्यत : लाल व हरे रंग का होता है। वैज्ञानिक भाषा में सेब को ‘मेलस डोमेस्टिका’ कहा जाता है। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में आपको सेब की खेती के बारे में जानकारी दी गई है।

भारत में सेब की खेती / सेब की खेती कहां होती है

भारत में सेब की खेती / सेब की खेती कहां होती है

सेब उत्पादन के मामले में भारत की विश्व में 9वीं रैंक है। देश में प्रतिवर्ष 1.48 मिलियन टन सेब का उत्पादन होता है। ठंडे प्रदेशों को सेब की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। भारत में सेब की सबसे अधिक खेती जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में होती है। सेब के कुल उत्पादन का 58 प्रतिशत जम्मू कश्मीर, 29 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश, 12 प्रतिशत उत्तराखंड तथा 1 प्रतिशत अरूणाचल प्रदेश में होता है।

सेब की खेती कैसे करें : सेब की खेती के लिए जलवायु

सेब की खेती ऐसे पर्वतीय इलाकों में की जाती है जहां पर्वतों की ऊंचाई 1600 से 2700 मीटर हो, क्योंकि सेब के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए अधिक ठंड की आवश्यकता होती है। सेब की खेती के लिए शीतोष्ठ जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त है। सेब के पेड़ को एक साल में 400 घंटे 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान की आवश्यकता होती है। ज्यादा तापमान का सेब की खेती पर विपरित असर पड़ता है। इसके अलावा सेब की खेती के लिए 100-150 सेंटीमीटर बारिश वाले इलाके सबसे उत्तम माने जाते हैं। अब सेब की कई ऐसी किस्में विकसित कर ली गई हैं जो मैदानी इलाकों में भी पैदा की जा सकती है।

सेब की खेती के लिए भूमि व मिट्टी

सेब की बागवानी या खेती के लिए गहराई वाली सूखी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। मिट्टी की गहराई कम से कम 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इस गहराई के बाद डेढ़ से दो मीटर की गहराई तक चट्टान नहीं होनी चाहिए। साथ ही मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 होना चाहिए। खेत ऐसा होना चाहिए जिसमें जलभराव नहीं हो, क्योंकि जलभराव की स्थिति में सेब के पौधों में कई तरह के रोग लग जाते हैं।

सेब की खेती के लिए तापमान / सेब की खेती कब होती है

सेब की खेती के लिए तापमान / सेब की खेती कब होती है

सेब ठंडे मौसम में पैदा होने वाला फल है। सेब के पौधों के भरपूर विकास के लिए ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। 20 डिग्री तापमान पौधे के विकास के लिए सबसे अच्छा वातावरण रहता है। पेड़ पर सेव के फलों के पकने के दौरान 7 डिग्री तापमान सबसे उचित रहता है। सेब के पौधों की रोपाई का सर्वश्रेष्ठ समय जनवरी व फरवरी माह रहता है। हालांकि दिसंबर से मार्च माह तक भी रोपण किया जा सकता है।

सेब के पौधे तैयार करना / सेब के पौधे कहां मिलेंगे

सेव के पौधों को दो विधियों से तैयार किया जाता है। एक बीज से, दूसरा कलम से। सेब के बीज नर्सरी या गार्डनिंग स्टोर पर मिलते हैं। इसके अलावा आप खुद सेब के बीज निकालकर एक निर्धारित प्रोसेस को पूरा करके बीज से पौधे उगा सकते हैं। वहीं कलम से पौधों को तैयार करने के लिए पुराने पेड़ों की शाखाओं को ग्राफ्टिंग और गूटी विधि से तैयार किया जाता है। सेब के पौधे सरकारी नर्सरियों में मिलते हैं।

सेब की खेती : ऐसे करें खेत की तैयारी / सेब की खेती की तकनीक

सेब की खेती : ऐसे करें खेत की तैयारी / सेब की खेती की तकनीक

सेब के लिए खेत की मिट्टी की नीचे कठोर सतह नहीं होनी चाहिए। ऐसे सेब के पौधों का विकास प्रभावित होता है। अगर आप सेब की खेती करना चाहते हैं ते खेत में तीन बार अच्छी तरह से जुताई करें। इसके बाद रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाएं। अब खेत को समतल बनाने के लिए ट्रैक्टर की सहायता से पाटा चलाएं। अब आपका खेत सेब की बागवानी के लिए तैयार है। अब आपको पौधरोपण करना होगा। पौधरोपण के लिए खेत में 10 से 15 फीट की दूरी पर 2 फीट गहरा गड्ढा बनाएं। इस गड्ढे में गोबर खाद और रासायनिक खाद डालकर अच्छे से मिलाएं। इसके बाद खेत की सिंचाई करें। आपको यह सब काम पौधरोपण से करीब डेढ़ महीने पहले करना है।

सेब का पौधरोपण

सेब की बागवानी या खेती के लिए पौधे एक साल पुराने और बिल्कुल स्वस्थ होने चाहिए। सेब के पौधों का रोपण गड्ढों में किया जाता है। एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे की दूरी और गहराई की जानकारी आपको ऊपर दे दी गई है। इन गड्ढ़ों के बीच एक छोटा सा गड्ढा तैयार कर उसे गौमूत्र से उपचारित करना चाहिए। इसके बाद सेब के पौधों का इन गड्ढों में रोपण करना चाहिए। रोपण के बाद जड़ों की नमी का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए गड्ढों में मिट्टी के साथ नारियल के छिलके भी डाल सकते हैं। पौधरोपण का उचित समय जनवरी व फरवरी माह है।

इस समय पौधों को उचित वातावरण मिलता है, जिससे वे समुचित विकास करते हैं। सेब के पौधों के विकास के लिए जरूरी है कि पौधा ऐसी जगह पर हो जहां सूर्य का प्रकाश माह में औसत 200 घंटे पर्याप्त मात्रा में सीधे पौधे को प्राप्त हो। यहां आपको बता दें कि फूल खिलते समय मार्च माह से अप्रैल माह में बारिश का और तापमान में उतार-चढ़ाव का भी सेब उत्पादन पर वितरित प्रभाव पड़ता है।

सेब की खेती में सिंचाई व्यवस्था

सेब की खेती के लिए पौधों का रोपण सर्दी के मौसम में किया जाता है। पौधा रोपण के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। सर्दी के महीनों में 2 से 3 बार सिंचाई जरूरी है। गर्मी के महीनों में प्रति सप्ताह सिंचाई करना जरूरी होता है। बारिश के मौसम में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। कुल मिलाकर सेब की बागवानी में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

सेब की खेती में उर्वरक और खाद प्रबंधन

सेब की खेती या बागवानी के लिए उर्वरक और खाद का प्रबंधन करने से पूर्व खेत की मृदा का परीक्षण कराना चाहिए। सामान्य उपजाऊ भूमि में सेब की खेती में प्रत्येक पेड़ के लिए दस किलोग्राम गोबर खाद, एक किलोग्राम नीम की खली, 70 ग्राम नाइट्रोजन, 35 ग्राम फास्फोरस और 720 ग्राम पोटेशियम की आवश्यकता होती है। पेड़ की आयु के अनुसार 10 साल तक खादों की मात्रा बढ़ाकर डालनी चाहिए। इसके अलावा एग्रोमीन या मल्टीप्लेक्स जैसे सूक्ष्म तत्वों का मिश्रण, कैल्शियम सल्फेट, जिंक सल्फेट, बोरेम्स आदि को मिट्टी की आवश्यकता के अनुसार समय समय पर देते रहना चाहिए। इससे फसल उत्पादन में वृद्धि होती है।

सेब की उन्नत किस्में / सेब की प्रजातियां

सेब की उन्नत किस्में / सेब की प्रजातियां

विश्व में सेब की 7500 से ज्यादा नस्ले हैं। भारत में सेब की उन्नत किस्में सैकड़ों की संख्या में है। सभी किस्मों की जानकारी देना यहां संभव नहीं है। हम यहां सेब की लोकप्रिय किस्म के बारे में बता रहे हैं।

  • शीघ्र पकने वाली सेब की किस्में :

सेब की शीघ्र पकने वाली किस्मों में टाइडमैन अर्ली वारसेस्टर, अर्ली शनवरी, चौबटिया प्रिंसेज, चौबटिया अनुपम, रेड जून, रेड गाला, फैनी, विनोनी आदि शामिल हैं। ये किस्में जुलाई से अगस्त माह में पक जाती है।

  • मध्य में पकने वाली सेव की किस्में :

अगस्त से सितंबर माह में पकने वाली सेव की किस्मों को मध्य में पकने वाली किस्में माना जाता है। इनमें मुख्यरूप से रेड डेलिशियस, रायल डेलिशियस, गोल्डन डेलिशियस, रिच-ए-रेड, रेड गोल्ड, रेड फ्यूजी, जोनाथन आदि शामिल है।

  • देर से पकने वाली सेब की किस्में :

सितंबर से अक्टूबर माह में पकने वाली किस्में सेब की देर से पकने वाली किस्में मानी जाती है। इनमें रायमर, बंकिघम, गेनी स्मिथ आदि किस्में शामिल है।

  • सेव की शंकु किस्मेें :

सेव का जल्दी फल देने वाली व छोटा वृक्ष वाली शंकु किस्मों का प्रचलन कुछ सालों में ज्यादा तेजी से बढ़ा है। इसकी अधिकांश खेती हिमाचल प्रदेश में की जाती है। इन किस्मों में रेड चीफ, आर्गन स्पर, समर रेड, सिल्वर स्पर, स्टार स्पर रेड आदि मुख्य है।

  • परागण किस्में :

सेब की खेती में परागण का बहुत अधिक महत्व है। सेब पर परागण द्वारा फल बनते हैं, इसलिए मुख्य किस्मों के साथ परागण किस्में लगाई जानी चाहिए। यहां आपको बता दें कि शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए टाइडमैन अल वारसेस्टर, मध्य समय में तैयार होने वाली डेलिशियस वर्ग की किस्मों के लिए गोल्डन डेलिशियस, गोल्डन स्पर, रेड गोल्ड आदि परागकारी किस्मों का प्रयोग करना सबसे उचित रहता है।

  • पुष्प वाली किस्में :

पुष्प वाली किस्मों से भी सेब के खेत में परागण क्रिया को प्रभावी बनाया जा सकता है। लंबे समय तक पुष्पन व अधिक मात्रा में पुष्प देने वाले सेब की जंगली किस्मों में मन्चूरियन, स्नो ड्रिफ्ट गोल्डन हॉर्नेट आदि किस्में शामिल है जो मधुमक्खियों को आकर्षित करने में अधिक सक्षम है। इनका प्रयोग करना अधिक फायदेमंद रहता है। प्रति हेक्टेयर बगीच में छह से सात मधुमक्खियों के डिब्बे अच्छे परागण के लिए उचित माने गए हैं।

सेब के पौधों की कटाई-छटाई

बेसिक बातें : सेब के पौधों के संपूर्ण विकास के लिए समय-समय पर कटाई-छटाई भी बहुत जरूरी है। कटाई व छटाई करते समय कुछ बेसिक बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जैसे तने के पास से निकलने वाले कल्ले तथा वाटर शकर को काटकर निकाल देना चाहिए। कटे हुए भागों को फफूंदीनाशक रोगों से बचाने व कटे हुए भाग को शीघ्र भरने के लिए चौबटिया पोस्ट का लेप लगाना चाहिए।

पेड़ों को आकार देने के लिए अग्रपरोह प्रणाली : सेब के पौधों को आकार देने के लिए अग्रपरोह प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इस विधि में प्रमुख तने को हर वर्ष रूपांतरित करके 3 से 4 मीटर तक बढऩे दिया जाता है। इसके बाद सह शाखा को काट दिया जाता है। इस विधि को अपनाने से सेब के पेड़ में सभी जगह सूर्य का प्रकाश पहुंच जाता है और ओलावृष्टि व बर्फ से भी बचाव होता है।

सेब का मौसम : सर्दी सही समय

सेब के पेड़ की कटाई-छंटाई का सही समय सर्दी का मौसम होता है। सर्दी के मौसम में जब पत्तियां पेड़ से गिर जाती हैं और पेड़ सुशुप्तावस्था में रहते हैं, उस समय सेब के पेड़ों की कटाई-छंटाई करनी चाहिए। यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि नई कोपलें और फूल आने के एक माह पहले ही कटाई-छंटाई का काम पूरा कर लेना चाहिए। ऐसा करने से पौधा एक सुदृढ़ आकार धारण कर लेता है और पौधे की फलने वाली शाखाओं को उचित स्थान मिलता है। इससे विभिन्न कृषि कलापों और फल आदि तोडऩे में कोई बाधा नहीं आती है। सेब के पेड़ की प्राथमिक शाखाओं पर स्वस्थ शाखाओं को प्रत्येक वर्ष चयन करना चाहिए और बेकार शाखाओं को काट देना चाहिए।

सेब की फसल में रोग और बचाव के उपाय

सेब की फसल में रोग और बचाव के उपाय

सेब की खेती में कई बार मौसम व अन्य कारणों के चलते रोग व कीट लग जाते हैं। यहां कुछ प्रमुख रोग व कीट के लक्षण और इनसे बचाव की जानकारी दी जा रही है।

  • क्लियरविंग मोठ रोग :

जब सेब की फसल पूरी तरह से विकसित हो जाती है तब क्लियरविंग मोठ रोग लगता है। इसमें लार्वा पौधों की छाल में छेद करता है जिससे फसल खराब हो जाती है। इस रोग के समूल नाश के लिए पौधों पर दिन में तीन बार क्लोरपीरिफॉस का छिडक़ाव करना चाहिए। यह छिडक़ाव करीब 20 दिन तक करना चाहिए।

  • सफेद रुईया कीट रोग :

इस रोग में कीट सेब के पेड़ की पत्तियों का सारा रस चूसकर उसे खराब कर देता है। रोग से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड या मिथाइल डेमेटान का छिडक़ाव करने की सलाह दी जाती है।

  • पपड़ी रोग :

इस रोग में सेब का रंग-रूप खराब हो जाता है। यह रोग सेब की खेती में सबसे हानिकारक माना जाता है। इस रोग का प्रकोप होने पर सेब का फल फटा-फटा सा हो जाता है। उसकी रंगत फीकी हो जाती है। इसके अलावा यह रोग पौधे की पत्तियों को भी खराब कर देता है। समय से पहले ही पत्तियां टूट जाती हैं। पपड़ी रोग से बचाव के लिए बाविस्टिन या मैंकोजेब का छिडक़ाव करना चाहिए।

  • अन्य रोग :

उपरोक्त प्रमुख रोगों के अलावा सेब की खेती में कई अन्य तरह के रोग भी देखने को मिलते हैं। इनमें पाउडरी मिल्ड्यू, कोडलिंग मोठ, रूट बोरर, सेब का रूइया, सेब का शल्क, जड़ छेदक, तना बेधक, ब्लासम थ्रिप्स, सेब का स्कैब, तने की काली, चूर्णिल आसिता, जड़ की सडऩ जैसे रोग फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।

सेब की तुड़ाई और छंटाई

सेब का पेड़ 4 साल बाद फल देना शुरू करता है और छह वर्ष बाद पूर्ण रूप से फल देता है। सेब के पेड़ में फूल आने के 130 से 140 दिन बाद फल पककर तैयार हो जाते हैं और इनकी तुड़ाई की जा सकती है। फलों की कटाई सेब की किस्म और मौसम पर निर्भर करती है। सामान्यत: पर सितंबर और अक्टूबर में सेब की कटाई की जाती है। जब सेब पूरी तरह से लाल और आकार भी ठीक हो जाए तो तुड़ाई कर लेनी चाहिए। पेड़ से सभी सेबों को तोडऩे के बाद उन्हें रंग व आकार के आधार पर अलग-अलग श्रेणी में बांटना चाहिए और मार्केट में बेचना चाहिए।

सेब की फसल से कमाई

एक विकसित सेब के पेड़ से औसतन 100 से 180 किलोग्राम तक फल प्राप्त होते हैं। एक एकड़ भूमि पर करीब 400 सेब के पौधे लगाए जा सकते हैं। एक हेक्टेयर खेत में सिंचाई से लेकर फलों की तुड़ाई तक करीब 1.50 लाख से 2 लाख रुपए तक का खर्चा आ जाता है। यदि सेब का भाव 140 रुपए प्रति किलो माना जाए तो किसान एक हेक्टेयर सेब की खेती से सालाना 4 से 5 लाख रुपए कमा सकता है।

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