मशरूम की खेती – जानें, मशरूम की खेती और उत्पादन से जुड़ी सभी खास बातें
वैश्विक महामारी कोरोना के इस संक्रमण काल में लोगों का स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान है। इम्यूनिटी बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का उपयोग हर परिवार कर रहा है। मांसाहार का सेवन करने वाले व्यक्तियों को प्रोटीन मांस-मछली व अंडे से भरपूर मात्रा में मिलता है। जबकि शाकाहारी लोग दूध, पनीर, कटहल, मशरूम, फल-फू्रट, सोयाबीन, दाल, ड्राई फूट आदिन निर्भर है। मशरूम प्रोटीन का एक अच्छा विकल्प है। कोरोना काल में भारतीय बाजारों में मशरूम की मांग तेजी से बढ़ी है। मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं होने के कारण इसके दाम तेज बने हुए हैं और उत्पादक किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में आपको मशरूम उत्पादन से जुड़ी सभी प्रमुख जानकारी दी जाएगी। खेती से संबंधित जानकारी वर्धक पोस्ट के लिए हमेशा ट्रैक्टरगुरु के साथ जुड़े रहें।
मशरूम की प्रसिद्ध किस्मों का उत्पादन
देश में प्रमुख रूप से मशरूम की तीन किस्मों का उत्पादन होता है। ये तीन किस्में ढिग़री (ऑयस्टर), बटन और दूधिया (मिल्की) मशरूम की है। किसान भाई अलग-अलग समय पर तीनों मशरूमों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। ढिग़री मशरूम का उत्पादन सितंबर से 15 नवंबर तक होता है। बटन मशरूम का उत्पादन फरवरी से मार्च माह तक होता है। दूधिया मशरूम का उत्पादन जून-जुलाई माह तक चलता है। किसान सालभर मशरूम की किस्मों की अलग-अलग खेती कर लाभ कमा सकते हैं। इन तीनों प्रकार के मशरूम को किसी भी हवादार कमरे या शेड में आसानी से लगाया जा सकता है। कई किसान पारंपरिक खेती की तुलना में मशरूम की खेती से चार गुना तक लाभ कमा रहे हैं।
ढिग़री मशरूम की खेती
मशरूम की ढिग़री (ऑयस्टर) किस्म लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय है। इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में ज्यादा औषधीय गुण अधिक होते हैं और इसकी खेती आसान और सस्ती है। ढिग़री मशरूम के लिए 20 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान और 80-85 फीसदी आद्र्रता बहुत उपयुक्त होती है। ढिग़री की 12 से अधिक प्रजातियां भारत में उगाई जाती है। मशरूम के उत्पादन के लिए भूसा, पॉलीबैग, कार्बेडाजिम, फॉर्मेलिन और स्पॉन (बीज) की जरुरत होती है। बुवाई से सात दिन पहले ही मशरूम के स्पॉन (बीज) लेने चाहिए। ज्यादा पुराने बीज खराब होने लगते हैं। मशरूम की खेती में 10 किलो भूसे के लिए एक किलो स्पॉन की जरुरत होती है। इसके अलावा फॉर्मेलिन, पॉलीबैग, कार्बेडाजिम की जरुरत होती है।
ढिग़री मशरूम का बाजार
ढिग़री या ऑयस्टर मशरूम की देश के प्रमुख महानगरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई एवं चेन्नई आदि में अच्छी-खासी मांग है। तमिलनाडु और उड़ीसा में तो यह अधिकांश गांवों में बिकता है। कर्नाटक में भी इसकी खपत काफी है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल और गुजरात जैसे राज्यों में भी ऑयस्टर मशरूम की खेती लोकप्रिय हो रही है। इसके उत्पादन में बहुत तेज गति से लगातार वृद्धि हो रही है। ढिग़री या ऑयस्टर मशरूम को किसान सुखाकर भी बेच सकते हैं। इसका स्वाद तीनों मशरूम में सबसे बेहतर होता है।
बटन मशरूम की खेती
बटन मशरूम में मिनरल्स और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी खेती के लिए ज्यादा जगह की भी जरूरत नहीं होती है। बटन मशरूम की खेती निम्न तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक की जाती है। भारत में बटन मशरूम की खेती के लिए अक्टूबर से मार्च माह का मौसम सबसे सही समय है। इन छह महीनों दो बार फसल उगाई जाती है। बटन मशरूम फसल के आरंभ में 22 से 26 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इस ताप पर कवक जाल बहुत तेजी से फैलता है। बाद में इसके लिए 14 से 18 डिग्री तापमान उचित रहता है।
बीज एक माह से अधिक पुराना भी नही होना चाहिए
बटन मशरूम की खेती के लिए विशेष रूप से तैयार कम्पोस्ट खाद की आवश्यकता होती है। बटन मशरूम की बीजाई या स्पानिंगबटन मशरूम मशरूम के बीज को स्पान कहते हैं। बीज की गुणवत्ता का उत्पादन पर बहुत असर होता है, इसलिए खुम्बी का बीज या स्पान अच्छी भरोसेमंद दुकान से ही लेना चाहिए। बीज एक माह से अधिक पुराना भी नही होना चाहिए। सरकार की ओर से बटन मशरूम की कृषि को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। बटन मशरूम ग्रीन हाउस तकनीक से अब सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। बीज की मात्रा कम्पोस्ट खाद के वजन के 2-2.5 प्रतिशत के बराबर लेनी चाहिए।
दूधिया (मिल्की) मशरूम की खेती
देश के उत्तरी भाग में दूधिया मशरूम की कृषि की जाती है। देश के पहाड़ी इलाकों को छोडक़र सभी इलाकों में दूधिया मशरूम की पैदावार ली जा सकती है, जहां कुछ महीनों के लिए तापमान 25 से 40 डिग्री के बीच रहता है। दूधिया मशरूम का वैज्ञानिक नाम केलोसाईबी इंडिका है। दूधिया मशरूम की खेती के लिये अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। कवक जाल फैलाव के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस तथा 80-90 प्रतिशत नमी की आवश्यकता होती है। केसिंग परत बिछाने से लेकर फसल लेने तक तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए। अधिक तापमान (30-40 डिग्री सेल्सियस) होने पर भी यह मशरूम पैदावार देती रहती है।
दूधिया मशरूम उत्पादन के लिए जरूरी सामग्री
भारत में दूधिया मशरूम को भी विभिन्न कृषि फसलों से प्राप्त अवशेषों पर आसानी से उगाया जा सकता है। जैसे भूसा, पुआल, ज्वार, बाजरा व मक्का की कड़वी, गन्ने की खोई आदि। माध्यम नया व सूखा होना चाहिए और बरसात में भीगा न हो। इस प्रकार उपलब्धता के अनुसार कोई एक माध्यम चुन लें। इस मशरूम की खेती के लिये भूसा या पुआल का इस्तेमाल अधिक किया जा रहा है। दूधिया मशरूम के उत्पादन के लिए एक अंधेरे कमरा, स्पॉन यानी बीज, भूसा/कुटी (पुआल), हाइड्रोमीटर, स्प्रेइंग मशीन, वजन नापने वाली मशीन, कुट्टी काटने वाली मशीन, प्लास्टिक ड्रम एवं शीट, वेबिस्टीन एवं फॉर्मलीन, पीपी बैग और रबड़ बैंड इत्यादि की जरूरत पड़ती है।
दूधिया मशरूम की खासियत
दुधिया मशरूम एक स्वादिष्ट प्रोटीनयुक्त तथा कम कलौरी प्रदान करने वाला खाद्य पदार्थ है। इसके प्रोटीन में आवश्यक अमीनो एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ताजा मशरूम में पाया जाने वाला प्रोटीन, दूध के प्रोटीन के बराबर होता है ओर सुपाच्य होता है। इसके अलावा यह विटामिन व खनिज लवण का अच्छा स्त्रोत होता है।
मशरूम का बीज कहां से खरीदें
मशरूम के बीज को स्पान कहतें हैं। बीज की गुणवत्ता का उत्पादन पर बहुत असर होता है अत: खुम्बी का बीज या स्पान अच्छी भरोसेमंद दुकान से ही लेना चाहिए। बीज एक माह से अधिक पुराना भी नही होना चाहिए। बीज की मात्रा कम्पोस्ट खाद के वजन के 2-2.5 प्रतिशत के बराबर लें। अब बात करें इसके बीजों की कीमत की जो इसके बीज की कीमत लगभग 75 रुपए प्रति किलोग्राम होती है, जो कि ब्रांड और किस्म के अनुसार बदलती रहती है।
मशरूम की खेती से व्यापार कैसे शुरू करें
हमारे देश में मशरूम का व्यापार अभी दो तरीके से होने लगा है। आप चाहें तो कोई कंपनी बना कर, इसका व्यापार शुरू कर सकते है। दूसरा तरीका यह है कि अगर आप किसान है, तो आप इसकी खेती कर सकते है। अब बात करें इसको बेचने की तो आप इसे होटल, दवाएं बनाने वाली कंपनियां को बेच सकते हैं। मशरूम का उपयोग अधिकतर चाइनीज खाने में किया जाता है। इसके अन्य लाभकारी गुणों के कारण इसको मेडिकल के क्षेत्र में भी उपयोग किया जा रहा है।
मशरूम की खेती से लाभ/कमाई और खर्चा
अगर आप 100 वर्गमीटर में इसकी खेती करते हैं तो आपको हर साल करीब एक लाख रुपए से लेकर 5 लाख रुपए तक का लाभ मिल सकता है। हालांकि ये आपकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने वाली तकनीकी पर निर्भर करेगा। अब बात करें इस पर आने वाली लागत की तो यह आपकी क्षमता एवं व्यापार के स्तर के अनुसार बदलती रहती है। इसकी खेती के लिए आपको इसकी देखभाल एवं उगाने के स्थान को बनाने में ही पैसे लगाने पड़ेंगे इसके अलावा कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करने के लिए भी खर्च आएगा। अगर आप छोटे स्तर पर इसका व्यापार शुरू करते है, तो 10000 रुपए से 50000 रुपए तक खर्चा आएगा। वहीं बड़े स्तर पर इसका व्यापार करना चाहते हैं तेा आपको करीब एक लाख रुपए से 10 लाख रुपए का निवेश करना होगा।
राजस्थान में मशरूम की खेती
बीकानेर के स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में मशरूम केंद्र में इसके बीज तैयार किए जा रहे हैं। करीब एक महीने में बीज तैयार होने के बाद यह किसानों को बीज उपलब्ध होंगे। बता दें कि सेंटर में रस्सी के साहरे प्लास्टिक बेग में गेहंू का भूसा सहित अन्य चीजें डालकर इन बीजोंं को तैयार किया जा रहा है। लगभग 20 से 22 दिन में ये बीज पककर तैयार हो जाएंगे फिर किसानों को उपलब्ध करवा दिए जाएंगे। कृषि विश्वविद्यालय में मशरूम केंंद्र के इंचार्ज डॉक्टर दाताराम के अनुसार ढींगरी मशरूम की खेती को लेकर विश्वविद्यालय ने पहली बार ये काम शुरू किया है। प्रथम चरण के तहत ढींगरी मशरूम की फ्लोरिडा, आयस्टर, पिंक आयस्टर और सजोरकाजू आयस्टर किस्मों के 160 बैग लगाए गए हैं।
मशरूम की खेती के लिए कितनी मिलती है सरकार से सब्सिडी
मशरूम उत्पाद पर अलग-अलग राज्यों में वहां की सरकार के निमानुसार दी जाती है। बात करें बिहार की तो यहां मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने जो तीन योजनाएं चला रखी हैं, इस पर लागत का 50 फीसदी अनुदान किसानों को दिया जाएगा। मशरूम उत्पादन इकाई की लागत 20 लाख है। इस पर 10 लाख अनुदान है। इसी तरह मशरूम स्पॉन इकाई की लागत 15 लाख है इस पर 7.5 लाख रुपये का अनुदान है। मशरूम कंपोस्ट उत्पादन इकाई की लागत 20 लाख है इस पर 10 लाख अनुदान दिया जाएगा।
किसान भाइयों मशरूम की खेती अब फायदे का सौदा बन गई है। कम जगह, कम लागत और कम परिश्रम में किसान ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में आपको मशरूम की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया गया है। अगर आपको खेती संबंधी अन्य जानकारी और ट्रैक्टर, मिनी ट्रैक्टर, नए ट्रैक्टर, एसी केबिन ट्रैक्टर और ट्रैक्टर हार्वेस्टर के बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो हमेशा ट्रैक्टरगुरु के साथ बने रहें।
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