नींबू की खेती : जैविक तरीका अपनाएं, हर साल लाखों रुपए कमाएं

नींबू की खेती : जैविक तरीका अपनाएं, हर साल लाखों रुपए कमाएं

औषधीय गुणों से भरपूर नींबू का उपयोग देश के हर घर मेें होता है। नींबू में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है। इसका स्वाद अचार, नींबू पानी और शिकंजी के रूप में बहुत खास है। इसे सलाद और खाद्य पदार्थों में डालकर भी खाया जाता है। वहीं नींबू की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। नींबू की खेती से किसान ज्यादा कमाई कर सकते हैं। नींबू की अलग अलग प्रजातियां भारत में उगाई जाती है। अगर जैविक तरीके से नींबू की खेती की जाए जो बड़ा मुनाफा कमाया जा सकता है। नींबू की खेती करना कोई ज्यादा मुश्किल कार्य नहीं है। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में आपको नींबू की जैविक तरीके से खेती के बारें बताया गया है।

नींबू की खेती भारत में

नींबू की खेती संपूर्ण भारत में की जाती है और हर राज्य में अलग-अलग किस्म बोई जाती है। प्रमुख नींबू उत्पादक राज्य तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, असम, आंध्र प्रदेश, राजस्थान आदि हैं।

नींबू की खेती के लिए मिट्टी, जलवायु और मौसम

नींबू का पौधा झाड़ीनुमा होता है जोकि बड़ी ही आसानी से उगाया जा सकता है। नींबू लगभग सभी तरह की मिट्टी में उग जाते हैं लेकिन अगर हल्की दोमट मिट्टी के साथ अच्छी जल निकासी की व्यवस्था हो तो ज्यादा पैदावार मिलती है। जो मिट्टी हल्की क्षारीय और तेजाबी होती है उसमें भी नींबू उग जाते हैं। पीएच श्रेणी 5.5 से 7.5 के बीच मिट्टी को नींबू के फसल के लिए अच्छा माना जाता है। हालांकि, नींबू की पैदावार 4 से 9 की पीएच श्रेणी में भी अच्छी हो सकती हैं।

नींबू के लिए सूखी जगहों को सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है जहां तेज और पाला रहित जलवायु रहती है। नींबू की खेती के लिए पहाड़ी क्षेत्र सबसे बेहतर है जहां 750 मिमी से ज्यादा वार्षिक बारिश नहीं होती। नीबू के पौधे लगाने का सही समय बरसात में जुलाई से अगस्त महीने में होता है। लेकिन अच्छी सिंचाई प्रणाली के साथ रोपण अन्य महीनों में भी किया जा सकता है। जब भी इसकी पौध लें इस बात का ध्यान रखें वो पौध बीज से बोई हुई हो जिससे पौधे का जीवनकाल लंबा होता है।

नींबू की खेती के लिए खेत या बगीचे की तैयारी

नींबू की खेती के लिए भूमि को व्यापक रूप से जोता जाना आवश्यक होता है। गहन जुताई के बाद खेतों को समतल किया जाना चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में ढलानों के साथ की खुली जगहों में नींबू का रोपण किया जाता है। ऐसी भूमि में उच्च घनत्व रोपण संभव है क्योंकि समतल जगह की तुलना में पहाड़ी ढलान पर ज्यादा कृषि उपयोग हेतु जगह उपलब्ध रहती है। रोपाई के लिए 60 सेमी x 60 सेमी x 60 सेमी के आकार के गड्ढे खोदे जा सकते हैं। 10 किलोग्राम एफवायएम और 500 ग्राम सुपरफॉस्फेट को प्रति गड्ढे पर लगाया जा सकता है।

भारत में नींबू की प्रमुख किस्में

भारत के अलग-अलग राज्यों में उगाई जाने वाली नींबू की प्रमुख किस्में निम्नलिखित है:-

मैंडरिन ऑरेंज : कुर्र्ग  (कुर्ग और विलीन क्षेत्र), नागपुर (विदर्भ क्षेत्र), दार्जिलिंग (दार्जिलिंग क्षेत्र), खासी (मेघालय क्षेत्र) सुमिता (असम), विदेशी किस्म : किन्नो (नागपुर, अकोला क्षेत्रों, पंजाब और आसपास के राज्यों)।

मिठाई ऑरेंज : रक्त लाल (हरियाणा, पंजाब और राजस्थान), मोसंबी (महाराष्ट्र), सतगुडी (आंध्र प्रदेश), विदेशी किस्मों- जाफ, हैमलिन और अनानास (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान), वेलेंसिया।

नींबू : प्रामलिनी, विक्रम, चक्रधर, पीकेएम १, चयन ४९, सीडलेस लाइम, ताहिती स्वीट लाइम : मिथाचिक्रा, मिथोत्र लिंबा, यूरेका, लिस्बन, विलाफ्रांका, लखनऊ बीडलेस, असम लीमन, नेपाली राउंड, लेमन १ मैंडरिन संतरे, नागपुर सबसे महत्वपूर्ण किस्म है। मोसंबी मध्य-ऋतु के शुरुआत में आता है, लेकिन कम रसदार किस्म की सतगुड़ी बाजार में जल्दी आती है। प्रमिलिनी, विक्रम और पीकेएम १ आईसीएआर द्वारा अत्यधिक क्लस्टर वाले खट्टे नींबू हैं।

जैविक तरीके से नींबू की खेती के फायदे

एक बार नींबू का बगीचा लगाने पर 30 साल तक रहता है। नीबू के पौधे लगाने के तीन या साढ़े तीन साल बाद फल निकलने शुरू हो जाते हैं। लेकिन एक नीबू 100 किलो फल पांच साल बाद देना शुरू करता है। नींबू की खेती में जैविक तरीका अपनाने से लागत कम आती है। लागत कम होने से किसान को ज्यादा बचत होती है। रसायनिक खादों के प्रयोग से जहां लागत 33 प्रतिशत तक आती है वहीं जैविक खेती से 10 प्रतिशत तक आती है। जैविक खाद में अगर भेड़-बकरी की मींगनी, बायो गैस की स्लरी, गोबर की खाद का ही प्रयोग करें तो सिर्फ मजदूर खर्च ही आता है, बाकी की लागत बच जाती है। जैविक खाद के अलावा एक पौधे की देखरेख में एक साल में 150 रुपए का खर्चा आता है। वैसे तो नीबू की पैदावार सालभर होती रहती है। लेकिन सबसे ज्यादा नीबू जुलाई से अक्टूबर में निकलता है।

जैविक तरीके से नींबू की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें

  • एक एकड़ में 140-150 पौधे लगा सकते हैं। पौधों के बीच की दूसरी 18 बाई 18 फीट होनी चाहिए।
  • अगर पौध लगाने वाला गड्ढा डेढ़ बाई डेढ़ साइज में गर्मियों के मौसम में खोद कर रख देते हैं तो अच्छा रहता है।
  • पौध लगाने के समय भी गड्ढा खोद सकते हैं। 
  • पौधा लगाते समय गोबर की कम्पोस्ट खाद का उपयोग करनी चाहिए। 
  • एक एकड़ भूमि में पौधा लगाने के बाद जो पानी देते हैं उसके लिए 200 लीटर पानी में दो किलो ट्राईकोडरमा दो किलो स्यूडोमोनास का उपयोग करें। 
  • साल में दो बार दो किलो ट्राईकोडरमा दो किलो स्यूडोमोनास का पानी के साथ छिडक़ाव करें। 
  • वर्ष में एक बार सितंबर के अंतिम दिनों में या अक्टूबर माह की शुरुआत में में गड्ढा की खुदाई करके कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिए।
  • यह खाद भेड़-बकरी की मींगनी, बायो गैस की स्लरी या गोबर की कम्पोस्ट कुछ भी हो सकती है। 
  • हर दो महीने में चूना, नीला थोथा का छिडक़ाव करना चािहए जिससे नीबू में लगने वाले कैंकर रोग से बचाव हो सके। 
  • जमीन से पौधे की एक फुट उंचाई तक नीला थोथा, अलसी का तेल, चूना मिलाकर पेंट कर दें जिससे फंगस और अन्य बीमारियां नहीं लगेंगी। 
  • ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए बाजार पर निर्भरता कम करनी होगी। 
  • जैविक खादें और कीटनाशक दवाइयां घर पर बनानी होंगी।
  • पुराने बीजों को बचा कर रखना होगा। तभी एक आम किसान की लागत कम होगी और बचत ज्यादा होगी।

नींबू के पौधों की सिंचाई

नींबू की सर्दियों और गर्मियों के दौरान पहले साल में की गई सिंचाई नींबू के पौधों के लिए जीवन रक्षक साबित होती है और पौधों को बचाने में आवश्यक भूमिका अदा करती है। सिंचाई से पौधों में वृद्धि के साथ ही फलों के आकार पर भी सकारात्मक असर होता है। सिंचाई कम होने की सूरत में नींबू के फसल पर नकारात्मक असर पड़ता है और कई बीमारियां भी पौधों को लग सकती है।

नींबू के पौधों की कटाई और छंटाई

नींबू के पौधों के मजबूत तने के विकास के लिए प्रारंभिक चरण में विकसित हुई 40-50 सेमी में सभी नयी टहनियों को हटा दिया जाना चाहिए। पौधे का केंद्र खुला होना चाहिए। फल लगे पेड़ों को कम या नहीं के बराबर छंटनी की आवश्यकता होती है सभी रोगग्रस्त और सूखी शाखाओं को समय-समय पर नींबू के पौधे से हटा दिया जाना चाहिए।

नींबू की कटाई

एक साल में 2 या 3 फसल गर्मी, बरसात के मौसम और शरद ऋतु में हो सकती है। फसल को तोडऩे का निर्णय फल के विकसित रंग के आधार पर लिया जाता है।

किसान भाइयों, ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में आपको जैविक खेती से नींबू की खेती के बारे में जानकारी दी गई। हमें विश्वास है कि आपको यह जानकारी अवश्य पसंद आएगी। अगर आपको खेती संबंधी अन्य जानकारी और ट्रैक्टर, मिनी ट्रैक्टर, नए ट्रैक्टर, एसी केबिन ट्रैक्टर और ट्रैक्टर हार्वेस्टर के बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो हमेशा ट्रैक्टरगुरु के साथ बने रहें।

संबंधित पोस्ट:

भारत की 5 प्रमुख फसलें और जरूरी कृषि उपकरण