मेंथा ऑयल की रेट ऐसे मिलेगी ज्यादा, बस अपनाएं ये उपाय
मेथा की फसल बरसात से प्रभावित, किसानों को इन बातों का रखना होगा ध्यान
मेंथा यानि पिपरमिंट की खेती करने वाले किसान पिछले दिनों हुई बारिश के बाद संकट में आ गए हैं। उत्तरप्रदेश में मई माह और जून के शुरुआती दिनों में बारिश के चलते मेंथा की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान पहुंचा है। जलभराव के चलते किसानों की फसलें खेत में ही बर्बाद हो गई हैं और बची फसलों पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं। बारिश से मेंथा के उत्पादन में 30 प्रतिशत की कमी का अनुमान जताया जा रहा है। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में आपको बारिश से मेंथा की फसल को हुए नुकसान के साथ-साथ फसल सुरक्षा के लिए सावधानी भी बताई जा रही है। मेंथा ऑयल की सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पढ़े।
चक्रवाती तूफान ताउते और बारिश से नुकसान
उत्तर प्रदेश में मेंथा की बुआई जनवरी से मार्च के बीच होती है और फसल जून में काटी जाती है। मेंथा आयल का व्यापार जून-जुलाई माह में होता है। 90 से 100 दिन की मेंथा (पिपरमिंट) की फसल को किसानों के लिए नगदी फसल कहा जाता है। इस वर्ष मई माह में चक्रवाती तूफान ताउते और यास के चलते बारिश हुई। इसके बाद जून में कटाई के दौरान लगातार बारिश का दौर जारी है। बारिश से कई इलाकों में 70 प्रतिशत तक नुकसान का अनुमान जताया जा रहा है। किसानों के अनुसार मेंथा की एक एकड़ खेती में औसतन 18000-25000 रुपए तक की लागत आती है। जिसमें औसतन 50 किलो तक मेंथा ऑयल निकलता है। फसल अच्छी होने और मौसम के साथ देने पर प्रति एकड़ तेल 60 किलो से ज्यादा भी निकल आता है। लेकिन जिन किसानों की मेंथा की फसल पानी में डूब गई है या बारिश से फसल बर्बाद हो गई है उनका प्रति एकड़ 10 से 15 किलो तेल निकल रहा है। इस वक्त मेंथा का औसत रेट 900-950 रुपए किलो के आसपास है।
किसान इस तकनीक से बचाएं अपनी फसल
- मेंथा की फसल जून माह में काटी जाती है। पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि मई व जून माह में बारिश हो जाती है जिससे किसानों को नुकसान होता है। मेंथा की नई वैरायटी को विकसित करने वाली सरकारी संस्था केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान (सीमैप) ने अर्ली मिंट तकनीक विकसित की है। मेंथा की इस विकसित किस्म ने बारिश का थोड़ा ज्यादा समय तक मुकाबला किया है।
- विशेषज्ञों के अनुसार किसानों को चाहिए वो समतल खेत में रोपाई न करके मेड़ (आलू की तरह) रोपाई करें। इस तकनीक से पहले सिंचाई की कम जरुरत पड़ती है, दूसरा फसल करीब 20 दिन पहले तैयार होती है। और तीसरा अगर ज्यादा बारिश हो भी जाए तो पानी नालियों से निकल जाता है, जिससें फसल को नुकसान अपेक्षा कम या नहीं होता है।
- बारिश के बाद मौसम खुलने पर तुरंत फसल की कटाई शुरू करदेनी चाहिए।
- मेंथा को एक जगह पर ढेर लगाकर ना रखें उसे छाया में फैला दें जिससे तेल के उत्पादन पर असर नहीं पड़ेगा।
उत्तरप्रदेश मेंथा का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य
मेंथा ऑयल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल दवाओं में होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक मेंथा का निर्यातक है। पूरे भारत लगभग 3 लाख हेक्टेयर में मेंथा की खेती होती है और करीब सालाना 30 हजार मीट्रिक टन मेंथा ऑयल का उत्पादन होता है। देश में मेंथा की 80 फीसदी फसल उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी, चंदौली, सीतापुर, बनारस, मुरादाबाद, बदायूं, रामपुर, चंदौली, लखीमपुर, बरेली, शाहजहांपुर, बहराइच, अंबेडकर नगर, पीलीभीत, रायबरेली में इसकी खेती होती है। बाराबंकी को मेंथा का गढ़ कहा जाता है। बाराबंकी अकेले उत्तर प्रदेश के कुल तेल उत्पादन में 25 से 33 फीसदी तक योगदान देता है।
प्राकृतिक मेंथा की कीमत मिलती है ज्यादा
भारत का प्राकृतिक मेंथा के उत्पादन में दबदबा है। मेंथा का उपयोग औषधीयों से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों में सबसे ज्यादा किया जाता है। पिछले 20 वर्षों से भारत प्राकृतिक मेंथा का दुनियाभर में सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत करीब 80 फीसदी प्राकृतिक मेंथा का निर्यात करता है। इससे पहले ये निर्यात चीन करता था। कुछ देशों में कंपनियां सिंथेटिक मेंथा बनानी हैं लेकिन वो भारत के प्राकृतिक मेंथा के आगे टिक नहीं पाती है। इसीलिए किसानों को मेंथा के अच्छे रेट मिलते आ रहे हैं।
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