आलू की खेती की वैज्ञानिक विधि – आलू की खेती की संपूर्ण जानकारी
संपूर्ण विश्व में आलू की फसल सबसे महत्पूर्ण सब्जी है। यह विश्व की शाकाहारी आबादी की सब्जी संंबंधी जरूरतों को सबसे ज्यादा पूरा करता है। यह एक सस्ती और आर्थिक फसल है। आलू में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, स्टार्च, विटामिन सी के अलावा अमीनो अम्ल जैसे ट्रिप्टोफेन, ल्यूसीन, आइसोल्यूसीन आदि काफी मात्रा में पाये जाते हैं। भारत में आलू लगभग सभी राज्यों में उगाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, कर्नाटक, आसाम और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा आलू उगाए जाते हैं। मूल रूप से यह यह फसल दक्षिणी अमरीका की है और यह फसल सब्जी के लिए और चिपस बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। यह फसल स्टार्च और शराब बनाने के लिए भी प्रयोग की जाती है। आइये जानते है आलू की खेती की वैज्ञानिक विधि के बारे में इस ब्लॉग के माध्यम से।
आलू की खेती की वैज्ञानिक विधि
आइये जानते है आलू की खेती की वैज्ञानिक विधि, अगर आप इन सभी तरीको को उपयोग में लाएंगे तो आपको आलू की खेती से काफी मुनाफा होग। आइये जानते है आलू की खेती कैसे करे इस ब्लॉग के माधयम से।
खेती के लिए जलवायु
भारत के विभिन्न भागों में उचित जलवायु की उपलब्धता के अनुसार किसी न किसी प्रदेश में सालभर आलू की खेती की जाती है। लेकिन आलू की अच्छी व मौसमानुकूल पैदावार के लिए मध्यम शीत की आवश्यकता होती है। साथ ही छोटे दिनों की आवश्यकता आवश्यक होती है। देश के मैदानी भागों में रबी सीजन के दौरान शीतकाल में आलू की खेती प्रचलित है । अक्टूबर से मार्च तक लंबी रात्रि तथा चमकीले छोटे दिन आलू बनने और बढऩे के लिए अच्छे होते है। आलू की वृद्धि एवं विकास के लिए अनुकूल तापमान 15- 25 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए। अंकुरण के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस, संवर्धन के लिए 20 डिग्री सेल्सियस और कन्द विकास के लिए 17 से 19 डिग्री सेल्सियस तापक्रम की आवश्यकता होती है। उच्चतर तापक्रम (30 डिग्री सेल्सियस) होने पर आलू विकास की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
आलू खेती के लिए भूमि
आलू भूमि के अंदर तैयार होते हैं इसलिए मिट्टी का भूरभूरा होना आवश्यक है। आलू की बेहतर उपज के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.2 से 6.5 के बीच होना चाहिए। आलू को क्षारीय मृदा के अलावा सभी प्रकार के मृदाओं में उगाया जा सकता है। जीवांश युक्त रेतीली दोमट या सिल्टी दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है।
खेत की तैयारी
आलू की खेती करने से पहले किसानों को अपना खेत वैज्ञानिक विधि से तैयार करना चाहिए। सामान्यत पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल या हैरो से करनी चाहिए। यदि खेती में धेले हो तो पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है यदि खेत में नमी कि कमी हो तो खेत में पलेवा करके जुताई करनी चाहिए।
बीज का चुनाव
आलू के खेती में बीजों का चयन सबसे महत्वपूर्ण होता है। खेत की तैयारी के बाद सही बीज का चयन सबसे जरूरी काम होता है। किसानों को अच्छी गुणवत्ता के रोगमुक्त बीज का चयन करना। हालांकि आलू के बीज का आकार और उसकी उपज से लाभ का आपस मे गहरा सम्बंध है। बडे माप के बीजों से उपज तो अधिक होती है परन्तु बीज की कीमत अधिक होने से पर्याप्त लाभ नही होता। बहुत छोटे माप का बीज सस्ता मिलेगा लेकिन रोगाणुयुक्त आलू पैदा होने का खतरा बना रहता है। किसानों को अच्छे लाभ के लिए 3 से.मी. से 3.5 से.मी.आकार या 30-40 ग्राम भार के आलू को ही बीज के रूप में बोना चाहिए।
बुवाई का समय
भारत में आलू की सबसे ज्यादा पैदावार उत्तरभारत में होती है। सर्दी के मौसम में उत्तरभारत में पाला पडऩा आम बात है। ऐसे मौसम में आलू को बढने के लिए कम समय मिलता है। जहां अगेती बुआई से बढ़वार के लिए लंबा समय तो मिल जाता है परंतु उपज अधिक नहीं होती क्योंकि ऐसी अगेती फसल में बढ़वार व कंद का बनना प्रतिकूल तापमान में होता है। साथ ही बीजों के अपूर्ण अंकुरण व सडऩ का खतरा भी बना रहता है। उत्तर भारत मे आलू की बुवाई दिसंबर माह के अंत तक पूरी करनी चाहिए। वहीं देश के उत्तर-पश्चिमी भागों मे आलू की बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर माह का पहला पखवाडा है। पूर्वी भारत में आलू अक्टूबर के मध्य से जनवरी तक बोया जाता है।
खेत में आलू बुवाई की विधि
खेत में आलू की वैज्ञानिक तरीके से बुवाई उत्पादन को बढ़ा देती है। किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि पौधों में कम फासला नहीं रखना चाहिए। पौधों में कम फासला रखने से रोशनी, पानी और पोषक तत्वों के लिए उनमें होड़ बढ़ जाती है। इसके फलस्वपरूप छोटे माप के आलू पैदा होते हैं। अधिक फासला रखने से प्रति हैक्टेयर में जहां पौधों की संख्या कम हो जाती है, वहीं आलू का मान बढऩे से उपज घट जाती है। इसलिए किसानों को कतारों और पौधो की दूरी में उचित संतुलन बनाना चाहिए जिससे न उपज कम हो और न आलू की माप कम हो। उचित माप के बीज के लिए पंक्तियों मे 50 सेंटीमीटर का अंतराल व पौधों के बीच 20 से 25 सेमी की दूरी रखनी चाहिए।
आलू की खेती में खाद
देशी उपाय :
आलू की खेती में खाद को देते समय भी कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 50-60 टन, 20 किलो ग्राम नीम की खली व 20 किलो अरंंडी की खली को अच्छी तरह से मिलाकर प्रति एकड़ भूमि में समान मात्रा में छिडक़ाव कर जुताई कर खेत तैयार कर बुवाई करनी चाहिए। इसके बाद जब फसल 25 – 30 दिन की हो जाए तब उसमे 10 लीटर गौमूत्र में नीम का काढ़ा मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर फसल में छिडक़ाव करना चाहिए। इसके हर 15-20 दिन के अंतर से दूसरा व तीसरा छिडक़ाव करना चाहिए।
रासायनिक उपाय :
इसके लिए गोबर की सड़ी खाद 50-60 टन, नाइट्रोजन 100 से 120 किलो, फॉसफोरस 45 से 50 किलो की जरुरत प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है। गोबर तथा फॉस्फोरस खादों की मात्रा को खेत की तैयारी में रोपाई से पहले मिट्टी में अच्छी प्रकार मिलानी चाहिए। इसके बाद नाइट्रोजन की खाद को 2 या 3 भागों में बांटकर रोपाई के क्रमश: 25, 45 तथा 60 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। यहां आपको बता दें कि नाइट्रोजन की खाद दूसरी बार लगाने के बाद पौधों पर परत की मिट्टी चढाना लाभदायक रहता है।
जाने आलू की खेती में सिंचाई की विधि
आलू की खेती में पानी की कमी होने पर फसल के बढ़वार, विकास और कंद निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए आलू की बेहतर खेती के लिए उचित सिंचाई का ध्यान रखना चाहिए। जहां देश के मैदानी इलाकों में पानी की उपलब्धता होने पर ही आलू की खेती की जा सकती है, वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में आलू कि खेती वर्षा पर निर्भर करती है। आलू की खेती में पहली सिंचाई अंकुरण के उपरांत करनी चाहिए। इसके बाद 10-12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। प्रत्येक बार हलकी सिंचाई करनी चाहिए। कंद निर्माण के समय पानी की कमी किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए। इसकी खेती में करीब 500 मिलीलीटर पानी की आवश्यकता होती है। आलू की खुदाई करने के 10 दिन पहले सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे आलू के कंदों का छिलका कठोर हो जाता है जिससे खुदाई करते समय छिलका नहीं छिलता और कंदों के भंडारण क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
आलू की खुदाई
खेत में खुदाई के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि आलू का छिलका नहीं उतरे और उन्हें किसी प्रकार की क्षति नहीं होनी चाहिए। साथ ही कटे और सड़े आलू के कंदों को अलग कर देना चाहिए।
जाने कैसे करें आलू का भंडारण
आलू शीघ्र खराब हो जाते हैं। इन्हें अधिक तापमान वाले वातावरण में लंबे समय तक स्टोरेज नहीं किया जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों का तापमान कम होने के कारण वहां भंडारण की जरुरत नहीं होती है लेकिन मैदानी भागों में तापमान अधिक रहता है इसलिए आलू के भंडारण की आवश्यकता रहती है। मैदानी इलाकों में आलू का भंडारण शीत भंडार गृहों में किया जाता है। इन शीत भंडार गृहों में तापमान 1 से 2.5 डिग्री सेल्सियस और आपेक्षिक आद्रता 90-95 प्रतिशत होती है।
एक हेक्टेयर में आलू का उत्पादन
आलू की उपज बीज की किस्म, भूमि की उर्वरा शक्ति, फसल की देखभाल, सिंचाई, मौसम आदि कारकों पर निर्भर करती है। सामान्य किस्मों से 300 से 350 क्विंटल और संकर किस्मों से 350 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल जाती है। पहाड़ी इलाकों में 150 से 200 क्विंटल और ऊंचे पहाड़ों में 200 क्विंटल तक उपज मिलती है। वहीं मैदानी इलाकों में एक हेक्टेयर भूमि में अगेती व मध्य मौसमी किस्मों की 200 से 250 क्विंटल और पिछेती किस्मों की 300-400 क्विंटल तक उपज मिलती है।
जाने आलू की किस्में
आलू की अगेती किस्मों में कुफरी, चंद्रमुखी, कुफरी, कुबेर और कुफरी बहार प्रमुख है। इन सभी में कुफरी चंद्रमुखी को सबसे अधिक उपज वाला मना गया है। ये किस्में 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है और तीन फसली तथा चार फसली सघन खेती में भी अच्छी पैदावार दे देती है। आलू की मध्यकालीन फसल के लिए कुफरी बादशाह, कुफरी लालिमा, कुफरी बहार और कुफरी ज्योति अच्छी किस्में बताई गई हैं। ये किस्में 100 दिनों में तैयार होती है। पछेती किस्मों में कुफरी सिन्दूरी अधिक लाभप्रद मानी गई है। यह लाल किस्म का आलू है और इसकी पैदावार क्षमता अन्य किस्मों की अपेक्षा अधिक है।
आलू की खेती के उपकरण / आलू बोने की मशीन
कृषि उपकरणों के प्रयोग से किसी भी खेती में ज्यादा उपज प्राप्त की जा सकती है। आलू किसानों के बीच आलू की खेती के कई उपकरण प्रचलित है, लेकिन महिंद्रा एंड महिंद्रा का प्लांटिंग मास्टर पोटैटो सबसे अधिक लोकप्रिय है। प्लांटिंग मास्टर पोटैटो उपकरण के इस्तेमाल से किसानों को पारंपरिक पैदावार के मुकाबले 20 से 25 फीसदी ज्यादा पैदावार मिलती है। महिंद्रा का आलू प्लांटर आलू के बीज की एक समान दूरी और गहराई पर बुआई करता है जिसके कारण उत्पादन अधिक से अधिक मिलता है। महिंद्रा आलू प्लांटर का गहराई नियंत्रण पहिया आलू की उचित गहराई पर बुआई करता है। 20 से 60 मिमी साइज के आलू बीज को आसानी से बोया जा सकता है।
जाने आलू की बुवाई में महिंद्रा ट्रैक्टर
आलू के खेतों में बुवाई के समय पर्याप्त नमी नहीं होने पर किसान पलेवा करके गहरी जुताई करते हैं। गहराई में बुवाई के लिए ट्रैक्टर्स की हाइड्रोलिक की सटीकता बेहद जरुरी है। महिंद्रा एक्सपी प्लस ट्रैक्टर का एमलिफ्ट हाइड्रोलिक किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
जाने आलू बोने की मशीन की कीमत
भारत में आलू प्लांटर या आलू बोने की मशीन बहुत ही किफायती है। भारत में आलू बोने की मशीन की कीमत किसानों के लिए एक फायदे का सौदा है। आलू प्लांटर पर खर्च की गई राशि से किसान ज्यादा पैदावार प्राप्त करके ज्यादा मुनाफा प्राप्त कर सकता है। आलू बोने की मशीन की कीमत भारतीय किसानों के लिए उनके बजट में उपलब्ध है।
किसान भाइयों, ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट के माध्यम से आपको भारत में आलू की खेती के बारे में बताया गया है। आलू की खेती में काम आने कृषि उपकरणों की जानकारी दी गई है। आलू की खेती में महिंद्रा ट्रैक्टर, आलू बोने की मशीन, महिंद्रा पोटैटो प्लांटर आदि के बारे में बताया गया है। अगर आप ट्रैक्टर, जुताई उपकरण, बुवाई उपकरण, सिंचाई उपकरण, खरपतवार व निराई-गुड़ाई उपकरण व फसल कटाई उपकरण खरीदना चाहते हैं तो ट्रैक्टरगुरु के साथ बने रहें।
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