कोविड-19 में मजबूती से उभरी भारतीय कृषि जानें, भारतीय कृषि पर पड़े सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव

कोविड-19 में मजबूती से उभरी भारतीय कृषि जानें, भारतीय कृषि पर पड़े सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव

कोविड-19 की दूसरी लहर का प्रकोप भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में बना हुआ है। लेकिन इसके बीच भारतीय कृषि मजबूती से उभरी है। कोविड-19 लॉकडाउन के कारण जब देश के अधिकांश राज्यों में उत्पादन गतिविधियां कम ही संचालित हो रही है लेकिन किसान खेत में जुटा हुआ है और फसल की कटाई के साथ-साथ अगली फसल की तैयारी कर रहा है। किसान की मेहनत के कारण लोगों को उचित दाम पर खाद्य वस्तुएं लगातार मिल रही है।

हालांकि फल, सब्जिया, अनाज, मसाले विदेशों में नहीं जाने के कारण किसानों को नुकसान भी उठाना पड़ रहा है लेकिन किसान देश का सच्चा सिपाही बनकर कोरोना के खिलाफ जंग में मजबूती के साथ अपने खेत में जुटा हुआ है और देश की सेवा कर रहा है। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में हम आपको कोविड-19 का भारतीय कृषि पर पडऩे वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव बता रहे हैं। आइये जानते है कोविड-19 में मजबूती से उभरी भारतीय कृषि के बारे में।

गांवों से जुड़ी हुई है देश की 69 प्रतिशत आबादी

संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत की 69 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, जिसमें 700 मिलियन से अधिक लोग शामिल है, इनमें किसान, गृहिणियां, एसएमई, सरकारी कर्मचारी और युवा शामिल है। यह किसानों की ही देन है कि अधिकांश राज्यों में लॉकडाउन लागू है, उस दौरान भी लोगों के घरों तक भोजन की आवश्यक वस्तुएं पहुंच पा रही हैं। यह पिछले तीन दशकों में भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में जो सफलता हासिल की है यह उसी का परिणाम है। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि खाद्यान्न उत्पादन में हुई वृद्धि के अनुपात में किसानों के आय और जीवन स्तर में प्रभावी बदलाव नहीं दिखें है।

किसानों के दम पर देश में 6 फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन

कोरोना से जूझते देश को किसानों ने अपनी मेहनत के दम पर राहत प्रदान की है। 2020-21 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 30.544 करोड़ टन रहने का अनुमान है। जो 2019-20 के दौरान हुए कुल 29.75 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 79.4 लाख टन ज्यादा है। इसके अलावा 2020-21 के दौरान उत्पादन पिछले पांच वर्षों (2015-16 से 2019-20) के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 2.666 करोड़ टन ज्यादा है। सरकार का मानना है कि किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और भारत सरकार की नीतियों और राज्य सरकारों से मिले बेहतर सहयोग और समन्वय के चलते सकारात्मक माहौल बना है।

फसलों के रिकॉर्ड उत्पादन के आंकड़े

  • वर्ष 2020-21 के दौरान चावल का कुल उत्पादन रिकॉर्ड 12.146 करोड़ टन रहने का अनुमान है। यह विगत 5 वर्षों के 11.244 करोड़ टन औसत उत्पादन की तुलना में 90.1 लाख टन अधिक है। 
  • वर्ष 2020-21 के दौरान गेहूं का कुल उत्पादन रिकॉर्ड 10.875 करोड़ टन अनुमानित है। यह विगत पांच वर्षों के 10.042 करोड़ टन औसत गेहूं उत्पादन की तुलना में 83.2 लाख टन अधिक है। 
  • पोषक/मोटे अनाजों का उत्पादन 4.966 करोड़ टन अनुमानित है, जो वर्ष 2019-20 के दौरान हुए 4.775 करोड़ टन उत्पादन की तुलना में 19.1 लाख टन अधिक है। इसके अलावा, यह औसत उत्पादन की तुलना में भी 56.8 लाख टन अधिक है। वर्ष 2020-21 के दौरान कुल दलहन उत्पादन 2.558 करोड़ टन अनुमानित है जो विगत पांच वर्षों के 2.193 करोड़ टन औसत उत्पादन की तुलना में 36.4 लाख टन अधिक है। 2020-21 के दौरान कुल तिलहन उत्पादन रिकॉर्ड 3.657 करोड़ टन अनुमानित है जो 2019-20 के दौरान 3.322 करोड़ टन उत्पादन की तुलना में 33.5 लाख टन अधिक है। 
  • इसके अलावा, 2020-21 के दौरान तिलहनों का उत्पादन औसत तिलहन उत्पादन की तुलना में 60.2 लाख टन अधिक है। वर्ष 2020-21 के दौरान देश में गन्ने का उत्पादन 39.280 करोड़ टन अनुमानित है। वर्ष 2020-21 के दौरान गन्ने का उत्पादन औसत गन्ना उत्पादन 36.207 करोड़ टन की तुलना में 3.073 करोड़ टन अधिक है। 
  • कपास का उत्पादन 3.649 करोड़ गांठें (प्रति 170 किग्रा की गांठें) अनुमानित हैं, जो औसत कपास उत्पादन की तुलना में 45.9 लाख गांठें अधिक है। जूट एवं मेस्ता का उत्पादन 96.2 लाख गांठें (प्रति 180 किग्रा की गांठें) अनुमानित हैं।

कोरोना की दूसरी लहर के कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव

इस बार कोरोना की दूसरी लहर से ग्रामीण क्षेत्र भी अछूते नहीं रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में लोग इस बार संक्रमण की चपेट में आए हैं। इससे इन क्षेत्रों की आर्थिक तस्वीर बदलने का खतरा बढ़ गया है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था हालांकि कृषि आधारित मानी जाती है, लेकिन उससे अधिक दारोमदार गैर कृषि संसाधनों पर निर्भर है। लॉकडाउन की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने वाली उपज को सही बाजार नहीं मिल रहे हैं। शहरों में होटल, रेस्तरां, खानपान और मिठाई की दुकानें लंबे समय से बंद हैं। शहरी क्षेत्रों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी शादी-विवाह और अन्य आयोजनों पर रोक लगी हुई है। इनमें उपयोग होने वाली सब्जियों, स्थानीय फलों, दूध और अन्य उपज की मांग में जबरदस्त कमी आई है। 

ग्रामीण इलाकों में छोटे और भूमिहीन किसानों की रोजी-रोटी का आधार डेयरी व सब्जियों की खेती होती है। दूध की 60 फीसदी बिक्री होटल, मिठाई व चाय की दुकानों पर होती है। संगठित क्षेत्र की निजी, सहकारी व सरकारी कंपनियों में मात्र 40 फीसदी ही खपत होती है। कई कंपनियों ने अपने दूध का कलेक्शन भी घटा दिया है जबकि दूध उत्पादन में कोई कमी नहीं आई है। 

अप्रैल से जून तक गांवों में खेती का कार्य कम होने के कारण रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाएं किसानों की आजीविका के लिए मुफीद रहती है। लेकिन इस बार कोरोना की दूसरी लहर के चलते ग्रामीण सडक़, आवासीय, सिचाई की परियोजनाएं, ग्रामीण विद्युतीकरण और जल संसाधन की परियोजनाएं लगभग ठप हो चुकी हैं। गांवों में सिर्फ मनरेगा का कच्चा काम ही हो रहा है। बाकी परियोजनाओं के लिए जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। लेकिन इन सभी हालातो के वाबजूद कोविड-19 में मजबूती से उभरी भारतीय कृषि ने नयी आशा की किरण जगाई है।  

इन नीतियों पर ध्यान देने से सुधर सकते हैं किसानों के हालात

  • देश के किसानों तथा विभिन्न किसान संगठन समय-समय पर सरकार से कई नीतियों में संशोधन की बात कहते आए हैं। किसानों के अनुसार सरकार कृषि क्षेत्र में जारी संकट से उबारने के कुछ महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है।
  • केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना के अंतर्गत कुल 12 करोड़ किसानों को 6 हजार रुपए के नकद भुगतान की योजना शुरू कर रखी है। अब सरकार को चाहिए कि प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना को 6 हजार रुपए से बढ़ाकर 12 हजार रुपए करना चाहिए।  साथ ही 6000 की एक किस्त खरीफ सीजन की बुवाई से पहले ही किसानों के खातों में पहुंचाया जाए। इस तरीके से किसान खेतों में बुवाई के लिए खाद-बीज सही समय पर खरीद पाएंगे। 
  • लॉकडाउन की वजह से जो आपूर्ति श्रृंखला गांव और शहरों के बीच में टूटी है उसको फिर से सही करने के लिए एक विशेष राहत पैकेज का ऐलान किया जाए। 
  • तहसील स्तर पर केंद्र और राज्य सरकार साथ मिलकर किसानों को खरीफ फसल की बुवाई के लिए बीज-खाद जैसी जरूरी सुविधाओं की उपलब्धता के लिए तकनीकी सहायता लेते हुए एक टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए। किसी भी गांव या फिर किसी व्यक्तिगत किसान की ही जरूरतों को यह टास्क फोर्स एक निश्चित समय में पूरा करने का काम करेगी।
  • सरकार को हर गांव स्तर पर फसलों की खरीदारी के लिए सुचारू व्यवस्था बनाने की जरूरत है। ताकि किसानों के उत्पादों पर यातायात का खर्च बचाया जा सके। इससे किसानों की आय भी बढ़ाने में मदद मिल सकेगी। 
  • किसानों के कर्ज की भुगतान तिथि और कर्ज पर लगने वाले ब्याज को रोका जाए। 
  • पलायन कर गांव में वापस आए मजदूरों को मनरेगा के अंतर्गत पंजीकृत करते हुए रोजगार गारंटी का लाभ दिया जाए। इससे कृषि पर अतिरिक्त दबाव कम होगा।

कोविड-19 के जारी संकट को कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़े अवसर में भी बदला जा सकता है। देश में मौजूद 6,00,000 गाँवों में गाँव आधारित कृषि-उद्योग का एक बड़ा मॉडल बनाया जा सकता है। अगर हम यह करने में कामयाब रहे तो ग्रामीण इलाकों से पलायन पर अंकुश लगेगा।

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