तितली मटर की खेती - जाने तितली मटर की खेती का तरीका और लाभ

भारत में इसकी खेती करने वाले राज्य

मूल रूप से इसकी खेती कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार और उड़ीसा की जाती है।

पशु चारा के लिए उत्तम विकल्प

इसका चारा पशु पोषण के हिसाब से अन्य दलहनी कुल के पौधों की तुलना में अधिक पौष्टिक, स्वादिष्ट एवं पाचनशील होता है। पशु इसे बड़े ही चाव से खाते है।

उपयुक्त जलवायु

नम व ठंडी जलवायु खेती के लिए उपयुक्त है। बीज अंकुरण के लिये 20 से 22 डिग्री  और अच्छी वृद्धि के लिये 10 से 18 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त है।

मटर की उन्नत किस्में

पूसा प्रगतिं, जवाहर मटर 1, काशी उदय, लिंकन, आर्केल, काशी शक्ति, पंत मटर 155.,अर्ली बैजर, आजाद मटर 1., काशी नंदिनी आदि।

बीजों की मात्रा एवं बीजोपचार

20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से केप्‍टान, थीरम, कार्बेन्‍डाजिम या थायोफेनेट मिथीईल की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है।

खेती के लिए बीजो की रोपाई का समय

अक्टूबर से नवंबर का महीना बुवाई के उपयुक्त है। पंक्तियां एक फीट की दूरी रखते हुए बीजो को 5 से 7 सेमी. की दूरी पर 2.5 से 3 सेमी. गहराई में बोये।

कटाई एवं पैदावार

तितली मटर के एक हेक्टेयर के खेत से 80-120 क्विंटल हरी फलिया एवं 15-22 क्विंटल दाने की पैदावार एवं इसकी कटाई 115-125 दिन में कर ले।

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