बायोफ्लॉक तकनीक: जानें कैसे करें मछली पालन, होगा फायदा

बायोफ्लॉक तकनीक क्या है?

बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया है, जो मछलियों के अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल देता है। इस प्रोटीन का सेवन भी मछलियां ही करती हैं, जिससे संसाधनों की काफी हद तक बचत होती है।

बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालने का तरीका

इस तकनीक में बड़े-बड़े टैंकों में मछली पाली जाती हैं। इन टैंकों में पानी भरने, गंदा पानी निकालने, पानी में ऑक्सीजन देने की व्यवस्था होती है।

बायोफ्लॉक तकनीकी से लाभ

बायोफ्लॉक विटामिन और खनिजों का भी अच्छा माध्यम है, ये बैक्टीरिया मछलियों के मल और फालतू भोजन को प्रोटीन सेल में बदल देते हैं, जिससे मछली खाती है। इस तकनीक में पानी की बचत के साथ मछलियों के खाने की भी बचत होती है।

बायोफ्लॉक तकनीकी में लागत और मुनाफा

इस तकनीक से किसान महज एक लाख रुपये खर्च कर प्रति वर्ष एक से दो लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं।

इन मछलियों का कर सकते है पालन

बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से तिलिपियां, मांगूर, केवो, कमनकार जैसी कई प्रजाति की मछलियों का पालन कर उत्पादन किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लॉक सिस्टम पर होने वाले खर्च का 60 फीसदी सब्सिडी के रूप में प्राप्त कर सकते है।

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