काबुली चने की उन्नत खेती के बारे में पूरी जानकारी 

काबुली चने का उत्पादन

कुल वैश्विक पैदावार का 90 फीसदी हिस्सा दक्षिण एशिया में एवं अफगानिस्तान, दक्षिण यूरोप, उत्तरी अफ्रीका, भारत और चिली प्रमुख देश हैं। 

भारत में काबुली चने की बुवाई का समय

असिंचित क्षेत्र में अक्टूबर का दूसरा एवं तृतीय सप्ताह और सिंचित क्षेत्र में नंबर के दूसरे सप्ताह तक इसकी बुवाई का उचित समय हैं। 

उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी

शीतोषण जलवायु, 10 से 30 डिग्री तापमान एवं उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी एवं भूमि का पी.एच.मान 7 होना चाहिए।

काबुली चने की उन्नत किस्में

मेक्सीकन बोल्ड, पूसा शुभ्रा (बी.डी.जी. 128), जे.जी.के.2, जे.जी.के.3 (जेएस.सी.19) ,गौरी, (जी.एन.जी. 1499 के), आई.पी.सी.के 2004 - 29, इत्यादि।

बीजों की मात्रा एवं बीजोपाचार

छोटे दाने किस्म के 75 से 80 एवं बड़े दाने के किस्म के 85 से 90 किलो. प्रति हे. बीज को 1.5 ग्राम थाइरम व 0.5 कार्बेन्डाजिम के मिश्रण प्रति किलो. की दर।

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

अच्छी उपज के लिए 20 किलो. नत्रजन, 40 किलो. फास्फोरस, 20 किलो. पोटाश एवं 20 किलो. गंधक प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।

काबुली चने की पैदावार 

प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल उपज प्राप्त होती है, जो बाजार में 6000 से 7000 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से आसानी से बिक जाता है।

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