मसूर की खेती : बुवाई से लेकर उत्पादन एवं कीमत की जानकारी

खनिज लवण और विटामिन्स से परिपूर्ण मसूर दाल के 100 ग्राम दाने में 25 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम वसा, 60.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.2 ग्राम रेशा, 68 ग्राम कैल्शियम, 7 ग्राम 0.51 mg थाइमिन तथा 4.8 मिग्रा. नियासिन पाया जाता है। यह मानव के लिए परिपूर्ण प्रोटीन स्त्रोत है।
मसूर दाल स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से पेट के विकार समाप्त हो जाते हैं। मधुरोग और हृदय रोगियों के लिए मसूर की दाल अत्यन्त लाभप्रद मानी जाती है।
मसूर की खेती उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व बिहार में मुख्य रूप से की जाती है। इन राज्यों में मसूर की बुवाई अक्टूबर मध्य से 15 नंबर तक की जाती है। दलहनी फसलों में मसूर सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण फसल है।
छोटे दाने वाली मसूर की उन्नतशील किस्मों में पूसा वैभव, पन्त मसूर-406, पन्त मसूर-4, पन्त मसूर-639, डी.पी.एल.-32, पी.एल.-5 शामिल है।
छोटे दाने वाली किस्मों के लिए बीजदर 35-45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, जबकि बड़े दाने वाली प्रजातियों के लिए 50 से 60 किग्रा. प्रति हेक्टेयर होगी। ताल क्षेत्र के लिए 60 से 70 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होंगे।
बीज की बुवाई करने से पहले थीरम व कार्वेन्डाजिम (2:1) से 3 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। बीज की बुआई देशी हल या सीड डि्‌रल से पंक्तियों में करना चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी. व देर से बुआई की स्थिति में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी. रखें।
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