काजू की खेती : बुवाई से लेकर उत्पादन तक की जानकारी
Posted - Aug 30, 2024
काजू भारत की प्रमुख व्यावसायिक फसलों में से एक है। देश में केरल, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पं. बंगाल में इसकी व्यावसायिक खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
व्यवयायिक खेती के लिए अगर काजू की उन्नत किस्मों के उपयोग किया जाए तो अधिक पैदावार प्राप्त होती है। काजू की प्रमुख उन्नत किस्में वेगुरला-4, उल्लाल-2, उल्लाल-4, बी.पी.पी.-1, बी.पी.पी.-2, टी.-40 है।
यह उष्ण कटिबन्धीय फसल है। इसकी खेती के लिए गर्म एवं उष्ण जलवायु उपयुक्त है। पाला पड़ने वाले क्षेत्रों में इसकी खेती प्रभावित होती है। काजू की अच्छी उपज के लिए वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त माने गये है। इसे कई की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन समुद्र तटीय प्रभाव वाले लाल एवं लेटराइट मिट्टी वाली भूमि इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
काजू को कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन समुद्र तटीय प्रभाव वाले लाल एवं लेटराइट मिट्टी वाली भूमि इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
काजू की अधिक फसल पैदावार के लिए सबसे पहले खेत की 2-3 जुताई कर खेत को बराबर कर दें। पौधों को 7 से 8 मी. की दूरी पर वर्गाकार विधि में रोपें। अप्रैल-मई माह में 60x 60 x 60 सें.मी. की निश्चित दूरी पर गड्ढे तैयार करें।
काजू के पौधों को मानसून मौसम में ही लगाने से अच्छी सफलता मिलती है। इसके पौधों को साफ्ट वुड ग्राफ्टिंग विधि से तैयार किया जा सकता है। भेंट कलम के माध्यम से भी काजू के पौधे तैयार हाेते हैं। मई-जुलाई का महीना पौधा तैयार करने का उपयुक्त मौसम है।
केवल काजू के पौधे से गिरने वाले नट को इक्ट्ठा किया जाता है। इसके पूरे फल की तु्ड़ाई नहीं की जाती है। इक्ट्ठा नट को धूप में सुखाकर जूट के बोरों में भरकर ऊंचे स्थान पर भंडारण किया जाता है। काजू के एक पौधे से लगभग 8 किलोग्राम नट प्रतिवर्ष पैदावार मिलती है। एक हेक्टेयर से 10-15 क्विंटल पैदावार मिलती है।