प्रतिकूल मौसम और बढ़ते तापमान के कारण अब तक गेहूं की पछेती खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। इस समस्या का समाधान हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) के वैज्ञानिकों ने खोज लिया है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं एवं जौ अनुभाग ने गेहूं की नई पछेती किस्म WH 1309 विकसित की है, जो गर्मी के प्रति अधिक सहनशील है और देर से बुवाई की स्थिति में भी अधिक पैदावार देने में सक्षम है। यह किस्म किसानों को 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने की क्षमता रखती है। इससे पछेती बुवाई करने वाले किसानों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। आइए जानते हैं कि गेहूं की पछेती किस्म डब्ल्यू.एच. 1309 किसानों के लिए कैसे वरदान साबित हो सकती है और इसकी क्या-क्या विशेषताएं हैं।
एचएयू के कुलपति प्रो. बी. आर. काम्बोज ने बताया कि धान की कटाई में देरी, जलभराव या अन्य कारणों से हरियाणा के लगभग 15 से 20 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूं की बुवाई देरी से होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के गेहूं एवं जौ अनुभाग के वैज्ञानिकों की टीम ने गेहूं की अधिक पैदावार देने वाली नई पछेती किस्म डब्ल्यू.एच. 1309 (WH 1309 Wheat) विकसित की है। यह किस्म अन्य गेहूं किस्मों की तुलना में गर्मी के प्रति अधिक सहनशील है। इस किस्म की अनुशंसा हरियाणा राज्य बीज उपसमिति द्वारा की गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण मार्च माह में तापमान बढ़ने से आमतौर पर गेहूं की फसल पर असर पड़ता है, लेकिन इस नई किस्म की पैदावार पर तापमान वृद्धि का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कुलपति प्रो. काम्बोज ने बताया कि सिंचित परिस्थितियों के परीक्षणों में इस किस्म ने औसत उपज 55.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दी, जबकि इसकी अधिकतम उपज 64.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है। हरियाणा के विभिन्न जिलों के खेत पर किए गए प्रयोगों में इसकी औसत उपज 54.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रही, जो चेक किस्म WH 1124 (48.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) की तुलना में 12.7 प्रतिशत अधिक रही है। इस किस्म की बुआई जनवरी के पहले सप्ताह तक की जा सकती है। जनवरी माह में किसानों के खेतों पर की गई बुवाई में भी इसका प्रदर्शन अच्छा रहा, जिसमें इस किस्म की 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार रही।
गेहूं की इस किस्म के दाने मोटे और चमकीले होते हैं। इससे पछेती बुवाई करने वाले हरियाणा के किसानों को अधिक लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि यह किस्म पीला रतुआ, भूरा रतुआ और अन्य बीमारियों के प्रति रोग-रोधी है। साथ ही, यह जैविक खेती और लवणीय क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त है। इसकी बालियां लंबी होती हैं, जल्दी पकती हैं और मोटे दाने वाली उन्नत किस्म है।
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि गेहूं की नई किस्म WH 1309 की बुआई का उचित समय 1 दिसंबर से 20 दिसंबर तक है। इसके लिए 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। इस किस्म की अधिक उपज पाने के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देने की सिफारिश की जाती है। यह नई किस्म पछेती बिजाई वाले क्षेत्रों में किसानों के लिए वरदान साबित होगी।
कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ.एस.के. पाहुजा ने बताया कि गेहूं किस्म WH 1309 से 83 दिनों में बालियां निकलती है और 123 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की बालियां लंबी व भूरे रंग की होती है। इसके पौधों की ऊंचाई 98 सेंटीमीटर है, जिससे इसके गिरने का खतरा ना के बराबर है। इस किस्म का दाना मोटा होता है, जिसमें 13.2 प्रतिशत प्रोटीन हेक्टोलीटर वजन 81.9 और अवसादन मान 54 मिली है। अत: यह किस्म पौष्टिकता व चपाती बनाने के लिए भी अच्छी है।
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (सीसीएसएचएयू) के गेहूं एवं जौ अनुभाग के वैज्ञानिकों की टीम ने गेहूं की एक नई किस्म WH 1309 विकसित की है। इस टीम में डॉ. विक्रम सिंह, एम.एस. दलाल, ओ.पी.बिश्नोई, दिव्या फोगाट, राकेश कुमार, गजराज दहिया, आर.एस. बेनीवाल, योगेंद्र कुमार, हर्ष सोमवीर, वाई.पी. एस. सोलंकी, भगत सिंह, रेणु मुंजाल, प्रियंका, पवन कुमार व शिखा का इस किस्म को विकसित करने में अहम योगदान रहा।
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