बढ़ती बीमारियों और महंगाई को देखते हुए आजकल लोगों ने अपनी लाइफस्टाइल के साथ-साथ खान-पान में भी बदलाव किया है। अब खुद को स्वस्थ रखने के लिए कई तरह के तरीके अपनाते हैं। इन सभी मामलों में किसानों ने भी खुद को बदल लिया है। नई तकनीकों का उपयोग करके पोषक फसलों और खाद्यान्न का उत्पादन किया जा रहा है। पौष्टिक फसलों की बात करें तो हरी सब्जियों का नाम सबसे पहले आता है। हरी सब्जियों में आजकल माइक्रोग्रीन नामक नई फसल की वैरायटी घरों के किचन का हिस्सा बन चुका है। आज हम इस पोस्ट की मदद से आपको पूरे विस्तार से माइक्रोग्रीन के बारे में बताएं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारतीय परिवेश में अंकुरित भोजन जैसे चना, मूंग, मसूर खाना एक आम बात है, ये अंकुरित खाद्य पदार्थ मुख्य रूप से दलहनी फसलें होती हैं और इन्हें अंकुरित बीज या स्प्राउट्स भी कहा जाता है। दरअसल माइक्रोग्रीन्स स्प्राउट्स का ही विकसित रूप है। वैसे तो माइक्रोग्रीन्स किसी भी पौधे की शुरुआती पत्तियां कहलाती हैं। उदाहरण के लिए मूली, मूंग, सरसों तथा अन्य फसलों के बीजों के प्रारम्भिक पत्तों को तोड़ लिया जाता है। उन्हें माइक्रोग्रीन्स कहा जाता है। बड़ी सब्जियों की तुलना में इन छोटी पत्तियों में कहीं अधिक पोषक तत्व होते हैं।
स्प्राउट्स और माइक्रोग्रीन में अंतर की बात करें तो स्प्राउट में जहां हम अन्न को अंकुरित करते हैं, वहीं माइक्रोग्रीन्स में उसके छोटे-छोटे पौधे तैयार किए जाते हैं। जो 5 से 6 इंच तक होते हैं, उसके तना, पत्ती सभी का उपयोग करते हैं। उस समस्त पौधों को ही माइक्रोग्रीन कहते हैं। स्प्राउट्स में हम अंकुरित बीजों, जड़, तना एवं बीज-पत्र को खाने में प्रयोग में लाते हैं। लेकिन माइक्रोग्रीन्स में तने, पत्तियों और बीज-पत्र का उपयोग किया जाता है और जड़ो को नहीं खाते हैं।
इसमें विटामिन सी, विटामिन के और एंटीऑक्सीडेंट जैसे पोषक तत्व होते हैं। अच्छी खबर यह है कि आप अपनी रसोई में उपलब्ध सामग्री से जल्दी और आसानी से माइक्रोग्रीन उगा सकते हैं। ध्यान दें कि बीजपत्र पत्तियों के अंकुरण के बाद यानी पहले या दूसरे पत्ते के बाद माइक्रोग्रीन को लगाया जा सकता है।
माइक्रोग्रीन्स का मुख्य उपयोग सलाद के रूप में किया जाता है। माइक्रोग्रीन के पत्ती, तना पौधे के अंगों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। इसके साथ ही इसका सूप बनाकर पिया जा सकता है। इसके अलावा इन माइक्रोग्रीन की सब्जी भी बनाकर खाई जाती है। पके हुए सब्जियों और फलों की तुलना में माइक्रोग्रीन अधिक तेज, स्वाद और गुणों से भरपूर होता है। माइक्रोग्रीन्स एंटीऑक्सीडेंट का बेहतर स्रोत होते हैं। इन्हें कम जगह में उगाना आसान होता है और घर पर साल भर उगाने के लिए यह एक आदर्श फसल है।
माइक्रोग्रीन कम जगह में विकसित होने वाली प्रणाली है इन्हें धूप वाली खिड़की पर आसानी से उगाया जा सकता है और पहली पत्तियां विकसित होने पर काट ली जाती है। माइक्रोग्रीन्स सिर्फ दो सप्ताह में खाने के लिए तैयार हो जाती है। हालांकि माइक्रोग्रीन छोटे होते हैं, लेकिन स्वाद और पोषक तत्वों में अन्य सभी सब्जियों से सर्वोत्तम होते हैं। कुछ माइक्रोग्रीन किस्मों में उगाई गई सब्जियों की तुलना में 40 गुना अधिक पोषण होता है। ये विटामिन, मिनरल, एंटीऑक्सीडेंट व फाइटोन्यूट्रिएंट्स के बहुत अच्छे सोर्स होते हैं। इम्युनिटी वर्धक होने के साथ-साथ माइक्रोग्रीन्स में सूजन, मोटापे और आर्थराइटिस से लड़ने के औषधीय गुण होते हैं।
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ये छोटे पौधे, जिन्हें हम माइक्रोग्रीन्स कहते हैं, सब्जियों और फलों के परिपक्व पौधों की तुलना में अधिक फायदेमंद होते हैं। इसमें उगाए गए पौधों की तुलना में 5 गुना अधिक पोषक तत्व होते हैं। यह विटामिन का भंडार है। माइक्रोग्रीन खनिज, एंटीऑक्सिडेंट और फाइटोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर होते हैं। यह जोड़ों के दर्द जैसे रोगों में औषधि के रूप में काम करता है। यह शरीर में सूजन और मोटापे की समस्या को भी दूर करता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और आपके पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। इन अद्वितीय गुणों के कारण ही आज माइक्रोग्रीन्स का चलन है। धीरे-धीरे सभी ने इन माइक्रोग्रीन्स को अपने किचन में जगह देनी शुरू कर दी है। उनके फायदों में से एक यह है कि वे बिना किसी उर्वरक के बहुत शुद्ध और ताजा उपलब्ध हैं। जहां सब्जियां बाजारों में तेजी और रासायनिक खाद के बिना उपलब्ध नहीं हो पाती है।
सुपरफूड लगभग सभी पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और सामान्य या नियमित खाद्य पदार्थों से बेहतर होते हैं जिनका हम सेवन करते हैं। स्वास्थ्य खाद्य पदार्थ और सुपर फूड विटामिन, खनिज, अच्छे वसा, एंटीऑक्सीडेंट और स्वस्थ एंजाइम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों में उच्च हैं। जो कि हमें माइक्रोग्रीन्स में ऐसे गुण होते हैं जो कुछ बीमारियों को रोकने में मदद करते हैं। माइक्रोग्रीन के माध्यम से सभी आवश्यक विटामिन और खनिजों को शामिल किया जा सकता है। यही कारण है कि माइक्रोग्रीन्स को सुपरफूड की श्रेणी में रखा जाता है। क्योंकि यह आपको कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है और सबसे अच्छी बात यह है कि यह आसानी से उपलब्ध हैं।
माइक्रोग्रीन्स की खेती बेहद आसान है, इसे खेतों के साथ-साथ घर के अंदर भी उगाया जा सकता है। सूक्ष्म हरी खेती के लिए अधिक जैविक खाद या मिट्टी की आवश्यकता होती है। कुछ माइक्रोग्रीन्स ऐसे भी हैं जो बिना मिट्टी के पानी में उग जाते हैं। वे छतों, बालकनियों और रहने वाले कमरों में बढ़ सकते हैं। इसके साथ ही कई लोग इसे पानी में भी लगाते हैं। माइक्रोग्रीन्स के लिए प्रतिदिन 3 से 4 घंटे की धूप पर्याप्त होती है। अगर आपके घर में ऐसी जगह उपलब्ध है, तो इसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। जब ऐसी जगह उपलब्ध नहीं होती है, तो लोग फ्लोरोसेंट रोशनी का उपयोग करके सफलतापूर्वक उत्पादन करते हैं। उन्हें बाहर उगाने में कोई आपत्ति नहीं है लेकिन कभी-कभी उन्हें तेज धूप से बचाना पड़ता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि माइक्रोग्रीन को हर सीजन में लगाया जा सकता है। लेकिन माइक्रोग्रीन्स को मौसम के अनुसार लगाना चाहिए, साथ ही माइक्रोग्रीन की निर्भरता क्षेत्र की जलवायु पर होती है। माइक्रोग्रीन में धनिया, सरसों, तुलसी, मूली, प्याज, गाजर, पुदीना, मूंग, मेथी आदि के पौधे इसके लिए उपयुक्त होते हैं। इसके अलावा भी बहुत सी और सब्जियां हैं जिनके माइक्रोग्रीन तैयार किये जाते हैं।
माइक्रोग्रीन्स को घर के अंदर उगाने के लिए छोटे कंटेनरों की आवश्यकता होती है। ये कंटेनर 3 से 4 इंच गहरे होने चाहिए। मिट्टी की 3 से 4 इंच परत वाला कोई भी बॉक्स काम करेगा, और यदि ट्रे उपलब्ध हो तो और भी अच्छा। बीज को मिट्टी की सतह पर फैला दिया जाता है और मिट्टी की एक पतली परत से ढक दिया जाता है और धीरे से थपथपाया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मिट्टी कंटेनर में अच्छी तरह से बैठ जाए। मिट्टी को नम रखने और सावधानी से पानी देने से दो से तीन दिनों में बीज अंकुरित हो जाते हैं। इन अंकुरित बीजों को धूप में रखा जाता है और दिन में दो से तीन बार पानी का छिड़काव किया जाता है। माइक्रोग्रीन्स 1 हफ्ते में तैयार हो जाता है। आप चाहें तो उन्हें 2 से 3 इंच से ज्यादा ऊंचाई पर बढ़ने दे सकते हैं।
माइक्रोग्रीन्स को लगभग हर जगह बिना ज्यादा मेहनत के उगाया जा सकता है। आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छे माइक्रोग्रीन्स की कुछ सरल किस्मों में शामिल हैं:-
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