Weed control Subsidy : कृषि से गुणवत्तापूर्ण और रोग-रहित फसल उत्पादन के लिए खेतों में खरपतवारों का समय पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। खरपतवार न केवल पौधों से पोषक तत्व और सूरज की रोशनी छीनते हैं, बल्कि यह फसल में कीट और बीमारियां फैलाने वाले जीव- जैसे बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के वाहक भी बन जाते हैं। इससे किसानों की उपज और आमदनी पर सीधा असर पड़ता है। ऐसे में कम खर्च में अच्छी पैदावार पाने के लिए सरकार किसानों को पौध संरक्षण सामग्री (आदानों) पर अनुदान देती है। इस कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार ने खरीफ 2025 सीजन में खरपतवारों पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से एक खास योजना शुरू की है। सरकार इस योजना के तहत किसानों को कृषि रक्षा रसायन और खरपतवारनाशी दवाओं पर 50 प्रतिशत तक का अनुदान दे रही है। इसका उद्देश्य है कि किसान कम खर्च में अपनी फसलों की रक्षा कर सकें और अच्छी पैदावार ले सकें। आइए, जानते हैं कि किसान भाईयों को इस योजना का लाभ कैसे और कहां से मिलेगा।
खासकर खरीफ सीजन में फसलों को कीट, रोग और खरपतवारों से बड़ा नुकसान होता है। इस दौरान जब मानसून बारिश ज्यादा होती है, तो फसलों के साथ-साथ अवांछित पौधे यानी खरपतवार भी तेजी से बढ़ते हैं। खरपतवारों के कारण फसलों को पोषक तत्व, पानी और धूप की उचित मात्रा नहीं मिल पाती, जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन कम हो जाता है। इस परिस्थिति से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा किसानों को खरपतवार नियंत्रण रसायनों (खरपतवारनाशी दवाओं) पर विशेष अनुदान दिया जा रहा है। विश्व में करीब 3 लाख से ज्यादा पौधों की प्रजातियां मानव व पशुओं के लिए आर्थिक चारे के महत्व की है। इनसे वांछित फसल के अतिरिक्त अन्य प्रजातियों के पौधे, जिन्हें खरपतवार कहते हैं, वह भी फसल के साथ-साथ उग जाते हैं। ऐसे में खरपतवारों के नियंत्रण के लिए किसान भाईयों को उनकी जानकारी और पहचान होना बेहद जरूरी है।
कृषि विभाग द्वारा संचालित सभी कृषि रक्षा इकाइयों पर फसलों की सुरक्षा हेतु आवश्यक कृषि रक्षा रसायन व खरपतवारनाशी 50% अनुदान (सब्सिडी) के साथ उपलब्ध कराए जा रहे हैं। किसान भाइयों से अनुरोध है कि खरीफ फसलों में खरपतवार नियंत्रण कर पैदावार बढ़ाए। सरकार की इस सुविधा का लाभ लेकर किसान भाई कम खर्च में अधिक उत्पादन सुनिश्चित कर सकते हैं। अगर फसल सुरक्षा या खरपतवारनाशक रसायनों के इस्तेमाल से जुड़ी कोई समस्या है, तो नजदीकी कृषि रक्षा इकाइयों से संपर्क स्थापित करें। यहां पर विशेषज्ञ आपकी समस्या का समाधान करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
कृषि विभाग के मुताबिक, खरीफ सीजन में खरपतवारों की समस्या सबसे अधिक होती है। इस दौरान खेतों में मुख्यत: तीन प्रकार के खरपतवार पाए जाते हैं, जिनमें सकरी पत्ती वाले खरपतवार (घास कुल के खरपतवार- पतली और लंबी पत्तियां), चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (ब्रॉडलीफ वीड्स -पत्तियां घास की तुलना में चौड़ी आमतौर पर द्विबीजपत्री यानी बीज में दो बीजपत्र होते हैं) और मोथा वर्गीय खरपतवार (एक बहुवर्षीय खरपतवार) शामिल हैं। खरपतवारों की मुख्यतः इन तीन प्रजातियों का प्रबंधन उनके जीवन चक्र, पत्तियों के आकार व विषम परिस्थितियों में उनके अंकुरण और पौधा वृद्धि को ध्यान में रखकर किया जाता है। कृषि विभाग के अनुसार, मोथा खरपतवार पर नियंत्रण करना काफी मुश्किल होता है क्योंकि इसके कंद जमीन में गहराई तक फैले होते हैं तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
कृषि विभाग के अनुसार, खरपतवारों के कारण फसलों की वृद्धि, जीवन चक्र व पैदावार पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। खरपतवारों से धान, गेहूं और अन्य फसलों में लगभग 32-35 प्रतिशत, कीटों द्वारा 27 प्रतिशत, पादप रोगों द्वारा 18-20 प्रतिशत तथा अन्य कारकों द्वारा 5 प्रतिशत कृषि उत्पादों की वार्षिक हानि होती है। ऐसे में किसानों द्वारा अपनी फसलों में खरपतवारों (पतली और लंबी पत्तियां/ चौड़ी पत्ती-ब्रॉडलीफ बीड्स/ मोथा वर्गीय- बहुवर्षीय खरपतवार) का समय से प्रबंधन सदैव ही लाभकारी होता है, जिससे खरपतवार व फसलों के मध्यम पानी, पोषक तत्व, स्थान, हवा एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा ना हो सके और फसलों से अधिकतम पैदावार भी प्राप्त की जा सके।
खरीफ सीजन फसल- जैसे धान, मक्का, अरहर उड़द और मूंग में समय से खरपतवारों का नियंत्रण किसानों के हित में और अच्छी पैदावार प्राप्त करने का सही तरीका है, इसके लिए शस्य क्रियाओं का समुचित उपयोग किया जाना कृषक हित में है। इनमें भूमि की तैयारी, गर्मी के मौसम में मिट्टी पलटने वाले हल से भूमि की गहरी जुताई, फसल चक्र अपनाना और पैडलिंग आदि कार्य शामिल है। इसके अलावा आवश्यकतानुसार कृषि मशीनों / यंत्रों का प्रयोग खरपतवार नियंत्रण में किया जा सकता है। इनमें खुरपी, कुदाल, वीडर, मल्चर आदि उपकरण के माध्यम से खरपतवारों की वृद्धि में अवरोध पैदा कर खरपतवार को कम किया जा सकता है। अगर उपयुक्त उपाय कारगर ना हों, तो कृषि रक्षा रसायन/ खरपतवारनाशक रसायनों का प्रयोग कर अंकुरण व खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता है यह आर्थिक दृष्टि से उचित रहता है।
धान की सीधी बुआई (डी.एस.आर.) में खरपतवार प्रबंधन एक मुख्य समस्या है, जिसके नियंत्रण के लिए मुख्य खरपतवारनाशक पेंडीमेथलीन 30 ई.सी. 1300 मिली/ एकड़ 200 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के तुरंत बाद छिड़काव करें। तत्पश्चात बुआई से 20-25 दिन पश्चात विस्पायरीवैक सोडियम 10 एस.एल. (80 मिली प्रति एकड़) या पायराइजो सल्फ्यूरान (80 मिली/ एकड़) को 120 लीटर पानी में मिलाकर फ्लैट फैन नोजल से छिड़काव करना चाहिए। साथ ही अन्य रसायन जैसे- बेनसल्फ़्यूरान मिथाइल 60 ग्राम/ हेक्टेयर बुआई के 20 दिन पश्चात या मेटासल्फ़्यूरान मिथाइल 08 ग्राम/ हेक्टेयर बुआई के 20 दिन बाद उपयोग करना चाहिए।
रोपाई की स्थिति
संकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के प्रबंधन के लिए नीचे दिए गए कृषि रसायनों में से किसी एक रसायन दवा की संस्तुत मात्रा/ हेक्टेयर लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नोजिल से धान रोपाई के 3-5 दिन की समय सीमा के अंदर छिड़काव करना चाहिए:-
मक्का की खेती में एक वर्षीय घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले (ब्रॉडलीफ बीड्स/ मोथा वर्गीय- बहुवर्षीय) खरपतवार के लिए एट्राजीन 2.0 केजी/ हेक्टेयर बुआई के तुरंत बाद या बीज जमाव से पहले 2 दिनों में 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर दर से छिड़काव करें।
अरहर (तुर दाल) फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए अरहर की बुआई के तुरंत बाद पेडिमिथालीन 30 ई.सी. 2.5 से 3.0 लीटर/ हेक्टेयर क्षेत्रफल या इमैजीथापर 1.0 लीटर/ हेक्टेयर बुआई के 15 से 25 दिन बाद छिड़काव करें।
उड़द और मूंग में खरपतवार नियंत्रण के लिए इमैजायापर 10 ई.सी. पानी में घोल बनाकर बुआई के 10 से 20 दिनों के बाद, मात्रा 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में छिड़काव करें या मेटालाक्लोर 50 ई.सी. फसल बुआई के 2 दिन के भीतर सिर्फ 2.0 लीटर/ हेक्टेयर क्षेत्रफल में करीब 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव (स्प्रे) करें।
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