लहसुन की खेती : लहसुन अपनी गंध व तीखे स्वाद के कारण दुनियाभर में जाना जाता है। यह एक कंद मसाले वर्गीय नकदी फसल है। इसके कंद का उपयोग सब्जियों का स्वाद बढ़ाने के साथ औषधी बनाने के लिए किया जाता है। स्वाद और औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग देश के बाजारों के साथ विदेशों में भी खूब रहती है। इसलिए लहसुन की खेती (Garlic farming) किसानों के लिए बहुत अधिक फायदेमंद खेती साबित होती है। लहसुन (Garlic) के बड़े कंद की मांग बाजार में खूब होती है और इसके दाम भी काफी अच्छे मिलते हैं। इसलिए लहसुन की खेती से मोटे और तगड़े कंद के साथ बंपर उत्पादन के लिए अच्छी खाद का उपयोग करना बहुत जरुरी होता है। आइए, जानते हैं कि लहसुन के कंद की ग्रोथ को कैसे बढ़ाया जा सकता है।
कृषि विशेषज्ञों की सलाह से सामान्य विधि के अनुसार, अगर लहसुन की खेती एडवांस टेक्नोलॉजी से की जाए, तो इसकी खेती से कुछ ही महीनों में लाखों रुपए का मुनाफा कमाया जा सकता है। देश के कई क्षेत्रों में लहसुन की खेती (Garlic farming) बड़े पैमाने पर होती है। किसान लहसुन की खेती में अच्छी पैदावार पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन लहसुन के कंद का आकार बढ़ाने, फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए सही खाद का समय पर उपयोग और फसल की बढ़िया उपज लेने के लिए सही तकनीक और जानकारी का ज्ञान होना बहुत जरुरी होता है। लहसुन की फसल में सभी पोषक तत्वों की जरूरत होती है। खासकर नाइट्रोजन और पोटैशियम की सबसे ज़्यादा जरूरत होती है। पोटैशियम इसकी फसल के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, जो लहसुन की फसल की जड़ों के विकास, कंद के आकार और फसल की रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। पोटैशियम की कमी होने में से लहसुन के कंद का आकार मोटा नहीं होता है, जिससे उत्पादन भी कम होती है।
लहसुन की फसल में पोटाश का सही समय पर और सही मात्रा में इस्तेमाल करने से पैदावार कई गुना बढ़ती है। अगर किसान पोटेशियम का प्रयोग बुवाई के वक्त करते हैं, तो यह पौधे को शुरुआती पोषण देता है। ऐसे में किसान को शुरुआती चरण में केवल बेसल डोज के रूप में ही फसल में पोटेशियम का उपयोग करें। इससे पौधे तेजी से विकास करते हैं। उसके बाद जब लहसुन की फसल 50 से 70 दिन हो जाए, तब इसकी फसल में पोटैशियम का उपयोग करें, इससे कंद का आकार बढ़ाने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी। क्योकि यह समय लहसुन के कंद बनने का होता है औेर पौधों को ज्यादा पोटाश की जरूरत होती है। अगर आप लहसुन की फसल में एक एकड़ क्षेत्र में 1 किलोग्राम एनपीके को पानी में घोलकर छिड़काव करते हैं, तो आप फसल के कंद और उत्पादन को बढ़ा सकते हैं। इसमें 50 प्रतिशत पोटैशियम होता है, जो लहसुन के कंद के आकार को बड़ा करता है। 3-4 पोटाश डालने से कंद बड़े, मज़बूत और वजनदार बनते है। लहसुन की फसल में कंद का वजन और साइज बढ़ाने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट का उपयोग भी कर सकते हैं।
लहसुन की फसल में एमकेपी का सही समय और सही मात्रा में छिड़काव की बात करें, तो खड़ी फसल में 50 से 75 दिन के बीच, 0.52.34 मोनो पोटैशियम फॉस्फेट खाद (एमकेपी) 3 ग्राम और बोरॉन 20 प्रतिशत (डाई सोडियम ऑक्टा बोरेट टेट़्रा हाइड्रेट) एक ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर स्प्रे करें। जब पौधों का विकास पूरी तरह से हो जाए, तो इस दौरान 0.0.50 पोटैशियम सल्फेट उर्वरक 5 ग्राम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। अगर आप पोटाश के साथ बोरन का इस्तेमाल करते है, तो आप बोरन 20 प्रतिशत वाली 500 ग्राम मात्रा में उपयोग करें। अगर पौधे की जड़ और तना कमजोर है, तो फिर फेरस सल्फेट की मात्रा करीब 10 किलोग्राम प्रति एकड़ इस्तेमाल करें। फेरस सल्फेट में 19 प्रतिशत फेरस और 10 प्रतिशत सल्फर को अच्छे से मिक्स कर फसल में छिड़काव करें और सिंचाई करें। ध्यान रखें कि इन पोषक तत्वों का छिड़काव करने से पहले फसल में निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवार मुक्त कर लें।
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