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Wheat Crop : रेज्ड बेड पद्धति से गेहूं की किस्म DBW 377 का बंपर उत्पादन

Wheat Crop : रेज्ड बेड पद्धति से गेहूं की किस्म DBW 377 का बंपर उत्पादन
पोस्ट -28 मार्च 2025 शेयर पोस्ट

DBW 377 : गेहूं की बंपर पैदावार देखकर कृषि अधिकारी और किसान हुए आश्चर्य चकित, जानिए कैसे संभव हुआ बंपर उत्पादन

Wheat Variety DBW 327 : वर्तमान में देश के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में गेहूं फसल की कटाई कार्य अपने चरम सीमा पर है। इस बीच किसानों द्वारा रबी सीजन 2024-25 में लगाई गई गेहूं की विभिन्न उन्नत किस्मों (Various improved varieties of wheat) से होने वाली पैदावार का विश्लेषण कृषि अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश राज्य में जबलपुर जिले के पाटन विकासखण्ड के गांव कुकरभुका में गेहूं की फसल (Wheat Crop) में हुए कटाई प्रयोग के नतीजों ने कृषि अधिकारियों और मौके पर मौजूद सभी किसानों को आश्चर्यचकित कर दिया है। फसल कटाई का यह प्रयोग 24 मार्च 2025 के दिन किसान अर्जुन पटेल के खेत में किया गया था। इसमें गेहूं की किस्म DBW 377 का रिकॉर्ड उत्पादन 73 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ, जो सामान्य विधियों से मिलने वाले उत्पादन से काफी अधिक है। कृषि विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक़, यह बंपर उत्पादन रेज्ड बेड पद्धति से की गई बुआई के चलते संभव हो पाया है। 

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गेहूं किस्म DBW 377 का उत्पादन (Production of wheat variety DBW 377)

कृषि विभाग द्वारा कुकरभुका गांव में हुए फसल कटाई प्रयोग के दौरान उप संचालक कृषि डॉ. एस के निगम ने बताया कि यह परीक्षण उनकी उपस्थिति में किया गया। उन्होंने कहा कि परीक्षण के लिए खेत में पांच मीटर लंबे और पांच मीटर चौड़े हिस्से में फसल कटाई प्रयोग किया गया था। इसमें 18 किलो 424 ग्राम गेहूं का उत्पादन (Wheat production) प्राप्त हुआ। उन्होंने बताया कि इन आंकड़ों का विश्लेषण करने पर गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 73 क्विंटल पाया गया है, जो परंपरागत विधियों से फसल लेने पर 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही प्राप्त होता है। डॉ. एस के निगम ने बताया कि इस बंपर पैदावार के पीछे मुख्य कारक बेहतर जल निकासी, उपयुक्त प्रकाश संश्लेषण और पौधों के मध्य संतुलित दूरी है। 

रेज्ड बेड पद्धति से की गई बुवाई (Sowing done using raised bed method)

उप संचालक कृषि डॉ. एस के निगम के अनुसार, किसान अर्जुन पटेल द्वारा अपने खेत में गेहूं की किस्म DBW-377 ब्रीडर बीज की रेज्ड बेड पद्धति से बोनी की गई थी। किसान अर्जुन पटेल द्वारा गेहूं का ब्रीडर बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद करनाल से लाया गया और 30 किलो प्रति एकड़ बीज रेज्ड बेड पद्धति (Raised Bed System) से बोया गया। यह पद्धति आधुनिक कृषि तकनीकों में से एक है, जो जल प्रबंधन, नमी संरक्षण तथा पौधों के सही ग्रोथ को बढ़ावा देती है। रेज्ड बेड पद्धति (raised bed system) पारंपरिक विधियों की तुलना में बीज की खपत को काफी कम करती है। इस विधि में जहां 30 किलो प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। वहीं, पारंपरिक विधि से बोनी करने पर 80 से 100 किलो प्रति एकड़ बीज लगता है। उप संचालक कृषि के अनुसार, रेज्ड बेड पद्धति में एक पौधे में 15 से 16 कल्ले आते हैं और फसल गिरने की संभावना बहुत कम होती है, जबकि परंपरागत विधि से गेहूं में तीन से चार कल्ले ही आते हैं और फसल गिरने की संभावना भी अधिक होती है।

रेज्ड बेड पद्धति के लाभ (Advantages of the raised bed system)

रेज्ड बेड पद्धति के लाभों के बारे में अनुविभागीय कृषि अधिकारी पाटन डॉ. इंदिरा त्रिपाठी ने बताया कि रेज्ड बेड पद्धति विशेष रूप से नमी संरक्षण के लिए अपनाई जाती है, जिसमें बुवाई संरचना, फरो इरीगेटेड रेज्ड बेड प्लान्टर से विकसित की जाती है। इसमें  सामान्यत: प्रत्येक दो कतारों के बीच 25 से 30 सेंटीमीटर चौड़ी और 15 से 20 सेंटीमीटर गहरी नाली (कूड़) बनती है। यह नालियां न केवल जल संचयन को सक्षम बनाती है, बल्कि रबी के मौसम में यह कूड़ सिंचाई के दौरान जल की कुशल खपत भी सुनिश्चित करती है। इससे बेड में अधिक समय तक नमी बनी रहती है और पौधे सूखे जैसी परिस्थितियों में भी स्वस्थ बने रहते हैं। इस तकनीक में मेढ़ से मेढ़ की दूरी पर्याप्त होने से पौधों को सूर्य की किरणें भी ज्यादा मिलती है, जिसके फलस्वरूप प्रकाश संश्लेषण बेहतर होता है और उत्पादन भी बढ़ता है।

किसानों की आय में वृद्धि संभव (It is possible to increase the income of farmers)

फसल कटाई के प्रयोग के बेहतर परिणामों को देखते हुए कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को रेज्ड बेड पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इस पद्धति को व्यापक रूप से अपनाने से जल संरक्षण, पैदावार लागत में कमी और किसानों की आय में वृद्धि संभव है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार और कृषि अनुसंधान संस्थान इस तरह की विधियों से किसानों को जागरूक करें। विशेष कार्यक्रमों का आयोजन कर प्रशिक्षण और जानकारी दी जाए। किसान अर्जुन पटेल जैसे प्रगतिशील किसानों की सफलता की कहानियां अन्य कृषकों को भी इस प्रकार की उन्नत विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सके।  

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